उत्तराखंड: राहत के नाम पर क्यों उड़ाए जा रहे हैं हेलीकॉप्टर?

उत्तराखंड में हेलीकॉप्टर की क्रेश लैंडिंग के बाद यह सवाल उठ रहा है कि सरकार सड़कें खोलने की बजाय प्राइवेट हेलीकॉप्टर क्यों चलवा रही है

By Trilochan Bhatt

On: Friday 23 August 2019
 
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में राहत कार्य में लगे एक हेलीकॉप्टर को शुक्रवार को क्रेश लैंडिंग करनी पड़ी। फोटो: आपदा प्रबंधन विभाग

 
उत्तरकाशी के आपदाग्रस्त क्षेत्र में राहत कार्यों में लगे एक हेलीकाॅप्टर के पिछले दिनों क्रैश होने और अब एक और हेलीकाॅप्टर के बेहद खतरनाक परिस्थितियों में क्रैश लैंडिंग ने राहत और बचाव कार्यों पर कई सवाल खड़े कर दिये हैं। खास बात यह है कि स्थानीय लोग जिलाधिकारी को पत्र लिखकर हेलीकाॅप्टर से राहत बंटवाने का काम बंद करने की मांग दो दिन पहले ही कर चुके हैं। इसके बावजूद न सिर्फ यहां लगातार हेलीकाॅप्टर भेजे जा रहे हैं, बल्कि उन्हें बेहद खतरनाक परिस्थितियों में मात्र गूगल मैप के सहारे चलाया जा रहा है। शुक्रवार को टिकोची में हेरिटेज कंपनी के हेलीकाॅप्टर की क्रैश लैंडिंग हुई, जबकि इससे पहले बुधवार को मोल्डी में इसी कंपनी को हेलीकाॅप्टर क्रैश हो गया था।
 
आपदा में सड़कें टूट जाने के बाद राहत और बचाव कर्मचारियों को प्रभावित गांवों तक पहुंचाने के लिए राज्य सरकार के हेलीकाॅप्टर को लगाया गया था। उसके बाद राहत सामग्री वितरित करने के नाम पर पहले वायु सेना से एक हेलीकाॅप्टर किराये पर लिया गया और उसके बाद दो हेलीकाॅप्टर एक प्राइवेट कंपनी हेरिटेज से किराये पर लिये गये। हेरिटेज कंपनी का एक हेलीकाॅप्टर दो दिन पहले 21 अगस्त को क्रैश हो गया था। इसमें पायलट और को-पायलट सहित तीन लोगों की मौत हो गई थी। 
 
लगातार पांच दिनों से हेलीकाॅप्टर चलाये जाने पर कई तरह के सवाल भी उठाये जा रहे हैं। स्थानीय लोगों ने इस पर नाराजगी भी जताई थी और 21 अगस्त को आराकोट न्याय पंचायत क्षेत्र के दर्जनभर लोगों के हस्ताक्षर वाला एक पत्र डीएम को सौंपा गया था। पत्र में अनावश्यक रूप से चलाये जा रहे हेलीकाॅप्टर बंद करने की मांग की गई थी। पत्र में कहा गया था कि केवल बहुत जरूरी होने पर ही हेलीकाॅप्टर चलाया जाए और हेलीकाॅप्टर के बजाय सड़के चालू करने पर ध्यान दिया जाए।
 
आपदा से करीब 52 गांव प्रभावित हैं। हेलीकाॅप्टर लैंडिंग के लिए स्थाई व्यवस्था केवल मोरी और आराकोट में व्यवस्था की गई है। कुछ जगहों में बेहद खतरनाक हालत में अस्थाई लैंडिंग की व्यवस्था की गई है। बताया जाता है कि अस्थाई हेलीपैड के लिए स्थानों का चयन किसी सर्वे के आधार पर नहीं, बल्कि गूगल सर्च के आधार पर किया गया। हेलीकाॅप्टर भी गूगल मैप के आधार पर ही बेहद असुरक्षित तरीके से चलाये जा रहे हैं। 
 
बताया जा रहा है कि प्रभावित ग्रामीणों को किन चीजों की जरूरत है, जिसे हेलीकाॅप्टर से ड्राॅप किया जा सके, इसके लिए आपदाग्रस्त क्षेत्रों में कैंप कर रहे उत्तरकाशी के जिलाधिकारी की ओर से कोई नीड एसेसमेंट नहीं भेजा गया है। देहरादून में बैठे अधिकारी अपने विवेक के आधार पर सामग्री भेज रहे हैं, लेकिन उनका विवेक मैदानी हिस्सों तक ही सीमित है, जहां बाढ़ आने पर सबसे पहली जरूरत पीने के पानी की होती है, इसलिए वे हेलीकाॅप्टर से पानी की बोतलें सबसे ज्यादा भेज रहे हैं, जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में गांवों के आसपास पानी के कई प्राकृतिक स्रोत होते हैं, लिहाजा पानी की बोतलों की कोई जरूरत नहीं पड़ती।
 
आपदा प्रभावित गांव दुचाणू की ग्राम प्रधान शकुंतला देवी कहती हैं कि हेलीकाॅप्टर से पानी की बोतलें और दो-दो किलो के चावल के पैकेट भेजे जा रहे हैं। पानी की बोतलों की यहां कोई जरूरत नहीं है और दो-दो किलो चावल से हम लोगों का काम नहीं चल रहा है। उनका कहना है कि हमारी पहली जरूरत सड़कें खोलने की है। यदि सड़कें नहीं खुली तो सेब खराब हो जाएगा।  
 

मोरी ब्लाॅक के पूर्व ज्येष्ठ प्रमुख बचन सिंह पंवार का कहना है कि हेली सेवाओं पर बिना जरूरत पैसा बर्बाद किया जा रहा है। इस समय क्षेत्र की पहली चिन्ता सेब है। यदि सेब नहीं भेजा जा सका तो पूरे साल मुश्किल हो जाएगी। हमने दो दिन पहले ही डीएम को लिखित रूप से प्रार्थना पत्र दे दिया था कि हेलीकाॅप्टर बंद करो और सड़कें खोलो। इसके बावजूद हेलीकाॅप्टर चलाये जा रहे हैं। नतीजा एक बार फिर सामने आ गया है।

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