यहां जानिए आखिर क्यों हो रही है उत्तराखंड में बार-बार बादल फटने की घटनाएं?

2013 में विनाशकारी बादल फटने की घटना के बाद 5000 लोगों की जान चली गई थी। इसे देखेते हुए डॉप्टर वेदर रडार जैसी चेतावनी प्रणाली को मजबूत करने की बात उठी थी जो पूरी मूर्त नहीं हो सकी। 

By Akshit Sangomla, Vivek Mishra

On: Thursday 13 May 2021
 

उत्तराखंड में लगातार हो रही तेज या भारी वर्षा के कारण पहाड़ी इलाकों में तबाही हो रही है। इसे आमतौर पर क्लाउडबर्स्ट यानी बदल फटने की घटना कहा जा रहा है। हालांकि क्या यह वाकई बादल फटने की घटना है और यदि है तो क्यों हो रही है? इसका सरल जवाब है कि हम संसाधनों के अभाव में बादलों के फटने यानी कुछ ही घंटों में होने वाली भारी वर्षा का अनुमान लगाने में विफल हो रहे हैं। लेकिन साथ-साथ जलवायु और मौसम की कुछ ऐसी गतिविधियां भी चल रही हैं जो इन घटनाओं की तीव्रता को बढ़ा रही हैं। 

संयुक्त राज्य अमेरिका में मैरीलैंड विश्वविद्यालय के जलवायु वैज्ञानिक रघु मुर्तुगुडे ने 12 मई, 2021 को डाउन टू अर्थ को बताया कि उत्तराखंट में हाल-फिलहाल होने वाली मौसमी घटनाएं जिसे क्लाउडबर्स्ट के तौर पर जाना जा रहा है वह संबंधित क्षेत्रों को गर्म होने के कारण हो सकते हैं। 

3 मई को उत्तराखंड के चार पहाड़ी जिलों रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी और चमोली में ऐसी घटनाओं ने काफी नुकसान पहुंचाया है। इनमें से नवीनतम बादल फटने की घटना 11 मई की शाम को हुई जिसने टिहरी गढ़वाल जिले के देवप्रयाग शहर में काफी नुकसान पहुंचाया। वहीं, उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग जिलों से दो अन्य घटनाओं की भी सूचना मिली है। 

हालिया घटनाओं में अब तक किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है, हालांकि कई इमारतें ढ़ह गईं और सड़कें कीचड़, पानी और मलबे से भर गईं।

रघु मुर्तुगडे डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि बादल फटने की घटनाएं मौसम की घटनाएं थीं जिनकी किसी परिभाषा के अनुसार भविष्यवाणी करना कठिन है। वह इन घटनाओं के विश्लेषण में कहते हैं कि वर्तमान परिदृश्य में ईरान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के ऊपर उत्तर भारत के पश्चिम में बहुत गर्म तापमान की विसंगति है, जो कि असमान्य है। जब अरब की गर्मी कम होती है तो उत्तरी अरब सागर में हवाएं चलती हैं और ओमान के तट पर एक तेज हवा चली है जो गुजरात से सीधे उत्तराखंड में जा रही है। मेरा अनुमान है कि इससे वहां बादल फटने की संभावना बढ़ रही है।

मुर्तुगुड्डे ने कहा कि मार्च, अप्रैल और मई के महीने उत्तराखंड में सामान्य से अधिक गर्म रहे। "यह भी दबाव को कम करेगा और ऐसी हवाओं को गति देगा।"

अनुसंधान भी मुर्तुगुडे के बयानों का समर्थन करते हैं।  मार्च 2017 में जर्नल अर्थ साइंस समीक्षा पत्रिका में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार जून में शुरू होने वाले दक्षिण पश्चिम मानसून के दौरान भारत में क्लाउडबर्स्ट आम तौर पर अधिक आम हैं।

वहीं, पूरे क्षेत्र में निम्न-दबाव वाला रिज भी था जिसने बादल फटने की संभावना को बढ़ा दिया था।

बादल फटना क्या है?

क्लाउडबर्स्ट बहुत कम समय में एक सीमित क्षेत्र में अचानक और चरम वर्षा की घटनाएं हैं। बादल फटने की कोई सार्वभौमिक परिभाषा नहीं है।

हालांकि, भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) बादल फटने को एक घटना के रूप में परिभाषित करता है, जहां किसी एक क्षेत्र में 20-30 वर्ग किलोमीटर दायरे में एक घंटे के अंतराल में 100 मिलीमीटर बारिश हुई है।

क्लाउडबर्स्ट तब होता है जब नमी से चलने वाली हवा एक पहाड़ी इलाके तक जाती है, जिससे बादलों के एक ऊर्ध्वाधर स्तंभ का निर्माण होता है जिसे  क्यूमुलोनिम्बस के बादलों के रूप में जाना जाता है। इस तरह के बादल आमतौर पर बारिश, गड़गड़ाहट और बिजली गिरने का कारण बनते हैं। बादलों की इस ऊपर की ओर गति को 'ऑरोग्राफिक लिफ्ट' के रूप में भी जाना जाता है।

इन अस्थिर बादलों के कारण एक छोटे से क्षेत्र में भारी बारिश होती है और पहाड़ियों के बीच मौजूद दरारों और घाटियों में बंद हो जाते हैं।

बादल फटने के लिए आवश्यक ऊर्जा वायु की उर्ध्व गति से आती है। क्लाउडबर्स्ट ज्यादातर समुद्र तल से 1,000-2,500 मीटर की ऊंचाई पर होते हैं।

नमी आमतौर पर पूर्व से बहने वाली निम्न स्तर की हवाओं से जुड़े गंगा के मैदानों पर एक कम दबाव प्रणाली (आमतौर पर समुद्र में चक्रवाती तूफान से जुड़ी) द्वारा प्रदान की जाती है।

कभी-कभी उत्तर पश्चिम से बहने वाली हवाएँ भी बादल फटने की घटना को सहायता प्रदान करती हैं। क्लाउडबर्स्ट घटना होने के लिए कई कारकों को एक साथ आना पड़ता है।

 

बादल फटने की भिन्न परिभाषाएँ

वेदर चैनल ने बताया कि: हालांकि, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि अभी तक क्लाउडबर्स्ट ’की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है और यह संभावना नहीं है कि आधिकारिक घोषणा के लिए किसी भी स्थान पर पर्याप्त भारी बारिश हुई हो। थोड़े समय के भीतर बहुत भारी बारिश की कोई भी घटना अक्सर बादल फटने के रूप में कही जाती है, जबकि आधिकारिक परिभाषा आमतौर पर दुनिया भर में अलग-अलग होती है।

अर्थ साइंस रिव्यू पेपर ने यह भी बताया कि बादल फटने की आईएमडी परिभाषा को उस क्षेत्र के आधार पर बदलने की जरूरत है जहां वे हुए। इसका आधार स्थानीय सामान्य वर्षा दर, संभावित नुकसान और क्षेत्र की भेद्यता होना चाहिए। 

उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाओं की अत्यधिक संभावना है। पृथ्वी विज्ञान समीक्षा में हिमालय के दक्षिणी रिम से 30 प्रमुख क्लाउडबर्स्ट घटनाओं की रिपोर्ट उत्तराखंड में हुई। 2019 में, चमोली जिले में बादल फटने की घटना हुई, जबकि 2018 में इन घटनाओं के एक दर्जन थे। लेकिन इन घटनाओं की आधिकारिक प्रतिक्रिया धीमी रही है।

2013 में विनाशकारी बादल फटने की घटना के बाद 5000 लोगों की जान चली गई थी। इसे देखेते हुए डॉप्टर वेदर रडार जैसी चेतावनी प्रणाली को मजबूत करने की बात उठी थी, जिसे अभी तक प्रमुख क्षेत्रों में नहीं लगाया जा सका है। 

जनवरी 2021 में आईएमडी और राज्य सरकार ने कुमाऊं के मुक्तेश्वर में एक डॉपलर मौसम रडार स्थापित किया, जो कई वर्षों से पाइपलाइन में था। इसकी  स्थापना का कारण क्लाउडबर्स्ट और अन्य चरम वर्षा की घटनाओं की भविष्यवाणी करना है। 

रघु मुर्तुगडे ने बताया कि डॉपलर वेदर रडार संभावित बादल फटने के वास्तविक समय की ट्रैकिंग के लिए आदर्श हैं। खासकर यदि उनके पास एक नेटवर्क है जो उन्हें हवाओं और नमी को ट्रैक करने की अनुमति देता है। 

हालांकि गढ़वाल क्षेत्र में यह डॉप्लर सिस्टम अभी तक नहीं लग पाए हैं। और वर्तमान रडार उन जगहों से 200-400 किमी दूर है जहां हाल ही में बादल फटने की घटनाएं हुई हैं। इसलिए उन्हें भविष्यवाणी करने में ज्यादा मदद नहीं मिली।

धनौल्टी, टिहरी गढ़वाल जिले और लैंसडाउन, पौड़ी गढ़वाल जिले में दो और डॉप्लर मौसम रडार लगाने की योजना है। सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ के कारण राज्य में अन्य लोगों के साथ-साथ चार बादल फटने वाले जिलों को भी 12 मई और 13 मई को भारी वर्षा के अलर्ट पर रखा गया है।

Subscribe to our daily hindi newsletter