प्रदूषित हवा में किसानों का आंदोलन जारी, एनसीआर में पीएम प्रदूषण गंभीर स्तर पर बरकरार

इस वर्ष की दीवाली 2016 के बाद से सबसे स्वच्छ दीवाली भले ही रही हो लेकिन कोविड-19 के तमाम प्रतिबंधों के बावजूद वायु प्रदूषण का स्तर ठंड में गंभीर और बहुत खराब स्तर के बीच झूल रहा है। 

By Vivek Mishra

On: Tuesday 08 December 2020
 

कोरोना संक्रमण ने वर्ष 2020 को जैसे निगल लिया हो। अपार दुख-दर्द वाले इस वर्ष की विदाई में पड़ने वाले त्यौहारों पर भी प्रतिबंध जारी रहेंगे ताकि वायु प्रदूषण इस समस्या को प्रबल न बना दे। दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के प्रबंधन लिए नए आयोग का गठन भले हो लेकिन हवा में पार्टिकुलेट मैटर अपनी ही पुरानी गति में मौजूद है। कृषि बिलों के विरुद्ध किसानों का आंदोलन जारी है और ज्यादातर किसान दिल्ली-एनसीआर सीमाओं पर ही डटे हुए हैं। अपने भविष्य की फिक्र में वे वर्तमान की मुश्किलों को शायद भुला चुके हैं। इसी वर्तमान की मुश्किल में कोविड-19 संक्रमण की मुश्किल के साथ शामिल है एनसीआर का घातक वायु प्रदूषण। 

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की ओर से 24 घंटे की वायु गुणवत्ता पर निगरानी रखी जाती है। इसी क्रम में 08 दिसंबर, 2020 को 24 घंटे का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) यह बताता है कि आंदोलन के लिए दिल्ली और किनारों पर पहुंचे किसान समेत एनसीआर की आबादी गंभीर प्रदूषित वायु को अपनी सांसों के जरिए निगल रही है। 

सीपीसीबी के 24 घंटे एक्यूआई के मुताबिक दिल्ली का एक्यूआई 383 और गाजियाबाद का एक्यूआई 424, ग्रेटर नोएडा का 405, नोएडा का 407, गुरुग्राम का 347, यमुनानगर का 345, फरीदाबाद का 382 और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अन्य शहर भी बहुत खराब वायु प्रदूषण की जद में हैं। 

नवंबर,2020 महीने के आखिरी दिनों में हवा के स्तर में थोड़ा सुधार हुआ था। इसकी वजह तेज गति वाली हवा और पराली का जलना बताया जा रहा था। हालांकि अब पराली भी नहीं जल रही है और वायु प्रदूषण का स्तर गंभीर और बहुत खराब स्तर पर ही बना हुआ है। 

आखिर दिल्ली-एनसीआर के वायु प्रदूषण में पार्टिकुलेट मैटर का स्तर इन दिनों क्या है? 

इस सवाल का जवाब सीपीसीबी का इमरजेंसी स्टेटस जांचने वाला केंद्रीय नियंत्रण कक्ष (सीसीआर) बताता है। सीसीआर के मुताबिक 03 दिसंबर, 2020 की शाम से पार्टिकुलेट मैटर दिल्ली-एनसीआर की हवा में बढ़ना शुरू हो गया। उस तारीख को औसत पीएम 2.5 का स्तर 160 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था जो कि सामान्य 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से करीब 2.5 गुना ज्यादा है और पार्टिकुलेट मैटर 10 का स्तर 300 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा था जो कि सामान्य 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से 3 गुना ज्यादा था।

बीते सात दिनों में पार्टिकुलेट मैटर 2.5 और 10 का स्तर गंभीर स्थिति में हैं और आपात रेखा से थोड़ी ही दूरी पर विचरण कर रहा है।  08 दिसंबर, 2020 को पीएम 2.5 का स्तर 205 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और पीएम 10 का स्तर 342 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा है। यानी पीएम 2.5 और 10 अपने सामान्य मानकों से 3 गुना से भी ज्यादा हैं। 

लेकिन पीएम ज्यादा होने से नुकसान क्या है? 

पीएम 2.5 बेहद महीन प्रदूषण कण होते हैं जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देते। इनका प्रमुख स्रोत वाहनों के कंबस्टन इंजन हैं। यह सेहत पर काफी गहरा प्रभाव डालते हैं। मसलन निचले फेफड़ों और अन्य ऑर्गन को नुकसान पहुंचा सकते हैं। 

यह भी माना जा रहा है कि कोविड-19 विषाणु भी श्वसन तंत्र पर हमला करते हैं ऐसे में वायु प्रदूषण का गठजोड़ इन्हें घातक बना सकता है। हालांकि, इस पर अध्ययन जारी हैं। सीएसई की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली-एनसीआर के निगरानी स्टेशनों से वास्तविक समय के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि इस साल सर्दियों में होने वाले प्रदूषण के पैटर्न में बदलाव नजर आ रहा है।

सीएसई के कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी कहती हैं कि भले ही 2020 में 11 महीनों के दौरान पीएम 2.5 का कुल औसत स्तर पिछले वर्ष की तुलना में काफी कम रहा, लेकिन सर्दियों में पीएम 2.5 का स्तर दिल्ली-एनसीआर में वायु के स्तर को बहुत खराब तथा गंभीर बना सकता है।

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