चमोली आपदा : रॉक एवलांच की वैज्ञानिकों ने की पुष्टि, चट्टानी मलबे से बने अस्थायी डैम ने मचाई तबाही

चमोली की घटना पर ग्राउंड रिपोर्ट के बाद कयासों को विराम लग गया है कि ग्लेशियर का टूटना और बाढ़ की विपदा के बीच क्या संबंध है। यहां पढ़िए पूरी रिपोर्ट 

By Vivek Mishra

On: Wednesday 10 February 2021
 
A screengrab of a video that showed ITBP men pulling out a labourer buried in the mud. Photo: Uttarakhand Police's Twitter Handle

उत्तराखंड में 7 फरवरी, 2021 को चमोली में हुई जानलेवा घटना रॉक एवलांच ( ग्लेशियर के साथ) और रौंथी नाले में एक कृत्रिम अस्थायी डैम बनने के कारण हुई। रौंथी नाला ऊपर काफी संकरी है और नीचे चौड़ी, इसलिए ऊपर एवलांच की गति तेज थी लेकिन नीचे वह मंद पड़ गई। रौंथी नाला ऋषि गंगा नदी से जुड़ी है जो कि धौली गंगा नदी से जुड़ती है। यही एवलांच का रास्ता बना। 

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी) के निदेशक कलाचंद सेन ने देर रात डाउन टू अर्थ को यह जानकारी दी है। 

उन्होंने बताया " बेहद बड़े आकार वाले रौंथी ग्लेशियर के ठीक बगल एक ग्लेशियर का टुकड़ा लटक रहा था। इस टुकड़े के नीचे एक बड़ा चट्टानी टुकड़ा (रॉक मास) भी था, जो कुछ समय में कमजोर हो गया। यानी धीरे-धीरे वीक प्लेन बना और ग्रैविटी के कारण यह ग्लेशियर और रॉक मास कमजोर होकर नीचे गिरा। सेन ने कहा इस रॉक मास और ग्लेशियर टुकड़े के साथ आए मलबे के कारण नीचे रौंथी नाले में एक अस्थायी कृत्रिम डैम भी बन गया।  मिट्टी, बर्फ, ग्लेशियर का टुकड़ा, रॉक मास इन्होंने नाले के मुंह को बंद किया। इस कारण धीरे-धीरे वहां बड़ी मात्रा में पानी भी जमा हो गया और अचानक यह कृत्रिम मलबे का डैम टूट गया।" 

7 फरवरी, 2021 को रॉक एवलांच की इस बड़ी जानलेवा तबाही में अब तक 15 मौतें हुई हैं साथ ही अब भी 170 से अधिक लोग लापता हैं।  

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी) के पांच सदस्यों वाले वैज्ञानिक दल ने अपने ग्राउंड और एरियल अध्ययन में यह प्राथमिक निष्कर्ष निकाला है। उन्होंने कहा कि हाई एल्टीट्यूड पर हम नहीं पहुंच पाए और यह प्रारंभिक अध्ययन है। 

इस प्रारंभिक आकलन के बाद कयासों पर विराम लग गया है। इससे पहले डाउन टू अर्थ को कनाडा के विशेषज्ञ और इस घटना पर सेटेलाइट इमेजरी के जरिए विश्लेषण करने वाले डैनियल शुगर ने अपने आकलन में इसे बहुत हद तक रॉक एवलांच बताया था, उन्होंने कहा था कि यह घटना 2013 त्रासदी से बिल्कुल अलग है।

वहीं, सेन ने बताया कि रॉक एवलांच की यह प्रक्रिया एक लंबे समय में घटित हुई होगी, हालांकि वीक प्लेनर जोन बनने और ग्लेशियर का टुकड़ा व रॉक मास गिरने में कितना वास्तविक वक्त लगा है यह स्पष्ट तौर पर अभी नहीं बताया जा सकता है। इसके अलावा रॉक मास और नीचे गिरने वाले ग्लेशियर का आकार कितना बड़ा था, यह आगे अध्ययन के बाद साझा किया जाएगा।

हालांकि उन्होंने कहा कि इतना स्पष्ट है कि रॉक मास ग्लेशियर टुकड़े को नाले से पहले काफी अधिक 37 डिग्री का ढ़लाव मिला जिसने एवलांच को और खतरनाक बनाया। जब रॉक मास और ग्लेशियर का टुकड़ा मलबे के साथ नाले में गिरा तो रौंथी नाले का रास्ता बंद हो गया। वहां धीरे-धीरे कुछ घंटों में पानी जमा हो गया। बाद में पानी जमा होने के कारण यह कृत्रिम डैम अचानक टूट गया और जो कि इस जानलेवा बाढ़ का संभावित कारण है। 

डीएसटी को यह प्रारंभिक रिपोर्ट भेज दी गई है।

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