अकाल के निशाने पर अफ्रीका ही क्यों?

उत्तर-पूर्वी नाइजीरिया, दक्षिण सूडान और सोमालिया में लगभग तीस लाख लोग गंभीर रूप से भोजन की कमी से जूझ रहे हैं। 

By Jonathan Pound

On: Thursday 15 June 2017
 
पंटलैंड, सोमालिया के उसुगेरे गांव में विस्थापितों के शिविर में पानी की बोतल लिए अपनी बारी का इंतजार कर रही एक बुजुर्ग महिला (फोटो: एफएओ)

अफ्रीका के कई देश खाद्य असुरक्षा की गंभीर स्थिति से त्रस्त हैं। इन इलाकों में खाद्य असुरक्षा की स्थिति अपनी बहुआयामी तीव्रता के कारण बड़े वैश्विक संकटों में से एक है । इसके कारण भी बड़े फलक पर हैं, जिनका इलाज बहुत आसान नहीं है। हालांकि पिछले कुछ समय में रिमोट सेंसिंग विश्लेषण जैसी तकनीकों ने सूखे के बारे में पहले से चेतावनी देकर उसकी विभीषिका को कम करने में मदद पहुंचाई है। इसके बावजूद अफ्रीका में खासकर उत्तर-पूर्वी नाइजीरिया, दक्षिण सूडान और सोमालिया में गंभीर खाद्य असुरक्षा इलाके की शांति को खतरे में डालने वाला बड़ा हथियार बन गया है।  वर्ष 2016-2017 में आंतरिक संघर्ष यहां की आबादी को अकाल के खतरे में झोंकने में उत्प्रेरक का काम कर रहे थे। सूखा, आर्थिक मंदी और महंगे खाद्यान्न जैसे कई संकटों ने मिलकर इस बड़े संकट की जमीन तैयार की। इसने महाद्वीप के लाखों लोगों को भूखमरी  की ओर धकेल दिया। साथ ही इससे प्रभावी ढंग से निपटने के लिए नागरिकों और सरकार  की क्षमताओं को भी कमजोर कर दिया।

कुल मिलाकर लगभग 30 लाख लोगों के भोजन की कमी से जूझने और अकाल से प्रभावित होने की आशंका है । उत्तर-पूर्वी नाइजीरिया, सोमालिया और दक्षिण सूडान को पहले ही अकालग्रस्त घोषित किया जा चुका है। इन इलाकों में भूख को लेकर छिड़ा संघर्ष बहुत तेजी से परिवारों की उत्पादक क्षमता पर असर डाल रहा है।  इसके साथ ही उन्हें कृषि भूमि और निवेश से दूर कर रहा है। इलाके में हिंसा का लगातार मंडराता खतरा किसानों को बुआई जैसे बुनियादी फैसलों से रोकने लगता है। प्राकृतिक संसाधन के स्थायी प्रबंध प्रभावित होने से चरवाहों की आजीविका पर भी बुरा असर पड़ता है। हिंसाग्रस्त क्षेत्र में सीमित आवागमन हो जाने के कारण इनकी उत्पादकता कम हो जाती है ।

दीर्घकालिक संघर्ष की परिणति

दक्षिण सूडान में वर्ष 2016 के नुकसान को कम करने की कोशिश में अनाजों की जगह सब्जियां की खेती की गई क्योंकि मध्य में बड़े पैमाने पर हिंसा शुरू हुई। नतीजतन बड़े पैमाने पर विस्थापन हुए और नागरिकों के बीच असुरक्षा की भावना आई।  इस कारण उस साल मुख्य फसल की उपज और कटाई के काम प्रभावित हुए। खास तौर से सबसे अधिक उत्पादन वाले क्षेत्रों में पैदावार औसत से नीचे चली गई थी। हिंसा के मंडराते खतरे के कारण खेती की जगह भी सिकुड़ी और फसलों को खेतों में खड़े रखने का समय भी सिकुड़ा।  इसलिए नुकसान को कम करने के लिए सब्जियों की खेती की गई। फसलों की तुलना में सब्जियों की पैदावार में कम समय लगता है। इसके अलावा अर्थव्यवस्था का महापतन, मुद्रा मूल्य में गिरावट के कारण खाद्य कीमतों में बेतहाशा वृद्धि और मुसीबतों से मुकाबला करने वाली पारिवारिक तंत्रों की थकान ने करीब 100,000 लोगों के लिए अकाल के हालात पैदा कर दिए। अगर जन-कल्याण के पर्याप्त साधन समय पर नहीं पहुंचते हैं तो यह आंकड़ा जुलाई 2017 तक यानि जब भूख का मौसम अपने चरम पर होता है और भी बढ़ने की आशंका है।

दक्षिणी सूडान के तेरेकेका में व्हाइट नाइल नदी के किनारे मवेशियों का जमावड़ा। यहां खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ), अपने साझेदार सेट न्यूम फिशरीज कोऑपरेटिव के माध्यम से मछली पकड़ने वाली किट वितरित करता है, जिससे अकालग्रस्त परिवार मछली पकड़कर अपनी खाद्य जरूरतों को पूरा कर सके

इसी तरह, उत्तर-पूर्वी नाइजीरिया में दीर्घकालिक संघर्ष बड़े पैमाने पर विस्थापन का कारण बना। नतीजतन खरीद-बिक्री  और कृषि गतिविधियों को बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। प्रभावित इलाकों में खाद्य फसलों के रोपण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कटौती, विशेष रूप से बोर्नो राज्य में फसल उत्पादन में कमी का कारण बना। परिवारों की उत्पादकता और गैर-कार्यशील बाजारों से निकलने वाली आपूर्ति की कमी के कारण आगामी मंदी के मौसम (जुलाई-सितंबर) में आदमवा, बोर्नो और याबे में 52 लाख लोगों के खाद्य असुरक्षा से प्रभावित होने का अनुमान है। इसके अलावा, मुद्रा के मूल्यह्रास और असुरक्षा की भावना के कारण खाद्य कीमतों में रिकार्ड वृद्धि ने खाद्य असुरक्षा के हालात को और बिगाड़ दिया।

सोमालिया में स्थिति और भी गंभीर है। यहां लगातार तीन साल से कम बारिश के कारण पैदावार तेजी से कम हुई है और इसने कृषि व पशुपालन करने वाले परिवारों की आजीविका के स्रोत की कमर तोड़ दी। उन इलाकों से बड़े पैमाने पर मवेशियों के मरने की खबरें भी आई हैं। यदि भविष्य में अच्छी बारिश (अप्रैल-जून) नहीं होती है, जिसकी हाल ही में चेतावनी दी गई है, तो यह अकाल के खतरे को और भी बढ़ा देगी।  इस हालात में परिवारों की क्रय शक्ति 2010-11 (जब अकाल घोषित किया गया था) की तुलना में और भी नीचे जा सकती है। साथ ही उन क्षेत्रों में जहां असुरक्षा की वजह से लोक कल्याणकारी सहायता नहीं पहुंच पा रही है, अकाल की स्थिति उत्पन्न होने की आशंका और बढ़ गई है। हालांकि वर्तमान में मानवीय मदद की पहुंच वर्ष 2011की तुलना में बेहतर है और दक्षिणी सोमालिया के दुर्गम क्षेत्रों में भी अब लोगों तक बुनियादी मदद पहुंचाना संभव हो गया है।

स्थिरता और शांति जरूरी

इलाकों में दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा हासिल करने के लिए शांति व स्थिरता पहली शर्त है। इसी के बल पर अकाल के लक्षणों से लड़ा जा सकता है। शांति और सुरक्षा की स्थिति कृषि और ग्रामीण आजीविका में निवेश बढ़ाने में मददगार होती है। उदाहरण के तौर पर इथियोपिया, जहां पिछले एक दशक के दौरान आर्थिक विकास में इसकी भूमिका देखी गई। 2016 में सूखे की स्थिति के बावजूद  देश में सापेक्ष शांति और प्रभावी सुरक्षा कार्यक्रमों के कार्यान्वयन ने अकाल को दूर रखने में मदद की थी।

इसी तरह संघर्ष के कारण खाद्य-असुरक्षित आबादी तक मानवतावादी एजेंसियों की पहुंच बाधित हो रही है। ये एजेंसियां  खाद्य असुरक्षा को कम करने में अहम भूमिका निभा सकती है। खासकर आपातकालीन स्थितियों में माहौल बिगड़ने से रोकने में मानवीय सहायता का तेजी से वितरण महत्वपूर्ण है। संघर्ष तो भूख पैदा करने का एक प्रमुख कारण है ही, लेकिन अनियमित मौसम और सूखे के संदर्भ में सीमित कृषि उत्पादन भी राष्ट्रीय क्षमताओं को खोखला कर देती है। अफ्रीका की कुल कृषि योग्य भूमि के 10 प्रतिशत से भी कम पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। इसलिए खासकर छोटे किसानों के लिए खाद्यान्न उत्पादन कम बारिश के कारण अतिसंवेदनशील मामला बन जाता है। स्थिरता की अवधि में भी उत्पादन में नुकसान का खाद्य सुरक्षा पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है, जैसा कि वर्ष 2016 में दक्षिणी अफ्रीका में एल नीनो प्रेरित सूखा के कारण बुनियादी मानवीय जरूरतों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई थी। इसके अलावा, महाद्वीप के स्तर पर पिछले 10 वर्षों (2006-2015) में आमतौर पर अपरिवर्ती प्रति व्यक्ति अनाज उत्पादन में वृद्धि ने आपूर्ति की कमी को अवशोषित करने की क्षमता सीमित कर दी है।

नाइजीरिया में विस्थापित किसान लोबिया का बीज रोपते हुए। अब तक एफएओ ने 123,000 से अधिक लोगों तक बीजों का वितरण किया है ताकि अकाल से प्रभावित लोग आगामी बारिश के मौसम में खुद के लिए भोजन उगा सकें

अफ्रीका के अनाज का उपयोग के लिए अनाज भंडारण का अनुपात, जिसका इस्तेमाल देश की और  मांग और आपूर्ति  के झटके के जोखिम के स्तर का अनुमान लगाने के लिए एक संकेतक के रूप में किया जा सकता है, हाल के वर्षों में स्थिर रहा है। जबकि तुलनात्मक रूप से यह अनुपात लैटिन अमेरिका, एशिया व कैरिबियाई देशों में बढ़ा है। हालांकि यह महाद्वीप की मुकाबला करने की क्षमता में गिरावट का संकेत नहीं देता है।

भोजन की बढ़ी कीमतें

वर्ष 2016 में संघर्ष और सूखे के ऊपर, कई देशों में रिकॉर्ड स्तर तक पहुंचने वाले मूल्यों ने खाद्य सुरक्षा पर अधिक हानिकारक प्रभाव डाला। खासकर यह देखते हुए कि परिवार की आमदनी का बड़ा हिस्सा भोजन खरीदने में खर्च होते जा रहा है। नाइजीरिया और दक्षिण सूडान में मुद्रा के मूल्यह्रास के साथ ही दक्षिणी अफ्रीका के कई देशों में कीमतों में आई तेजी ने आमजन तक भोजन की पहुंच को कम कर दिया है। इसलिए खाद्य कीमतों में अत्यधिक बढ़ोतरी के प्रभाव से गरीब परिवारों को बचाकर रखने के लिए नीतियां बनाने की आवश्यकता है। इसके अलावा, संघर्ष की स्थिति में उत्पादकों के लिए उच्च खाद्य कीमतों के किसी भी लाभ पर कब्जा करने की क्षमता न के बराबर है।

एक महाद्वीप के रूप में अफ्रीका ने वर्ष 1990 के बाद से कुपोषण के अनुपात में कमी की और अनाज के उत्पादन में (पूर्ण रूप से) वृद्धि दर्ज की है। हालांकि संघर्ष, जो खाद्य संकट के प्रमुख कारक के रूप में उभरा है, कुछ कम हुआ है। साथ ही कुछ मामलों में कुछ देशों में पहले के वर्षों में दर्ज वृद्धि में गिरावट आई है। शांति कायम करने के लिए और अधिक काम करने की जरूरत है। यह उन संरचनात्मक कारकों में और अधिक निवेश को बढ़ावा देने में मदद करेगा, जो स्थायी और दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा को बाधित कर सकते हैं।

लेखक खाद्य और कृषि संगठन की  वैश्विक सूचना और प्रारंभिक चेतावनी  प्रणाली में अर्थशास्त्री हैं

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