हरियाणा सरकार जांच नीति बनाने में जुटी, उद्योग प्रदूषण के काम में डटे
पानीपत और सोनीपत में करीब 100 औद्योगिक ईकाइयां बिना अनुमति भू-जल दोहन कर रही हैं लेकिन अभी तक कार्रवाई नहीं की गई।
On: Friday 02 August 2019
हरियाणा के औद्योगिक क्षेत्रों में भू-जल के अवैध दोहन और प्रदूषण पर रोकथाम न होने के कारण करीब दो लाख लोगों की सेहत दांव पर है। एक तरफ राज्य सरकार का दावा है कि वह सख्त नीति बनाने की प्रक्रिया में जुटी है तो दूसरी तरफ कार्रवाई से मुक्त बेखौफ औद्योगिक ईकाईयां प्रदूषण गतिविधि में डटे हैं।
हरियाणा के जींद, कैथल, करनाल, कुरुक्षेत्र, पलवल, पानीपत, पंचकुला, रोहतक, सोनीपत और यमुना नगर जिले में औद्योगिक प्रदूषण जारी है। पहले एनजीटी ने औद्योगिक प्रदूषण पर कार्रवाई के लिए बीते वर्ष 11 सितंबर, 2018 को आदेश दिया था। इस आदेश के आधार पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को आदेश दिया। लेकिन राज्य तक यह आदेश पहुंचते-पहुंचते बेअसर हो गया। न तो औद्योगिक ईकाइयों के जरिए किए जा रहे भू-जल प्रदूषण की जांच की गई और न ही प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर कार्रवाई स्वरूप पर्यावरणीय क्षति वसूलने की कोशिश की गई।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 30 जुलाई को इन तथ्यों पर गौर करते हुए हरियाणा सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। एनजीटी ने सख्ती के साथ न सिर्फ उद्योंगों की जांच का आदेश दिया है बल्कि कहा है कि पर्यावरणीय क्षति वसूलने में यह भी हिस्सा जोड़ें कि उद्योगों के जरिए कितना वायु प्रदूषण किया जा रहा है। पीठ ने इस संबंध में एक महीने के भीतर रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है।
सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार के मुख्य सचिव ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में कहा कि उद्योगों के प्रदूषण की जांच नीति का प्रारूप (ड्राफ्ट) तैयार कर लिया गया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के चेयरमैन के साथ 25 जुलाई को इस मामले पर बैठक भी की गई थी। नई नीति के तहत उद्योगों की जांच की संख्या को बढ़ाया जाएगा।
जबकि एनजीटी ने अपने आदेश में कहा है कि यह नीति वास्तविक और व्यावहारिक होनी चाहिए, जिसका पूरी तरह अमल किया जा सके। यह नीति मूलरूप से वायु (बचाव और प्रदूषण नियंत्रण) कानून, 1981 व जल (बचाव और प्रदूषण नियंत्रण) कानून,1974 और पर्यावरण (संरक्षण) कानून,1986 को लागू करने में मददगार होनी चाहिए।
भू-जल की गुणवत्ता और दोहन की जांच के लिए एनजीटी ने केंद्रीय भू-जल प्राधिकरण को भी आदेश दिया है कि वह अधिक से अधिक निगरानी स्टेशन बनाएं। केंद्रीय भू-जल बोर्ड ने इस मामले में बताया का है कि बताया कि पानीपत में कुल 55 में 47 और सोनीपत में 34 में 13 औद्योगिक ईकाइयां बिना अनुमित के भू-जल का दोहन कर रही हैं। जबकि इन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने हरियाणा सरकार की ओर से पेश की गई रिपोर्ट में आधी-अधूरी जानकारी और खामियों के चलते उसे अस्वीकार कर दिया। वहीं, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केंद्रीय भू-जल प्राधिकरण और हरियाणा सरकार से इन सभी मामलों में एक महीने के भीतर रिपोर्ट तलब की है। एनजीटी ने जिस याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया है वह याची शैलेष सिंह की ओर से दाखिल की गई है।