ताे केंद्र सरकार ने क्यों बंद किया सेंटर फॉर ग्लेशियोलॉजी सेंटर

चमोली आपदा के बाद उत्तराखंड में ग्लेशियोलॉजी सेंटर खोलने की मांग राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने की है

By Manmeet Singh

On: Tuesday 23 February 2021
 
Photo: wikimedia commons

चमोली आपदा के बाद राज्य में ग्लेशियोलॉजी सेंटर खोलने की मांग की जा रही है, लेकिन यह बात कम लोग ही जानते हैं कि राज्य में बन रहा राष्ट्रीय स्तर का सेंटर फॉर ग्लेशियोलॉजी पिछले साल अचानक बंद कर दिया गया, जबकि इस सेंटर को खोलने की कवायद लगभग एक दशक से चल रही थी। हालांकि यह कहना सही नहीं होगा कि अगर यह सेंटर खुल जाता तो चमोली आपदा नहीं आती, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि ग्लेशियरों का व्यापक अध्ययन बहुत जरूरी हो गया है, जो कई आपदाओं से बचाएगा। 

2004 से पहले जब ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय में ग्लेशियरों के पिघलने की बात प्रमाणित हुई, तब यह महसूस किया गया कि देश का अपना ग्लेशियोलॉजी सेंटर होना चाहिए। 2009 में ग्लेशियोलॉजिकल रिसर्च के क्षेत्र में बड़ी प्रगति करने के लिए सरकार ने 10 वीं योजना के दौरान हिमालयन ग्लेशियोलॉजी में फील्ड ऑपरेशन और अनुसंधान के लिए एक राष्ट्रीय केंद्र स्थापित करने की योजना को स्वीकृति दी।

2010 के बाद से नेशनल ग्लेशियोलॉजी सेंटर की अवधारणा पर काम शुरू हुआ। पहले ये तय करने में ही बहुत समय लगा कि इस सेंटर को कहां स्थापित किया जाए। वेस्टर्न हिमालय में स्थापित किया जाए या सेंट्रल हिमालय में। वेस्टर्न हिमालय में जम्मू कश्मीर और हिमाचल आते हैं। कई दौर की बैठकों के बाद तय हुआ कि सेंट्रल हिमालय यानी उत्तराखंड में इस रिसर्च सेंटर को स्थापित किया जाये। इसके पीछे ये मजबूत तर्क था कि उत्तराखंड की राजधानी में ही सर्वे ऑफ इंडिया का मुख्यालय है और दूसरा वहां पर वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान भी मौजूद है। बाद में वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान को ही इस परियोजना की नोडल एजेंसी बनाया गया। वाडिया संस्थान ही इस परियोजना के निर्माण पर मुख्य भूमिका भी निभा रहा था।

वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के पूर्व महानिदेशक और इस परियोजना में शुरूआत से जुड़े डॉ. प्रो बीआर अरोड़ा बताते हैं कि ग्लेशियोलॉजी सेंटर में होने वाले शोध से ये पता चलता कि ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव को कैसे रोका जा सकता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिम रेखा (स्नो लाइन) 50 मीटर तक पीछे खिसक गई है। जिसके नकारत्मक प्रभाव अब हिमालय के जलवायु और जैविक विविधता पर पड़ने लगे हैं। इस परियोजना में देश के बड़े ग्लेशियर वैज्ञानिक एक सेंटर पर आकर शोध करते।

इस परियोजना को केंद्र वित्तीय मंत्रालय से लगभग 211 करोड़ रुपये का बजट भी जारी हो चुका था। नेशनल ग्लेशियोलॉजी सेंटर के लिए उत्तराखंड में मसूरी के समीप लगभग 200 हेक्टेयर भूमि तय कर दी गयी थी। संस्थान के लिये वैज्ञानिक और अन्य स्टॉफ का ढांचा स्वीकृत होने के साथ ही डीपीआर भी फाइनल हो चुकी थी। लेकिन 25 जुलाई 2020 को केंद्रीय विज्ञान एंव प्रोद्यौगिकी मंत्रालय की ओर से वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के पास पत्र आया। पत्र में कहा गया कि सेंटर फॉर ग्लोशियलॉजी को वाडिया संस्थान में मर्ज किया जा रहा है। वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. कलाचंद साईं बताते हैं कि ये केद्र सरकार का निर्णय है। हम अपने स्तर पर वाडिया में शोध कार्य करते रहेंगे।

वर्ल्ड ग्लेशियर मॉनीटरिंग सर्विस में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ ग्लेशियर वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल बताते हैं कि सेंटर फॉर ग्लेशियोलॉजी एक दूरगामी परियोजना थी। यहां होने वाले अध्ययन ग्लेशियरों के प्रति हमारी समझ को बढ़ाते, क्योंकि इस संस्थान में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के वैज्ञानिक रिसर्च के लिए आते। इस सेंटर का फायदा आने वाले दिनों में जरूर मिलता। 

उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के निदेशक और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एमपीएस बिष्ट बताते हैं कि पूरे हिमालय परिक्षेत्र में मौसमी चक्र में भारी बदलाव आया है। मसलन, पोस्ट मानसून (सितंबर से दिसंबर) के वक्त में ही 3000 मीटर से ऊचारी ऊंचाई वाली पहाडियां हिमाच्छादित हो जाती थी, लेकिन पिछले दस सालों में बर्फबारी जनवरी, फरवरी, मार्च और अप्रैल तक हो रही है। इसके बाद गर्मी भी जुलाई आखिरी तक जा रही है और मानसून भी फिर देरी से ही जा रहा है। ऐसे समय में एक ग्लेशियोलॉजी सेंटर की बहुत जरूरत है। 

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