भारत में मोटापा बढ़ रहा है, जबकि दुनिया में भूख पीड़ित बढ़ रहे हैं: अध्ययन

जैसे-जैसे दुनिया भर में लोग भूख से पीड़ित हो रहे हैं, भारत में लोग मोटे होते जा रहे हैं। साथ ही देश में कुपोषितों की संख्या घट रही है। 

By Dayanidhi

On: Thursday 08 August 2019
 

स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड नुट्रिशन इन वर्ल्ड 2019 की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 में दुनिया भर में लगभग 81.1 करोड़ लोगों के पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं था, वहीं 2018 में यह आंकड़ा 82 करोड़ हो गया। दूसरी तरफ, भारत में 2004-2006 के बीच देश की 22.2 फीसदी आबादी कुपोषित थी, जो 2016-18 में यह घटकर 14.5 फीसदी रह गई। हालांकि 2012 में मोटापे की दर 3 फीसदी थी, जो 2016 में बढ़कर 3.8 फीसदी हो गई। द सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, मोटे होने से व्यक्ति को टाइप 2 डायबिटीज, कोरोनरी हार्ट डिजीज, स्ट्रोक्स, ऑस्टियोआर्थराइटिस और कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं।

यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन द्वारा जारी की गई है। रिपोर्ट के अनुसार बढ़ती चिंता कम-वजन या अविकसित बच्चों के साथ अधिक वजन वाली माताओं की है, जो विभिन्न निम्न और मध्यम आय वाले देशों, जैसे बांग्लादेश, घाना, भारत, केन्या और पेरू में हैं। इससे पता चलता है कि संसाधनों तक पहुंच के लिए आर्थिक और सामाजिक असमानता में वृद्धि हुई है। छोटे कद और अधिक वजन की घटनाओं को बढ़ावा देने वाली विभिन्न असमानताओं में पहले बच्चे के जन्म के समय मां की आयु, माता का छोटा कद, परिवार का आकार और सामाजिक आर्थिक स्थिति से इसे जोड़ा गया है।

यूनिसेफ का कहना है कि भारत में प्रजनन आयु की एक तिहाई महिलाएं कमज़ोर तथा कुपोषित हैं। एक कुपोषित मां एक कुपोषित बच्चे को ही जन्म देगी, जिससे कुपोषण का चक्र लगातार बना रहेगा। पिछले एक दशक में, देश में पांच से कम उम्र के बच्चों के होने वाले छोटे कद में केवल 1% की कमी आई है और यदि यह वर्तमान दर पर जारी रहती है, तो 2022 तक, पांच वर्ष से कम आयु के 31.4% भारतीय छोटे कद के होंगे। कुपोषित माताओं के जन्म देने के अलावा, देश में बच्चों के छोटे कद की समस्या का सबसे बड़ा कारण माताओं का किशोरावस्था अथवा कम उम्र में बच्चे पैदा करना है। रिपोर्ट में कहा गया है, "किशोरावस्था में पैदा होने वाले बच्चों का कद छोटा होने का अधिक खतरा होता है। किशोर गर्भावस्था का संबंध बच्चे के पोषण से है"।

यह निष्कर्ष 60,096 भारतीय महिलाओं के एक अध्ययन के आधार पर निकाला गया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि पहली बार वे किस उम्र में गर्भवती हुई थी। इसमें पाया गया कि उनमें से 25 फीसदी महिलाएं 10-19 वर्ष की आयु समूह की थी। यह सर्वेक्षण चौथे राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस -4) द्वारा किया गया था और इसके कुप्रभाव सिर्फ उनके बच्चों तक ही सीमित नहीं है। इससे किशोर माताओं के प्रभावित होने की आशंका है - शोधकर्ताओं ने पाया कि वे महिलाएं कम वजन और एनीमिक भी हो सकती है।

संयुक्त राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा रिपोर्ट की तरह, इस अध्ययन में यह भी उल्लेख किया गया है कि बच्चों के छोटे कद का पैदा होना माता की आयु के अलावा, अन्य कारणों में खराब मातृ पोषण की स्थिति अथवा गर्भावस्था के दौरान माता को सम्पूर्ण पोषण का न होना, शिक्षा का स्तर कव होना, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच का न होना आदि शामिल है।

इसलिए मातृ और बाल पोषण में सुधार करने के लिए पहले शादी में उम्र बढ़ाने के लिए हस्तक्षेप करना, पहले जन्म में माता की उम्र, और लड़की की शिक्षा भी इसमें जरूरी है। इसके साथ-साथ घर में भोजन की मात्रा और पोषक तत्वों के स्तर में सुधार। बुनियादी पोषण और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए महिलाओं की पहुँच बढ़ाना, उनकी पानी और स्वच्छता सुविधाओं तक पहुँच बढ़ाना और अंत में, उन्हें समय से पूर्व गर्भधारण को रोकने के लिए सशक्त बनाने का प्रयास किया जाना, आदि विकसित बच्चों को जन्म देने के साथ स्वस्थ मातृत्व को अपनाने में मदद करेगा।

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