मध्य-पश्चिमी क्षेत्र और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में महामारी के दौरान बढ़ा वायु प्रदूषण

उपग्रह द्वारा की गई निगरानी से पता चलता है कि देश के मध्य-पश्चिमी क्षेत्र और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में सामान्य प्रवृत्ति के विपरीत महामारी के दौरान वायु प्रदूषण में वृद्धि पाई गई

By Dayanidhi

On: Wednesday 29 December 2021
 
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स

दक्षिण एशिया में वायु प्रदूषकों का बढ़ता उत्सर्जन क्षेत्रीय और दुनिया भर के वातावरण के लिए बहुत हानिकारक हो सकता है। इसलिए, इन उत्सर्जनों का उपग्रह आंकड़ों से पता लगाना आवश्यक है ताकि प्रदूषण फैलाने वाली गतिविधियों पर लगाम लगाई जा सके। यह सर्वविदित है कि विभिन्न गैसों और पार्टिकुलेट मैटर की अधिक मात्रा के संपर्क में आने से मानव स्वास्थ्य पर इसका बहुत बुरा असर पड़ता है।

कोरोना महामारी को लेकर लगाए गए लॉकडाउन के दौरान आर्थिक गतिविधियां कम होने से भारत के अधिकांश हिस्सों में वायु प्रदूषण में कमी आई। लेकिन उपग्रह द्वारा की गई निगरानी से पता चलता है कि देश के मध्य-पश्चिमी क्षेत्र और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में सामान्य प्रवृत्ति के विपरीत महामारी के दौरान वायु प्रदूषण में वृद्धि पाई गई।

अत्याधुनिक उपग्रह द्वारा की गई निगरानी के आधार पर वैज्ञानिकों ने पाया कि भारत के मध्य-पश्चिमी भाग और उत्तर भारत में वायु प्रदूषण का अधिक खतरा बना रहता है। इसलिए इन इलाकों में सांस संबंधी तकलीफ बढ़ने की ज्यादा आशंका बनी रहती है।

मल्टी-सॅटॅलाइट रिमोट सेंसिंग ने वायु प्रदूषक परीक्षण की दिशा में पिछले एक दशक में काफी प्रगति हुई है। उपग्रह और यथास्थान अवलोकन की माप से वायु प्रदूषण की समझ अधिक बढ़ जाती है। वर्ष 2020 में कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम के लिए पूरे भारत में लॉकडाउन लगाया गया था। इससे अर्थव्यवस्था पर भारी असर पड़ा, हालांकि इसका एक सकरात्मक प्रभाव यह देखने को मिला कि धरती के आसपास की हवा की गुणवत्ता में कुछ समय के लिए सुधार हुआ।

उपग्रह-आधारित अवलोकन में धरती के आसपास और वायुमंडल के निचले स्तरों में मिली जहरीली गैसें-ओजोन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड से पता चलता हैं कि देशभर में अधिकांश प्रदूषकों में कमी आई है। हालांकि, पश्चिमी व मध्य भारत, उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों और सुदूर हिमालय जैसे कुछ क्षेत्रों में ओजोन और अन्य जहरीली गैसों में वृद्धि पाई गई। महामारी के दौरान उन क्षेत्रों के आसपास श्वसन संबंधी समस्याएं बढ़ गई होंगी।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) जो कि भारत सरकार के तहत एक स्वायत्त संस्थान है, आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज (एआरआईईएस) के वैज्ञानिकों ने यह अध्ययन किया है। वैज्ञानिकों ने इसके तहत वर्ष 2018, 2019 और 2020 में ईयू मेटसैट और नासा के उपग्रह अवलोकनों का उपयोग करके लॉकडाउन की अवधि के दौरान ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड वितरण में परिवर्तन पर मानवजनित गतिविधियों के प्रभाव का निरीक्षण किया।

नैनीताल स्थित एआरआईईएस के शोधकर्ता प्रज्ज्वल रावत ने अपने शोध में बताया है कि भारत के मध्य और पश्चिमी हिस्से में ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड में करीब 15 फीसदी की वृद्धि हुई।

नतीजों के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में लगातार बढ़ते कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा में करीब 31 फीसदी की वृद्धि पाई गई। वायुमंडल के निचले स्तरों में लॉकडाउन के दौरान उत्तर भारत में ओजोन सांद्रता में काफी वृद्धि देखने को मिली। हिमालय और तटीय शहरों जैसे दूरदराज के क्षेत्रों में हवा की गुणवत्ता में लॉकडाउन का बहुत कम असर देखा गया और वायु प्रदूषकों में वृद्धि देखी गई।

एआरआईईएस की टीम बताती है कि ओजोन उत्पति और इसका नुकसान नाइट्रोजन ऑक्साइड और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों जैसी गैस युक्त प्रकाश रसायन अर्थात फोटोकेमिस्ट्री की जलिट अभिक्रिया पर निर्भर करती है। इन पूर्ववर्ती गैसों में कमी से रासायनिक वातावरण के आधार पर ओजोन में वृद्धि हो सकती है। इसके अलावा, ओजोन सांद्रता को परिवेशी मौसम विज्ञान और गतिकी के माध्यम से भी बदल दिया जाता है, जिसमें वायुमंडल के निचले स्तरों तक ओजोन की अधिकता वाली हवा नीचे की ओर बहती है।

एआरआईईएस की टीम के मुताबिक, इस अध्ययन से वायु प्रदूषण के अधिक खतरे वाले इलाकों की पहचान करने में मदद मिली। इस प्रकार, इससे स्वास्थ्य के लिए ज्यादा जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है। टीम ने पहले, इसरो के वैज्ञानिकों के साथ, इनसैट-3डी को भारत में ओजोन प्रदूषण का अध्ययन करने के लिए एक महत्वपूर्ण भारतीय भूस्थिर उपग्रह के रूप में दर्शाया था। हालांकि, अन्य मानदंडों के लिए वायु प्रदूषक ( नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, वाष्पशील कार्बनिक यौगिक आदि), भारत में अंतरिक्ष-आधारित अवलोकनों की कमी है और कक्षा में वायु गुणवत्ता निगरानी के लिए स्वदेशी उपग्रह की आवश्यकता पर जोर दिया गया।

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