लॉकडाउन खत्म होने के बाद चीन में फिर बढ़ा प्रदूषण का स्तर

चीन में वायु प्रदूषण बढ़ने से एक सवाल यह उठ खड़ा हुआ है कि क्या उसने प्रदूषण को रोकने के लिए मिला एक सुनहरा मौका गवां दिया है और अन्य देश इससे कुछ सीख लेंगे

By Lalit Maurya

On: Monday 18 May 2020
 

चीन में एक लम्बे लॉकडाउन के खत्म होने के बाद जैसे-जैसे जीवन पटरी पर लौटने लगा है वैसे-वैसे वहां की हवा एक बार फिर दूषित होने लगी है| 18 मई को प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार चीन में एक बार फिर से प्रदूषण का स्तर बढ़ने लगा है| वैज्ञानिकों के अनुसार वहां हवा में पीएम 2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषकों के स्तर में वृद्धि दर्ज की गयी है| जिसके लिए उद्योगों को एक बड़ी वजह माना जा रहा है|

गौरतलब है कि इस महामारी से हुए आर्थिक नुकसान को भरने के लिए चीन ने अपनी औद्योगिक गतिविधियां तेज कर दी हैं| जिसके कारण हवा में यह बदलाव आ रहा है| एक लम्बे लॉकडाउन के चलते चीन सहित दुनिया के अनेक देशों में हवा की गुणवत्ता में हैरतअंगेज रूप से सुधार दर्ज किया गया था| यह शोध हेलसिंकी स्थित सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए ) द्वारा किया गया है| जिसके अनुसार कोविड-19 से हुए नुकसान को भरने की जल्दबाजी से हवा की गुणवत्ता में जो सुधार आया है, वो पलट सकता है|

चीन में पीएम 2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषकों के स्तर में हो रहा है इजाफा

शोध के अनुसार चीन में पीएम 2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषकों का स्तर फरवरी में काफी गिर गया था| क्योंकि लॉकडाउन के दौरान कारखानों को बंद कर दिया गया था| इसके साथ ही बिजली की मांग काफी घट गयी थी और मोटर-गाड़ियों पर रोक लगा दी गयी थी| लेकिन हाल ही में 1500 से ज्यादा एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशनों से प्राप्त डेटा के विश्लेषण से पता चला है कि 8 मई तक देश के कई शहरों में प्रदूषण मई 2019 की तुलना में कही ज्यादा था| शोध में पता चला है कि चीन के जिन क्षेत्रों में फैक्ट्रियां अधिक हैं वहां नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के स्तर में तेजी से वृद्धि हुई है|

जबकि जहां आबादी हैं उन शहरों में तुलतात्मक रूप से प्रदूषण कम तेजी से बढ़ रहा है| चूंकि वहां फैक्ट्रियां कम हैं और ऊर्जा के लिए पावर प्लांट पर दबाव कम है| वहां प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत मोटर गाड़ियां ही हैं| ऐसे में वहां प्रदूषण का स्तर धीरे-धीरे बढ़ रहा है| सीआरईए के अनुसार हालांकि अब तक चीन में परिवहन से उतना ज्यादा प्रदूषण नहीं हो रहा है| पर कोरोनावायरस के डर से लोग आप पब्लिक ट्रांसपोर्ट की जगह प्राइवेट ट्रांसपोर्ट को ज्यादा प्राथमिकता देंगे| जिसके चलते वायु प्रदूषण में वृद्धि हो सकती है|

कोरोनावायरस ने हमें एक नया मौका दिया है जिससे हम फिर से रुककर एक बार सोचें, पर चीन में किये गए इस अध्ययन से लगता है कि हमने इससे कुछ नहीं सीखा है| हमारे आगे जाने की भूख एक बार फिर प्रकृति को नुकसान पहुंचाने से गुरेज नहीं कर रही है| चीन में बढ़ते प्रदूषण ने एक बार फिर से दिखा दिया है कि जैसे-जैसे  अन्य देशों में भी लॉकडाउन हटेगा वहां भी इसी तरह से प्रदूषण में तेजी आ सकती है| चीन में उत्पादन बढ़ाने की इतनी जल्दी है कि वो उससे हो रहे प्रदूषण पर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं| जबकि यह एक ऐसा मौका था जिसका इस्तेमाल प्रदूषण और इन प्रदूषण फ़ैलाने वाली इकाइयों में सुधार के लिए किया जा सकता था| यह अन्य देशों के लिए एक सीख भी है कि वो इस पर एक बार फिर से गौर करें|

भारत सहित अन्य देशों को लेनी होगी इससे सीख

हाल ही में उत्तर भारत में भी प्रदूषण के स्तर में रिकॉर्ड कमी आयी थी| जब नासा द्वारा जारी उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला था कि उत्तर भारत में एयरोसोल का स्तर पिछले 20 सालों के सबसे न्यूनतम स्तर पर आ गया था। गौरतलब है कि 25 मार्च 2020 से भारत सरकार ने देश में तालाबंदी कर दी है। जिसका उद्देश्य कोरोनावायरस के संक्रमण को रोकना था। पर इस तालाबंदी के चलते देश कि हवा भी साफ हो गयी है।

हाल ही में किये गए एक शोध से पता चला था कि दुनिया भर में वायु प्रदूषण के चलते हर साल करीब 90 लाख लोग मारे जा रहे हैं। और जो बचे हैं प्रदूषण उनेक जीवन के औसतन तीन साल छीन लेता है| भारत पर भी इसका व्यापक असर पड़ रहा है| 2017 में दुनियाभर में प्रदूषण के चलते होने वाली असामयिक मौतों में भारत की हिस्सेदारी 28 फीसदी रही। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर और ग्रीनपीस द्वारा जारी नयी रिपोर्ट के अनुसार इसके चलते हर साल भारतीय अर्थव्यवस्था को 15,000 करोड़ डॉलर (1.05 लाख करोड़ रुपए) का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ रहा है।

 

दुनिया भर में जिस तरह से वायु प्रदूषण के स्तर में कमी आयी है, वह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है| जो लाखों लोगों का जीवन बचा सकती है और यदि अब भी हम यदि इस मौके का फायदा नहीं उठा पाए तो शायद कभी भी प्रदूषण को नियंत्रित नहीं कर पाएंगे|

पर दुनिया के कई देश ऐसे भी हैं जिन्होंने इससे सीख भी ली है, ब्रिटेन में जहां 1.4 करोड़ लोगों मोटर गाड़ियों को छोड़ साइकिल और पैदल अपने कामों पर जाने की तैयारी कर रहे हैं| वहीं प्रशासन ने भी इसके लिए रोडों पर अलग से व्यवस्था की है| वहीं यूरोप में लंदन, मिलान और ब्रुसेल्स सहित कई शहर अपने रोड़ों पर साइकिल लेन का विस्तार कर रहे हैं ताकि लोगों कारों और  बाइक को छोड़ साइकिल को वरीयता दें|

यह एक अच्छी पहल है, हमें भी इससे सीखना चाहिए| हमारे देश की एक बड़ी आबादी प्राइवेट ट्रासंपोर्ट का खर्च वहन नहीं कर सकती और यदि साइकिल को बढ़ावा दिया जाये तो वो कोरोना के दौर में ट्रांसपोर्ट का एक इफेक्टिव साधन हो सकती है| इसके साथ ही देश में उद्योगों को शुरू करने से पहले उनकी जांच करना जरुरी है जिससे उनसे होने वाले प्रदूषण को रोका जा सके|

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