बचपन में लेड के हानिकारक स्तर के सम्पर्क में थे 50 फीसदी अमेरिकी, क्या भारत जैसे देशों में भी है इसका खतरा

वैश्विक स्तर पर 2019 में होने वाली 9 लाख मौतों के लिए सीसा जिम्मेवार था। साथ ही इसकी वजह से 2.17 करोड़ वर्षों के बराबर विकलांगता-समायोजित जीवन वर्षों (डीएएलवाइ) के बराबर हानि हुई थी

By Lalit Maurya

On: Friday 11 March 2022
 

अमेरिका की करीब आधी आबादी अपने बचपन में लेड (सीसा) के हानिकारक स्तर के सम्पर्क में थी, जोकि उनके स्वास्थ्य को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है। इस बारे में हाल ही में किए एक नए शोध से पता चला है कि लेड युक्त पेट्रोल के संपर्क में आने से करीब 17 करोड़ अमेरिकियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर व्यापक असर पड़ा था।

अनुमान है कि इसके चलते उनके औसत आईक्यू स्कोर में 2.6 पॉइंट की गिरावट आई थी वहीं कुल नुकसान की बात करें तो वो करीब 82.4 करोड़ आईक्यू पॉइंटस के बराबर बैठता है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि जब अमेरिका जैसे विकसित देश में लेड युक्त गैसोलीन (पेट्रोल) ने इतना असर डाला है तो भारत जैसे देशों में क्या स्थिति होगी जहां लम्बे समय से लोग इस हानिकारक केमिकल के संपर्क में हैं।  

प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पनास) में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक 2015 में अमेरिका की करीब 53 फीसदी आबादी यानी 17 करोड़ अमेरिकी के रक्त में लेड की मात्रा 5 माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर से ज्यादा पाई गई थी। वहीं 5.4 करोड़ अमेरिकियों (17 फीसदी) के रक्त में इसकी मात्रा 15 माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर, जबकि 45 लाख के रक्त में 30 माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर से भी ज्यादा पाई गई थी।  

स्वास्थ्य और पर्यावरण के दृष्टिकोण से कितना खतरनाक है सीसा

यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा लेड के लेकर जारी गाइडलाइन्स को देखें तो रक्त में 5 माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर से ज्यादा मात्रा स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है। गौरतलब है कि बचपन में लम्बे समय तक इसका संपर्क हृदय रोग, लीवर, किडनी, मानसिक बीमारियों और सोचने समझने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है।

देखा जाए तो लेड बच्चों के लिए विशेष तौर पर खतरनाक है, यह उनकी दिमागी कोशिकाओं को नष्ट कर सकता है, जिसकी वजह से उनके मानसिक विकास और सोचने समझने की क्षमता पर असर पड़ता है।

यदि इतिहास पर नजर डालें तो 1923 में वाहनों को अधिक कुशलता से चलाने के लिए पहली बार गैसोलीन में लेड मिलाया गया था। हालांकि 1973 में अमेरिका में इसपर प्रतिबन्ध लगाए गए थे जबकि 1996 में गैसोलीन में इसका उपयोग पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया था। ऐसे में अमेरिका के जो बच्चे 1960 और 70 के दशक में बड़े हुए थे, उन पर जोखिम सबसे ज्यादा था, क्योंकि उस दौरान लेड का उपयोग अपने चरम पर था। अध्ययन के अनुसार इसके चलते उन अमेरिकियों के आईक्यू में छह अंकों तक की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं 2015 तक हर अमेरिकी के औसतन आईक्यू स्कोर में 2.6 पॉइंट की गिरावट आई थी। 

क्या दुनिया के अन्य देशों में भी है इस तरह का खतरा  

वैश्विक स्तर पर देखें तो अब दुनिया भर के वाहनों में उपयोग होने वाला फ्यूल अब पूरी तरह लेड मुक्त है। अब दुनिया का कोई भी पेट्रोल पंप लेड युक्त फ्यूल और पेट्रोल नहीं बेचता है। अगस्त 2021 में अल्जीरिया वो आखिरी देश था जिसने इसके उपयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।

भारत ने इसपर 1994 से काम करना शुरू किया था फिर अप्रैल 2000 में  इसका उपयोग पूरी तरह बंद कर दिया गया था। ऐसे में दुनिया के अल्जीरिया जैसे देशों में जिन्होंने लम्बे समय तक लेड का फ्यूल में इस्तेमाल किया है उनके स्वास्थ्य पर इसका कितना व्यापक असर पड़ा होगा उसका अंदाजा आप स्वयं लगा सकते हैं। 

ऐसा नहीं है कि लेड का इस्तेमाल केवल फ्यूल में ही किया जाता है। इससे जुड़ी अन्य गतिविधियां जैसे खनन, निर्माण और रीसाइक्लिंग भी पर्यावरण को दूषित कर रहीं हैं। साथ ही कई देशों में इसका उपयोग पेंट और लेड-एसिड बैटरी के निर्माण के साथ-साथ आभूषण, पिगमेंट, गोला-बारूद, खिलौनों, क्रिस्टल ग्लासवेयर, सौंदर्य प्रसाधन और कुछ पारंपरिक दवाओं में भी किया जाता है। 

गौरतलब है कि पेंट में मौजूद लेड को लेकर भारत में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा भी एक अध्ययन किया गया था, जिसमें इसकी भारी मात्रा पाई गई थी। इस अध्ययन के मुताबिक करीब 72 फीसदी पेंट सैम्पल्स में लेड की मात्रा ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (बीआईएस) द्वारा तय मानकों से ज्यादा थी।    

इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमई) के अनुसार 2019 में होने वाली 9 लाख मौतों के लिए कहीं न कहीं लेड जिम्मेवार था। वहीं  विकलांगता-समायोजित जीवन वर्षों (डीएएलवाइ) की बात करें तो इसकी वजह से 2.17 करोड़ वर्षों के बराबर स्वास्थ्य हानि हुई थी।

जिसका सबसे ज्यादा बोझ पिछड़े और कमजोर देशों पर पड़ा था। यह भी पता चला है कि दुनिया में बौद्धिक विकलांगता के करीब 62.5 फीसदी के लिए सीसा एक वजह था। साथ ही हाई ब्लड प्रेशर के कारण बढ़ते ह्रदय रोग के 7.2 फीसदी, और स्ट्रोक के 5.7 फीसदी बोझ के लिए कुछ हद तक लेड जिम्मेवार था। 

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