हमारी आंखों के सामने ही हमारा घर डूब रहा है, कैसे देख सकते हैं?

सरदार सरोवर बांध में बढ़ते जलस्तर के कारण डूबते घरों को देखकर दो दर्जन से अधिक ग्रामीण अवसाद से घिरते जा रहे हैं 

By Anil Ashwani Sharma

On: Monday 09 September 2019
 
डूब प्रभावित गांवों को देखती नर्मदा बचाओ आंदोलन की संयोजक मेधा पाटकर। फोटो: रहमत

खापरखेड़ा गांव (बड़वानी, मध्य प्रदेश) की रंजना गोरे चार सितंबर, 2019 को जब उनके गांव में सरदार सरोवर बांध के बढ़ते जल स्तर के कारण पानी घुसा तो पहले तो गांव में घुसते पानी को निहारती रही हैं लेकिन जब पानी उनके घर में भी घुसने लगा तो वे अपने घर के अंदर जाकर अपने को कमरे में बंद कर लिया। इसके कारण उनके पति हीरालाल ने उन्हें कई आवाजें दीं की पानी बढ़ रहा है अब हमें बाहर निकलना पड़ेगा लेकिन रंजना गोरे पर उनकी बात का रत्तीभर भी असर न हुआ। वे अड़ गईं कि मैं यहां से बाहर जाऊंगी ही नहीं। जब पानी उनके घर में तीन फुट से ऊपर चढ़ गया तब अन्य ग्रामीणों की मदद से हीरालाल ने अपनी पत्नी को जैसे-तैसे निकाल कर उनकी जान बचाई। लेकिन उसके बाद से रंजना गोरे जब सालों से अपने आशियाने से जबरदस्ती निकाला गया तो वे दहाड़ें मार कर रोने लगीं। उनमें गहरी निराशा थी। आखिरी रहती भी क्यों न एक घर जिसमें आपके जीवन के सुख-दुख की तमाम यादों को समेटे रहता है वही जब अपनी आंखों के सामने डूब रहा हो तो कैसे कोई आम इंसान इसे सहन कर सकेगा।

घर की इस स्थिति को देख कर हीरालाल के छोटे भाई प्रवीण ने जब यह बात जानी तो वे अवसाद से भर गए। चूंकि वह भी एक प्रभावितों में से एक हैं। उन्हें केवल अब तक उनकी जमीन का मुआवजा मिला है लेकिन वह इतना कम है कि उससे वे दूसरी जगह पर जमीन खरीद पाने में असमर्थ थे ऐसे में जब उन्हें अपने परिवार की इस स्थिति की जानकारी मिली तो उन्होंने राजघार गांव पर बने पुल से झलांग लगा कर अपनी इहलीला समाप्त करने की कोशिश की। हालांकि इन दिनों डूब प्रभावित गांवों में लगी पुलिस ने तुरंत उन्हें बचाकर नजदीक के अस्पताल में भर्ति करा दिया है। उनकी हालत खतरे से बाहर बताई जा रही है।

जांगरवा गांवा में रात में अचानक से डूब आई सैकड़ों बुढ़े-बच्चे और औरतों को जान बचाने के लिए अपने घर-द्वार छोड़ने पर मजबूर हुए है। इस गांव में नर्मदा बचाओं आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने स्वयं जाकर देखा और रोते-बिखलते लोगों के आंसू पोंछे। ग्रामीणों ने समवेत स्वर में कहा कि बांध ने तो हमको बर्बाद कर दिया। इतनी बर्बादी तो प्राकृतिक आपदा में भी नहीं आती है। कम से कम उसमें सरकार कुछ करती तो यहां तो सरकार ही कथित तौर पर प्राकृतिक आपदा की जिम्मेदार बनी हुई है। ऐसे में हम पर कौन मेहरबानी करेगा। इसी गांव के दिलीप ने बताया कि हमारी 15 एकड़ जमीन में पानी घुस गया है। जबकि हमें उब से बाहर बताया गया है। हालांकि मेधा पाटकर ग्रामीणों को दिलाया कि हम सब आपके साथ हैं।

बिना पुनर्वास डूब के कारण प्रभावित हुए हजारों लोग अपने भविष्य की चिंता को लेकर गहरे अवसाद में हैं। डूब के बावजूद कई प्रभावितों का अपने घरों को छोड़ना मुश्किल हो रहा है। सेमल्दा में नानुराम प्रजा‍पति की केले की खेती और घर दोनों डूब चुके हैं। उन्हें कृषि जमीन की पात्रता है लेकिन एनवीडीए ने अभी तक जमीन उपलब्ध नहीं करवाई है। इसलिए उन्होंने अपना घर से छोड़ने से इंकार कर दिया है। चिखल्दा में अचानक आई डूब के शिकार लोग फूट पड़े थे और पूरे गांव में गमगीन माहौल हो गया था। इस प्रकार के दर्जनों गांव हैं।

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