पर्यावरण मुकदमों की साप्ताहिक डायरी: एनजीटी ने पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर लगाया प्रतिबंध

देश के विभिन्न अदालतों में विचाराधीन पर्यावरण से संबंधित मामलों में बीते सप्ताह क्या कुछ हुआ, यहां पढ़ें

By Susan Chacko, Dayanidhi, Lalit Maurya

On: Friday 13 November 2020
 

कोविड-19 महामारी को वायु प्रदूषण और घातक बना सकता है। यह पहला प्रीकॉशनरी प्रिंसिपल पर आधारित आदेश है जो कोविड और वायु प्रदूषण के रिश्ते की संभावना को मान्यता भी देता है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने केंद्र और राज्य प्राधिकरणों को देशभर में एनसीआर समेत ऐसे सभी शहर जहां वायु गुणवत्ता खराब है या फिर उससे भी बदतर स्थिति में है वहां पर पटाखों की बिक्री और उसके इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगाने का आदेश दिया है। पीठ ने कहा है कि 9-10 नवंबर की मध्य रात्रि से एक दिसंबर तक पूरी तरह से पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल का यह आदेश एनसीआर में प्रभावी रहेगा। साथ ही यह आदेश देश के अन्य प्रदूषित शहरों पर ( बीते वर्ष नवंबर के आंकड़े के आधार पर) भी लागू होगा।

कोविड-19 और वायु प्रदूषण के गठजोड़ से स्थिति गंभीर होने के अंदेशे को लेकर एनजीटी ने  09 नवंबर, 2020 को जारी अपने आदेश में कहा है यदि इस आदेश पर किसी राज्य को आपत्ति है तो वह एनजीटी में अपील कर सकता है। अन्यथा एक दिसंबर के बाद इस पर विचार किया जाएगा। एनजीटी ने इस मामले में 5 नवंबर, 2020 को सभी राज्यों व संघ शासित प्रदेशों को आदेश जारी करते हुए अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था।

आदेश में स्पष्ट किया गया है कि ऐसे शहर जहां वायु प्रदूषण मॉडरेट या सामान्य है वहां दीपावली, छठ और क्रिसमस आदि पर्व पर दो घंटे के लिए सिर्फ ग्रीन कैकर्स जलाने या दागने की अनुमति दी जाए। कोविड-19 को बढ़ा सकने वाले वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए यदि प्राधिकरण कोई अन्य उपाय या सख्त कदम उठाना चाहते हैं तो वे अपना कदम भी बढाएं।

पीठ ने देश के सभी मुख्य सचिव, डीजीपी को सभी जिलाधिकारियों, पुलिस अधीक्षक और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व समितियों को इस संबंध में सर्कुलर जारी करने का आदेश दिया है।  वहीं, सीपीसीबी और राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व समितियों को इस दर्मियान रेग्युलर मॉनिटरिंग करने और उसे वेबसाइट पर सार्वजनिक किए जाने का भी आदेश दिया गया है।  इस मामले पर अगली सुनवाई एक दिसंबर, 2020 को होगी।

चंद्रपुरा थर्मल पावर स्टेशन से हुए तेल रिसाव के मामले में समिति रिपोर्ट में दी गई गलत जानकारी: रिपोर्ट

दामोदर घाटी निगम द्वारा संचालित चंद्रपुरा थर्मल पावर स्टेशन से हुए तेल रिसाव के बारे में जो जानकारी समिति ने कोर्ट से साझा की है वो गलत है| यह बात आवेदक प्रवीण कुमार सिंह द्वारा एनजीटी में एक रिपोर्ट के माध्यम से सामने रखी है, जिसे समिति की रिपोर्ट के जवाब में कोर्ट में दायर किया गया है| उनके अनुसार 29 सितंबर, 2020 को जारी रिपोर्ट में संयुक्त जांच समिति ने घटना की जो तारीख बताई है वो गलत है| साथ ही नदी में कितना तेल फैला है उसके बारे में भी सही जानकारी नहीं दी गई है| गौरतलब है कि चंद्रपुरा थर्मल पावर स्टेशन से हुए तेल रिसाव के चलते तेल दामोदर और उसकी सहायक नदियों और आसपास के क्षेत्र में फैल गया था|

आवेदक द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार समिति को घटना की तारीख के बारे में गलत जानकारी है, उन्होंने घटना की तारीख 15 अक्टूबर, 2019 बताई है जबकि सही तारीख 13 अक्टूबर, 2019 है| उन्होंने आरोप लगाया है कि घटना के बाद झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों द्वारा तुरंत कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। संयुक्त समिति भी लीक हुए तेल की सही मात्रा का पता लगाने में विफल रही थी। समिति ने दामोदर नदी में हुए तेल रिसाव की मात्रा का पता लगाने के लिए बहुत ही ढुलमुल रवैया अपनाया था| उन्होंने इसके लिए पूरी तरह से एक रिपोर्ट पर भरोसा किया है जिसे मैसर्स चंद्रपुरा थर्मल पावर स्टेशन की एक इन-हाउस समिति द्वारा तैयार किया गया था।

संयुक्त समिति की रिपोर्ट के अनुसार दामोदर नदी में करीब 600 लीटर तेल का रिसाव हुआ था। लेकिन आवेदक का आरोप है कि यह मात्रा सही नहीं हो सकती क्योंकि वहां रिसाव 41 घंटे से अधिक समय तक जारी रहा था| जब तक धनबाद के जिला कलेक्टर को इसका पता लगता तब तक 53,000 लीटर तेल का रिसाव दामोदर नदी में हो चुका था।

10 नवंबर, 2020 को जारी प्रतिक्रिया रिपोर्ट में कहा गया है कि मीडिया के हवाले से यह भी पता चला है कि दामोदर घाटी निगम ने जानबूझकर तेनुघाट जलाशय से पानी को नदी में और नीचे की ओर छोड़ दिया था, जिसके चलते दामोदर नदी के साथ-साथ धनबाद, चास, झरिया और सिंदरी जैसे क्षेत्रों में भी तेल फैल गया था। जिसके कारण लगभग 20 से 30 लाख लोगों की पेयजल आपूर्ति पर असर पड़ा था।

समिति ने तेल रिसाव का कोई पारिस्थितिक मूल्यांकन भी नहीं किया था| संयुक्त समिति ने घटना के लगभग 11 महीने बाद बारिश के मौसम में साइट का दौरा किया था| जिसमें किसी भी तरह के सबूत मिलने की संभावना नहीं थी| 

सिजोसा वन रेंज में लकड़ियों की अवैध कटाई और तस्करी

सिजोसा वन रेंज में लकड़ियों की अवैध कटाई कर लकड़ी को असम पहुंचाने के बारे में एनजीटी के समक्ष दायर एक याचिका के जवाब में खेलोंग वन प्रभाग, भालुकपोंग के तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी द्वारा एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।

पापुम के जंगल में अवैध रूप से गिरे पेड़ों का पता लगाया गया और सिजोसा वन रेंज के रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर ने कहा कि सिजोसा रेंज में असम के साथ अंतर्राज्यीय सीमा है। घने जंगल के कारण पेड़ों की अवैध कटाई का जल्द पता लगाना मुश्किल हो रहा है, इस समस्या से तब तक निजात नहीं मिल सकती जब तक कि इस रेंज के अंदर बीट नहीं बनाए जाते हैं और यहां फॉरेस्टर और डिप्टी रेंजर्स की पोस्टिंग नहीं हो जाती है। 

सैनिक प्रतिष्ठानों में अपशिष्ट प्रबंधन के मुद्दे पर एनजीटी ने जारी किया आदेश

एनजीटी ने अपने 10 नवंबर को दिये आदेश में कहा है कि सशस्त्र बलों में विभिन्न स्तरों पर एक उपयुक्त इन-हाउस निगरानी तंत्र होना चाहिए ताकि पर्यावरणीय मुद्दों पर पूरी तरह से ध्यान दिया जा सके। इस संबंध में जिम्मेदार व्यक्तियों को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) जैसे विशेषज्ञ संस्थानों के साथ एक संयुक्त बैठक करनी चाहिए ताकि सबसे बेहतर उपायों को बनाया जा सके और उनकी समीक्षा की जा सके।

पर्यावरणीय मुद्दों और चुनौतियों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए विभिन्न स्तरों पर नामित अधिकारी जागरूकता कार्यक्रम शुरू कर सकते हैं| जिन्हें समय-समय पर किया जा सकता है| गौरतलब है कि एनजीटी का यह आदेश एयर मार्शल अनिल चोपड़ा द्वारा सशस्त्र बलों के प्रतिष्ठानों में अपशिष्ट प्रबंधन पर दायर आवेदन के जवाब में था। इस मुद्दे पर वायु, थल और नौसेना के संबंध में 10 सितंबर, 2020 को एक स्थिति रिपोर्ट दायर की गई थी। 

दिल्ली में वन भूमि अतिक्रमण पर एनजीटी ने अधिकारियों को लगाई लताड़

9 नवंबर, 2020 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और श्यो कुमार सिंह की दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि अधिकारियों द्वारा अतिक्रमण की अनुमति देने और फिर इनके ही द्वारा कानून लागू करने में विवशता जताने से वन कानूनों को निष्फल बनाया जा रहा है। न्यायाधीश याचिकाकर्ता अमरजीत सिंह नलवा द्वारा दायर याचिका की सुनवाई कर रहे थे। याचिका में कहा गया कि एनजीटी के 11 दिसंबर, 2015 के आदेश के बावजूद दक्षिण दिल्ली के कुछ स्थानों पर वन भूमि से अतिक्रमण हटाने में अधिकारी विफल रहे हैं।

दिल्ली के दक्षिण जिले के उपायुक्त, दिल्ली सरकार द्वारा सौंपी गई स्टेटस रिपोर्ट को लेकर इस मामले पर विचार किया गया। स्टेटस रिपोर्ट से पता चला कि लगभग 5000 अतिक्रमण करने वाले और 750-800 अवैध निर्माण के रूप शिविर / झुग्गी झोपड़ी बस्तियां समय-समय पर बनाई गई हैं और लगभग 3000 अतिक्रमणकारी महरौली के दूसरे शिविरों में रह रहे हैं। वन भूमि के बहुत बड़े हिस्से पर अतिक्रमण किया गया है।

एनजीटी ने कहा कि इस तरह के अतिक्रमण को हटाना एक चुनौती है लेकिन "यदि कानून सही से लागू नहीं किए जाते हैं, तो हमारा समाज कानूनविहीन हो जाएगा"। एनजीटी ने निर्देश दिया कि कानून के अनुसार आगे की कार्रवाई की जाए और 31 मार्च, 2021 तक स्टेटस रिपोर्ट सौंपी जाए। 

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