पश्चिमी यूपी में जानलेवा जल प्रदूषण, सरकार नहीं जानती 107 गांव कैसे पी रहे पानी

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 107 गांवों की आबादी जानलेवा जल प्रदूषण से त्रस्त है। अब तक अदालत का डंडा भी स्थिति में सुधार नहीं ला सका है।

By Vivek Mishra

On: Wednesday 25 September 2019
 
Photo : Jyotika Sood

औद्योगिक प्रदूषण और शासन की उपेक्षा के गठजोड़ ने ग्रामीणों को मौत की दहलीज पर पहुंचा दिया है। मामला पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छह जिलों में जल प्रदूषण का है। सहारनपुर, मेरठ, गाजियाबाद, शामली, मुजफ्फनगर, बागपत जिलों के 107 गांवों की आबादी जानलेवा जल प्रदूषण से त्रस्त है। लोगों की फरियाद कचरे के डिब्बे में है। न ही अदालत का डंडा काम आ सका है और न ही शासन के रजिस्टर में ग्रामीणों के सरकारी मदद की कोई इबारत दर्ज है। स्वच्छ जल आपूर्ति के लिए एक बार फिर से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को तीन हफ्तों के भीतर कार्रवाई करने का आदेश दिया है।

कई सुनवाइयों के बाद एनजीटी में दाखिल की गई स्टेटस रिपोर्ट के मुताबिक सहारनपुर में 01 , मेरठ में 10, गाजियाबाद में 01, शामली में 29 गांव, मुजफ्फनगर में 56, बागपत में 51 गांव ऐसे हैं जिनमें जलापूर्ति की परियोजनाओं को लेकर काम चल रहा है। स्थिति यह है कि इनमें 107 गांवों में न ही जलापूर्ति है और न ही इस बारे में शासन को कोई जानकारी है कि यहां की ग्रामीण आबादी किस तरह से पानी की जरूरतों को पूरा कर रही है।

दो वर्ष पहले दोआबा पर्यावरण समिति की ओर से एनजीटी में याचिका दाखिल कर यह आरोप लगाया गया था कि औद्योगिक और घरेलू प्रदूषण के कारण काली, कृष्णा और हिंडन नदी में जानलेवा प्रदूषण फैलाया जा रहा है। जिसका खामियाजा नदियों के तट पर बसे गावों को उठाना पड़ रहा है। संस्था का आरोप है कि जल प्रदूषण की वजह से बागपत जिले में 71 लोग कैंसर से मर गए और 47 से अधिक लोग बीमार होकर शैय्या पर हैं। वहीं, 1000 से अधिक आबादी विभिन्न बीमारियों की शिकार है।

इन आरोपों पर गौर करने के बाद एनजीटी ने उत्तर प्रदेश समेत सभी जिम्मेदार एजेंसियों को 08 अगस्त 2018 को समिति गठित कर छह जिलों के 154 प्रभावित गांवों में भू-जल जांच और दौरे कर विस्तृत जांच का आदेश दिया था।  

11 फरवरी, 2019 को एनजीटी मे जांच समिति की ओर से स्थिति और सिफारिशों वाली रिपोर्ट दाखिल की गई। रिपोर्ट में औद्योगिक प्रदूषण की पुष्टि करते हुए स्वच्छ जल आपूर्ति के लिए कदम उठाने की सिफारिश थी। 15 मार्च 2019 को इस रिपोर्ट पर गौर किया गया। पीठ ने रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए उत्तर प्रदेश मुख्य सचिव को एक महीने के भीतर सभी सिफारिशों पर अमल करने का आदेश दिया। ग्रामीणों को फिर भी स्वच्छ जल की आपूर्ति फिर भी नहीं की गई। नदी प्रदूषण और लोगों की सेहत को ध्यान में रखते हुए नाराज एनजीटी ने उत्तर प्रदेश सरकार के कार्रवाई की विफलता पर पांच करोड़ रुपये परफॉरमेंस गारंटी (काम की गारंटी) सीपीसीबी के पास जमा करने का आदेश सुनाया। कहा कि छह महीने में एक निर्णायक कार्ययोजना बनाकर अमल करें अन्यथा परफॉरमेंस गारंटी की रकम जब्त कर ली जाएगी।   

25 जुलाई को यह मामला फिर से एनजीटी पीठ के समक्ष आया। समिति की संरचना में बदलाव हुआ। हालांकि छह महीने बीत जाने के बाद की स्थिति रिपोर्ट भी एनजीटी ने तलब की। अब 20 सितंबर, 2019 को जब आदेश के अनुपालन रिपोर्ट पर एनजीटी ने गौर किया तो पाया कि 25 जुलाई, 2019 को भी 148 गांवों में से 41 गांवों में ही जल आपूर्ति की बात बताई गई थी और एक महीने बाद भी कोई प्रगति नहीं हुई है। शेष 107 गांवों के लिए जो भी काम हैं वह जहां के तहां विभिन्न चरणों में मंजूरी आदि के लिए लंबित हैं। हालांकि, रिपोर्ट में यह बताया गया कि 8782 हैंडपंप को जांचकर भंयकर प्रदूषण के लिए 1088 हैंडपंप को जमीन से उखाड़ दिया गया। साथ ही हेल्थ कैंप भी इलाकों में आयोजित किए जा रहे हैं।

अब इस रिपोर्ट पर एनजीटी कई सवाल खड़े किए हैं? पीठ ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि हैंडपंप की जलगुणवत्ता क्या है? न ही यह स्पष्ट है कि ज्यादातर कैंसर की पुष्टि होने वाले मरीजों को क्या सुविधा दी जा रही है? न ही यह स्पष्ट है कि 107 गांवों के स्वच्छ जल की उपलब्धता को लेकर क्या किया गया है? न ही यह स्पष्ट है कि प्रदूषण फैलाने वाले 230 से अधिक स्रोतों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई और न ही यह साफ है कि 9.40 करोड़ रुपये पर्यावरण जुर्माने का इस्तेमाल बेहतरी के लिए कहां किया गया?

इन सवालों के साथ जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा है कि यदि 21 अक्तूबर, 2019 से पहले मुख्य सचिव स्वच्छ जल की आपूर्ति को लेकर तमाम लंबित परियोजनाओं और अन्य आदेशों के अनुपालन की रिपोर्ट नहीं दाखिल करते हैं तो उन्हें तलब किया जाएगा। कोर्ट के समक्ष पेश होकर उन्हें अपनी बात रखनी होगी।  

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