पर्याप्त बारिश के बावजूद क्यों सूखी हुई है सांभर झील

पिछले 10 साल में से सात साल तक सामान्य बारिश होने के बावजूद सांभर झील सूखी रहती है, इसके लिए कौन जिम्मेवार है? इसकी पड़ताल करती खास रिपोर्ट

On: Thursday 21 November 2019
 
Photo: Ankur Paliwal

माधव शर्मा 

सांभर झील में सात बरसाती नदी-नाले का पानी आता है, लेकिन हर साल अच्छी बारिश के बाद भी झील में पानी नहीं आ रहा। झील में नागौर जिले से मेंडा नदी, अजमेर से रूपनगढ़ नदी और जयपुर जिले से तुर्तमटी और खांडेल मौसमी नदियां गिरती हैं। इसके अलावा खारी का नाला, बांडी का नाला और झपोक नाले का पानी भी बरसात के मौसम में झील में आता है। पिछले 20 सालों में झील तक आने वाली नदियों के केचमेंट एरिया में 100 से ज्यादा बड़े एनिकट बनाए गए हैं।

बता दें कि सांभर में सामान्य बारिश 524 एमएम है। जल संसाधन विभाग, राजस्थान के आंकड़ों के अनुसार 2010 में 729 एमएम, 2011 में 715 एमएम, 2012 में 612 एमएम, 2013 में 500 एमएम, 2014 में 514 एमएम, 2015 में 580 एमएम, 2016 में 548 एमएम, 2017 में 346 एमएम, 2018 में 538 एमएम और 2019 में अब तक 851 एमएम बारिश हो चुकी है। 

इस साल 851 एमएम बारिश होने के बाद झील के सूखे क्षेत्रों में कई सालों बाद पानी पहुंचा है। झील में पानी नहीं आने के कारणों पर भू-विज्ञानी और अध्यापक डॉ. जीतेन्द्र शर्मा डाउन-टू-अर्थ से विस्तार से बात करते हैं।   

सांभर झील पर ‘एनवायरमेंटल जियोमॉर्फोलॉजी एंड मैनेजमेंट ऑफ सांभर लेक वेटलैंड’ नाम से किताब लिखने वाले डॉ. शर्मा कहते हैं, ‘झील तक आने वाली नदियों के रास्ते में सैंकड़ों अतिक्रमण बीते 20 साल में हुए हैं। सरकारों ने ही कृषि भूमि के लिए जमीन दे दी और सिंचाई के लिए कई एनिकट भी बना दिए। मसलन जहां पहले बारिश का 80-90% पानी झील में आता था वो अब घटकर 30% ही रह गया है और इस पानी को भी सांभर साल्ट लिमिटेड और निजी उत्पादक नमक बनाने के लिए लिफ्ट कर लेते हैं। ऐसे में पक्षियों के रहने लायक पानी झील में छोड़ा ही नहीं जा रहा।’ 

वे कहते हैं, ‘सांभर को करीब 30 साल पहले रामसर साइट घोषित किया था, लेकिन वेटलैंड भूमि विविधता और पारिस्थितिकी स्थिति का जिस तरह से ख्याल रखा जाना चाहिए था, उस पर सांभर खरी नहीं उतरती।’

जीतेन्द्र कहते हैं, ‘पेड़ों की कटाई और अतिक्रमण के चलते झील तक आने वाली बरसाती नदियां गंदा पानी अपने साथ ला रही हैं। इससे झील का पानी भी दूषित हो रहा है।’

सांभर छिछले पानी की देश की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है। आमतौर पर इसमें तीन फीट गहराई तक पानी रहता है, लेकिन मानसून के दिनों में यह गहराई दो मीटर तक हो जाती है। सांभर सॉल्ट लिमिटेड के मुताबिक झील में फिलहाल 2 फीट गहराई तक पानी है। झील में ज्यादा पानी आने की स्थिति में ये लंबाई में करीब 20 मील बढ़ जाती है। 

झील के बगल में खोल दिया रिसॉर्ट, रात भर होता है शोर 

राजस्थान सरकार ने नमक उत्पादन के लिए झील को सांभर सॉल्ट लिमिटेड के लिए 99 साल की लीज पर दिया है। सांभर सॉल्ट लिमिटेड ने सरकार से लीज पर मिली जमीन में से 19 एकड़ भूमि 2017 में चन्द्रा ग्रुप को कुल वार्षिक आय का 15 प्रतिशत सांभर सॉल्ट लिमिटेड को देने की शर्त पर किराये पर दी है। इसके लिए कंपनी ने टेंडर भी निकाला था।सांभर हेरिटेज रिसॉर्टनाम से रतन तालाब के पास खुले इस रिसॉर्ट को लेकर स्थानीय लोगों में भी काफी नाराजगी है। कई लोग तो इसे गैर-कानूनी बताते हैं। लोगों का आरोप है कि यहां देर रात तक तेज आवाज में डीजे बजता है और तेज रोशनी भी होती है। आवाज और रोशनी के कारण पक्षी परेशान होते हैं। रिसॉर्ट की वजह से झील की प्राकृतिक सुंदरता खत्म हो रही है।

स्थानीय युवा सूरज पंवार कहते हैं, ‘रिसॉर्ट को भले प्रकृति के अनुकूल दिखाया जाए, लेकिन यहां रात में भारी शोर होता है। इसीलिए देखा गया है कि रिसॉर्ट के आस-पास पिछले एक-दो साल से पक्षी नहीं रहे हैं। रात में तेज रोशनी भी यहां होती है जोकि पक्षियों के लिए अच्छी नहीं होती।सूरज आगे कहते हैं, ‘रिसॉर्ट के लोगों ने पूरी झील पर कब्जा ही कर लिया है। यहां आने वाले पर्यटकों से वे फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी, प्री-वेडिंग शूट और कोई भी काम करने पर शुल्क लेते हैं। जबकि इन्होंने झील का एक हिस्सा ही किराए पर लिया हुआ है।

डॉ. हर्षवर्धन डाउन-टू-अर्थ को बताते हैं किकई हजार किलोमीटर की यात्रा कर पक्षी यहां रहने आते हैं, लेकिन अगर उनकी जगह पर कोई और काबिज हो जाए तो वे परेशान ही होंगे। यहां आने वाले पक्षी काफी संवेदनशील होते हैं। इसीलिए शोर को वे झेल नहीं पाते। इससे उनके दिशाओं का पता लगाने की क्षमता प्रभावित होती है। अगर रिसॉर्ट की तरफ से वहां परेशानियां हो रही हैं तो सरकार को इसे तुरंत रोकना चाहिए।

नमक विभाग के सूत्रों के अनुसार विभाग के खर्चे ज्यादा होने और आय कम होने के कारण इसे किराए पर दिया गया है। ताकि विभाग को कुछ आय हो सके। विभाग की 2018-19 में कुल आय 2.18 करोड़ रुपए थी जबकि सभी प्रकार के खर्चे मिलाकर 30.76 करोड़ रुपए हैं। इसमें से राजस्थान का खर्चा 6.80 करोड़ रुपए है। 

सांभर साल्ट लिमिटेड के जनरल मैनेजर राजेश ओझा  रिसॉर्ट को कानूनी बताते हैं। वे कहते हैं, ‘हमने टेंडर निकाल कर पूरी कानूनी प्रक्रिया अपनाई है।हालांकि किस कानून के तहत कंपनी ने ऐसा किया है? इसका जवाब ओझा नहीं दे पाए। डाउन-टू-अर्थ के इस सवाल पर किसांभर हेरिटेज रिसॉर्ट किस तरह की भूमि (वेटलैंड या रेवेन्यू ) पर बना हुआ है? ओझा ने कहा, ‘यह मुझे मालूम नहीं है कि ये जमीन वेडलैंड है या रेवेन्यू। हमने सरकार की मिली जमीन में से 19 एकड़ भूमि इन्हें दी है।

गौरतलब है कि रिसॉर्ट मालिकों ने पर्यटकों को झील दर्शन के नाम पर जगह-जगह बर्ड वॉच सेंटर बना दिए हैं और झील की जमीन पर अतिक्रमण किया है। 

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