वायु प्रदूषण-3: भारत को करनी होगी ठोस पहल
वायु (रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 की धारा 19, राज्य सरकारों को वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्रों की घोषणा करने की शक्ति प्रदान करती है
On: Wednesday 19 February 2020


डब्ल्यूएचओ-यूनिसेफ-लांसेट आयोग की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण के चलते हर साल करीब 38 लाख लोगों की मौत हो जाती है। भारत में इसका व्यापक असर है। इसके कारणों और उसके समाधान को लेकर डाउन टू अर्थ ने रिपोर्ट्स की एक सीरीज शुरू की है। पहली कड़ी में आपने पढ़ा कि छोटे शहरों में भी वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा कि भारत को दूसरे देशों से सीखना चाहिए। पढ़ें, तीसरी कड़ी-
पर्यवेक्षक यह भी बताते हैं कि प्रदूषण की अंतरराज्यीय आवाजाही को रोकने के लिए स्वच्छ वायु अधिनियम के कानूनी समर्थन के बावजूद इन कार्यक्रमों का कार्यान्वयन तब तक मुश्किल है, जब तक बड़ी मात्रा में प्रदूषण फैलाने वाले राज्य सहयोग करने के लिए तैयार नहीं होते। ये अदालती मामले दशकों तक चलते हैं। इस तरह की स्पष्ट कमियों के बावजूद, संघीय और राज्य सरकारों ने वायु प्रदूषण को रोकने के क्षेत्रीय प्रयासों के बुनियादी औचित्य पर विश्वास जताया है। कैलिफोर्निया ने अप-विंड जिलों के लिए स्वयं के परिवहन प्रावधानों को अपनाया है जो कैलिफोर्निया स्वच्छ वायु अधिनियम के तहत डाउन-विंड वायु प्रदूषण गहनता को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। कैलिफोर्निया एयर रिसोर्स बोर्ड (सीएआरबी) के साथ काम कर चुकीं कैथरीन विदरस्पून बतातीं हैं, “प्रदूषण के दूर तक पहुंचने की स्थिति में जिम्मेदारी तय करना हमेशा विवादास्पद होता है। कैलिफोर्निया में यह स्पष्ट था कि तटवर्ती हवाओं ने सैन फ्रांसिस्को बे एरिया से सेंट्रल वैली में वायु प्रदूषण फैलाया।”
हालांकि, बे एरिया एयर क्वालिटी मैनेजमेंट डिस्ट्रिक्ट (बीएएक्यूएमडी) ने दो कारणों से अपने बिजली संयंत्रों और परिशोधनशालाओं में चुनिंदा उत्प्रेरक कटौती प्रणाली को स्थापित करने से इनकार कर दिया। सबसे पहले, बीएएक्यूएमडी ने तर्क दिया कि नाइट्रोजन (एनओएक्स) उत्सर्जन के उसके ऑक्साइड्स ने डाउन-विंड क्षेत्रों को काफी प्रभावित नहीं किया। दूसरा, बीएएक्यूएमडी ने तर्क दिया कि एनओएक्स उत्सर्जन अपनी सीमाओं के भीतर ओजोन को दबा रहा था और एनओएक्स के स्वच्छता प्रभाव को खोने से स्थानीय ओजोन का स्तर बदतर हो जाएगा। अंतत: राज्य विधायिका ने हस्तक्षेप करते हुए सीएआरबी को निर्णय लेने के लिए कहा।
दो वर्ष के प्रयासों और एक व्यापक वायु माप अभियान के बाद, सीएआरबी के पास यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत थे कि बीएएक्यूएमडी उत्सर्जन वायु क्षेत्रों को नुकसान पहुंचा रहा है और संतुलन की स्थिति में अप-विंड एनओएक्स नियंत्रण फायदेमंद रहेगा। विदरस्पून कहती हैं, “बाद में पीएम 2.5 मृत्यु दर के प्रभावों के बारे में बढ़ती चिंताओं ने पूरे मामले पर बहस छेड़ दी क्योंकि एनओएक्स अप-विंड और डाउन-विंड, दोनों में सूक्ष्म कणों के निर्माण की शुरुआत करने वाला है।”
भारत क्षेत्रीय ढांचे की ओर
भारत में क्षेत्रीय वायु प्रदूषण की गंभीरता को देखते हुए परस्पर सहमत कार्य योजना के आधार पर क्षेत्रीय सहयोग और दायित्वों से संबंधित ढांचे के निर्माण का समय आ गया है जिसमें पर्याप्त संसाधनों की सहायता से लक्ष्यों का निर्धारण भी शामिल है। भारत के एनसीएपी ने क्षेत्रीय दृष्टिकोण और अंतरराज्यीय समन्वय के विचार को मान्यता दी है। इसमें उल्लेख किया गया है कि क्षेत्रीय स्रोत आबंटन अध्ययनों से प्राप्त जानकारी को शामिल करके एक व्यापक क्षेत्रीय योजना बनाने की जरूरत है। इसमें कई उपायों को सूचीबद्ध किया गया है जो अनेक क्षेत्राधिकारों में पड़ते हैं और जिनकी प्रकृति क्षेत्रीय है। इनमें ईंधन संबंधी सख्त मानदंड, सड़क की बजाय रेल और जलमार्गों का इस्तेमाल, गाड़ियों का आधुनिकीकरण, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए नीतियां और संगत और स्पष्ट कराधान नीतियां शामिल हैं। औद्योगिक क्षेत्र में यह कड़े औद्योगिक मानदंडों और स्वच्छ ईंधन तथा प्रौद्योगिकियों की सिफारिश करता है। निरंतर उत्सर्जन निगरानी प्रणाली को प्राथमिकता की गई है।
इसके अलावा, एनसीएपी ने खाना बनाने के लिए घरेलू ईंधन के तौर पर लिक्विफाइड पैट्रोलियम गैस के इस्तेमाल को बढ़ाने तथा घरेलू स्तर पर ऐसे ही अन्य उपाय करने का आह्वान किया है। पराली जलाने जैसे विशेष मामलों के संबंध में कार्यक्रम बनाने को भी एजेंडे में शामिल किया गया है। इन उपायों को क्षेत्रीय प्रतिमानों में शामिल जाना चाहिए और इन्हें अलग से या स्थानीय परिप्रेक्ष्य में नहीं देखा जाना चाहिए। अब तक, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (एनसीआर) में वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए बनाई गई व्यापक कार्य योजना एकीकृत क्षेत्रीय योजना का एकमात्र उदाहरण है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इस योजना को 2018 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 3 और 5 के तहत अधिसूचित किया था। यह एकमात्र एकीकृत योजना कानूनी रूप से बाध्यकारी है। इसके तहत संपूर्ण क्षेत्र की सभी रणनीतियों में समान कार्यान्वयन अपेक्षित है। हालांकि, इसके कार्यान्वयन में विषमता है। दिल्ली में, सभी क्षेत्रों में कोयले सहित दूषित ईंधन का इस्तेमाल बंद कर दिया गया है, सभी कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को बंद कर दिया गया है, ट्रकों की संख्या और कारों के डीजलाइजेशन में कमी आई है, पुराने वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटा दिया गया है, डीजल जनरेटर सेटों पर निर्भरता कम करने के लिए बिजली की आपूर्ति में सुधार किया गया है, घरों में ठोस ईंधन का उपयोग काफी कम हो गया है और पार्किंग क्षेत्र प्रबंधन योजनाओं जैसे उपायों को अपनाया गया है।
एनसीआर के अन्य राज्यों ने सभी क्षेत्रों में प्रदूषण के लड़ने में समान तेजी नहीं दिखाई है। इसलिए, यह सच है कि दिल्ली को अब भी छोटी और मझोली इकाइयों से होने वाले प्रदूषण की विषमता को दूर करने, वाहनों की अधिक संख्या से होने वाले उत्सर्जन को कम करने और औद्योगिक तथा नगरपालिका के कचरे को जलाने की गति को धीमा करने की रणनीति बनाने की जरूरत है। साथ ही अन्य राज्यों को अपने स्तर पर आगे बढ़ने और मानदंडों को पूरा करने के संबंध में कठोर कार्रवाई सुनिश्चित करनी होगी। आगामी दशक में दिल्ली-एनसीआर को कोयले और अन्य दूषित ईंधनों से स्वयं को पूरी तरह मुक्त करना होगा तथा सभी क्षेत्रों में स्वच्छ ईंधन जैसे बिजली और प्राकृतिक गैस तक पहुंच सुनिश्चित करनी होगी, प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों जैसे ट्रकों और डीजल से चलने वाले तिपहिया वाहनों को हटाना होगा और डीजल के इस्तेमाल को समग्र रूप से नियंत्रित करना होगा। साथ ही, कचरे को जलने से रोकने के लिए नगरपालिका की कार्यप्रणाली में सुधार करके अपशिष्ट प्रबंधन को बेहतर बनाना होगा। तकनीकी रूप से, इस स्तर के वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए क्षेत्रीय स्तर पर कार्यवाही करने में कोई कानूनी बाधा नहीं है।
वायु (रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 की धारा 19, राज्य सरकारों को वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्रों की घोषणा करने की शक्ति प्रदान करती है। वर्तमान में, इस प्रावधान का बहुत ही सीमित अर्थ लिया गया है और ऐसे नियंत्रण क्षेत्रों की घोषणा केवल गंभीर रूप से प्रदूषित औद्योगिक क्षेत्रों तक ही सीमित है। एकीकृत योजना और अनुपालन हेतु अधिक न्यायालयों को शामिल करने के लिए इस प्रावधान के दायरे और उद्देश्य को व्यापक रूप दिया जा सकता है। वायु अधिनियम, 1981 के दायरे में वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्रों या गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों को परिभाषित करते हुए भौगोलिक प्रसार और प्रदूषण स्रोतों की कवरेज को शामिल करने के लिए पारंपरिक दृष्टिकोण को बदलना होगा। इससे शासन का ढांचा और अंतरराज्यीय समन्वय मजबूत होगा जो वायु प्रदूषण के संकट से निपटने के लिए जरूरी है। यह वह समय है जब वायु प्रदूषण को रोकने के लिए बदलाव की शुरुआत की जाए ताकि सामंजस्यपूर्ण क्षेत्रीय कार्रवाई के लिए राज्य सरकारों की व्यापक और अधिक प्रभावी भागीदारी हो सके।