पिछले 28 वर्षों में कटाव का सामना कर रहा है भारतीय तटरेखा का एक तिहाई हिस्सा

वहीं दूसरी ओर 1990 से 2018 के बीच करीब 27 फीसदी तटरेखा में विस्तार देखने को मिला है, जबकि 41 फीसदी तटरेखा पर कोई प्रभाव सामने नहीं आया था

By Ashis Senapati, Lalit Maurya

On: Tuesday 17 August 2021
 

केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च (एनसीसीआर) द्वारा जारी एक हालिया तकनीकी रिपोर्ट से पता चला है कि 1990 से 2018 के बीच भारतीय तटरेखा का करीब 32 फीसदी हिस्से में कटाव हुआ है जबकि 27 फीसदी तटरेखा में विस्तार देखने को मिला है। वहीं रिपोर्ट के मुताबिक 41 फीसदी तटरेखा पर कोई प्रभाव देखने को नहीं मिला है। यह रिपोर्ट पिछले 28 वर्षों के दौरान सेटेलाइट से प्राप्त आंकडों के आधार पर तैयार की गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिम बंगाल की तटरेखा ने इस दौरान सबसे ज्यादा कटाव का सामना किया है, अनुमान है कि करीब 60 फीसदी तटरेखा में कटाव हुआ है।  इसके बाद पुडुचेरी में 56 फीसदी, केरल में 41 फीसदी, तमिलनाडु (41 फीसदी), आंध्र प्रदेश (28 फीसदी), दमन और दीव सहित गुजरात (26 फीसदी), ओडिशा (26 फीसदी), कर्नाटक (24 फीसदी), महाराष्ट्र (22 फीसदी) और गोवा की 19 फीसदी तटरेखा ने इस दौरान कटाव का सामना किया था। 

गौरतलब है कि भारत की तटरेखा कुल 6,631.53 किलोमीटर लंबी है। इसमें से 2,135.65 किलोमीटर लम्बी तटरेखा कटाव का सामना कर रही है हालांकि यह कटाव कहीं कम कहीं ज्यादा है। वहीं 1,760.06 किलोमीटर लम्बी तटरेखा का विस्तार हुआ है जबकि लगभग 2,700 किलोमीटर लम्बी तटरेखा स्थिर बनी हुई है। यह जानकारी मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री परशोत्तम रुपाला द्वारा लोक सभा में 10 अगस्त 2021 को दिए एक प्रश्न के जवाब में सामने आई है।

1,760 किलोमीटर लम्बी तटरेखा का हुआ है विस्तार

वहीं दूसरी तरफ इस दौरान ओडिशा के तट में 51 फीसदी का विस्तार हुआ है। इसके बाद आंध्र प्रदेश के तट में 48 फीसदी का विस्तार देखने को मिला है। वहीं कर्नाटक के तट में 26 फीसदी, पश्चिम बंगाल (25 फीसदी), तमिलनाडु (22 फीसदी), केरल (21 फीसदी), दमन और दीव सहित गुजरात (20 फीसदी), गोवा (14 फीसदी), महाराष्ट्र (10 फीसदी) और पुडुचेरी के तट में 8 फीसदी का विस्तार हुआ था। 

रिपोर्ट के अनुसार भारतीय तटरेखा के कुछ हिस्से प्राकृतिक कारणों से या फिर इंसानी गतिविधियों के चलते अलग-अलग मात्रा में कटाव को झेल रहे हैं। जिसका सबसे ज्यादा असर मछुआरे समुदायों के साथ तटों के आसपास रहने वाले लोगों को झेलना पड़ रहा है। इससे पहले नेशनल सेंटर फॉर सस्टेनेबल कोस्टल मैनेजमेंट (एनसीएससीएम) द्वारा किए अध्ययनों के अनुसार भारत का 40 फीसदी से अधिक समुद्र तट अनुमान से कहीं ज्यादा तेजी से नष्ट हो रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार इसके चलते तटों के करीब रहने वाले 25 करोड़ लोगों और उन एक करोड़ से ज्यादा मछुआरों पर जोखिम बढ़ गया है जो समुद्र से अपनी जीविका प्राप्त करते हैं। ऐसे में जरुरी हो जाता है कि तटीय क्षेत्रों का प्रबंधन उचित ढंग से किया जाए। साथ ही शाश्वत विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखने की भी जरूरत है।       

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