मार्च में बिजली गिरने से देश के 12 राज्यों में गई 60 की जान, भारी बारिश से हुई छह लोगों की मौत

12 राज्यों में वज्रपात की इन घटनाओं में करीब 60 लोगों ने अपनी जान गंवाई है। जो मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा थी। जहां छह से 20 मार्च 2023 के बीच इन घटनाओं में 20 लोगों की जान गई है

By Lalit Maurya

On: Sunday 09 April 2023
 
फोटो: आईस्टॉक

मार्च के महीने में आई जलवायु आपदाओं को देखें तो देश में बिजली गिरने की घटनाओं ने भारी नुकसान पहुंचाया है। 12 राज्यों में वज्रपात की इन घटनाओं में करीब 60 लोगों ने अपनी जान गंवाई है। जो मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा थी। जहां छह से 20 मार्च 2023 के बीच इन घटनाओं में 20 लोगों की जान गई है।

इसी तरह 18 से 25 मार्च के बीच बिजली गिरने की घटनाओं में छत्तीसगढ़ में 12 लोगों की जान गई थी। वहीं 15 से 16 मार्च के बीच महाराष्ट्र  में बिजली गिरने की घटनाओं में छह लोगों की मौत हुई थी। ओडिशा में 29 मार्च को वज्रपात में पांच लोगों ने अपनी जान गंवाई। वहीं गुजरात और तेलंगाना में इसकी वजह से चार-चार लोगों की अक्समात मृत्यु हो गई थी। यह जानकारी भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा मार्च 2023 के लिए जारी क्लाइमेट रिपोर्ट में सामने आई है।

असम, राजस्थान और केरल हरेक राज्य में दो-दो लोगों की मौत हुई थी। वहीं आंध्रप्रदेश, झारखण्ड और उत्तरप्रदेश में भी जानें गई थी। रिपोर्ट में जारी आंकड़ों के मुताबिक 17 से 18 मार्च 2023 के बीच उत्तर प्रदेश में हुई मूसलाधार बारिश में पांच लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 17 मार्च को गुजरात में हुई बारिश में भी एक की मौत दर्ज की गई है।

इसी तरह छह मार्च को जम्मू कश्मीर में हुई भूस्खलन में एक की जान चली गई थी। छत्तीसगढ में 19 और 20 मार्च को गिरे ओलों ने न केवल फसलों को नुकसान पहुंचाया साथ ही एक व्यक्ति की मौत भी इस ओला वृष्टि से हुई है। कुल मिलकर देखें तो मार्च के दौरान आई इन आपदाओं ने 68 लोगों की जिंदगियों को लील लिया था, जबकि इसकी वजह से 70 लोग जख्मी हो गए थे। इतना ही नहीं इन आपदाओं में 550 मवेशियों के भी मारे जाने की सूचना मिली है।

रिपोर्ट की मानें तो मार्च 2023 के दौरान देश के कई हिस्सों में भारी बारिश हुई थी। 1901 के बाद यह सातवां मौका है जब दक्षिणी प्रायद्वीपीय क्षेत्र में इतनी बारिश हुई है। आंकड़ों के मुताबिक मध्य भारत में तो सामान्य से 206.4 फीसदी ज्यादा बारिश हुई।

इसी तरह भारत के दक्षिणी प्रायद्वीपीय हिस्से में सामान्य से 107 फीसदी तक ज्यादा बारिश हुई थी। देश के पूर्वी और उत्तरपूर्वी हिस्सों में भी सामान्य से 12 फीसदी ज्यादा बारिश रिकॉर्ड की गई है। यदि सम्पूर्ण भारत की बात करें तो इस बार मार्च में औसत से 26 फीसदी ज्यादा बारिश दर्ज की गई है।

क्या जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण का वज्रपात से है कोई कनेक्शन

आंकड़ों पर गौर करें तो 1967 से 2012 के बीच भारत में प्राकृतिक आपदाओं के कारण जितनी जाने गई हैं उनमें से 39 फीसदी मौतों के लिए यह आकाशीय बिजली ही जिम्मेवार थी। इसके बावजूद इन पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार पश्चिमी और मध्य भारत में बिजली गिरने का प्रकोप सबसे ज्यादा है।

विभाग ने देश में बारह ऐसे राज्यों की पहचान की है, जहां सबसे अधिक वज्रपात की घटनाएं होती हैं। इनमें मध्य प्रदेश सबसे ऊपर है। इसके बाद महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और फिर ओडिशा का नंबर आता है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि बिजली गिरने की घटनाओं के लिए जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण भी जिम्मेवार हैं। भारतीय वैज्ञानिकों के मुताबिक एरोसॉल आकाशीय बिजली गिरने का एक मुख्‍य कारण हो सकते हैं। हालिया अध्‍ययन के मुताबिक जहां एरोसॉल की मात्रा अधिक होती हैं, वहां ऐसी घटनाएं  घटने की आशंका भी अधिक होती है।

इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि 2020 में लॉकडाउन के दौरान आकाशीय बिजली गिरने का सिलसिला आठ फीसदी तक घट गया था, जो कहीं न कहीं प्रदूषण में आई कमी का नतीजा था। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि कहीं न कहीं जलवायु में आता बदलाव भी बिजली गिरने की घटनाओं को प्रभावित कर रहा है।

यह सही है कि हमारे पास ऐसी कोई तकनीक मौजूद नहीं है जिसकी मदद से बिजली गिरने की इन घटनाओं को नियंत्रित किया जा सके, लेकिन हम इससे होने वाली मौतों को सीमित कर सकते हैं। तिरुवनंतपुरम में इंस्टीट्यूट ऑफ लैंड एंड डिजास्टर मैनेजमेंट का सुझाव है कि इस संबंध में राज्य सरकारें अपने-अपने राज्यों में कमजोर क्षेत्रों की पहचान कर सकती हैं। अमेरिका या कनाडा की तरह भारत में आकाशीय बिजली की पहचान करने वाला नेटवर्क नहीं है। लेकिन लोगों को जागरूक करके इससे होने वाली त्रासदी को कम किया जा सकता है।

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