पुराने वाहनों से कैसे निपटें, सीएसई ने जारी की रिपोर्ट

अनुमान के मुताबिक, 2025 तक 2.18 करोड़ वाहन अपनी उम्र पूरी कर चुके होंगे

By Bhagirath Srivas

On: Monday 28 September 2020
 
पुराने वाहनों को हटाना चुनौती बन गया है। (रॉयटर्स)

प्रदूषण फैला रहे पुराने वाहनों को ठिकाने लगाने के लिए राष्ट्रीय नीति की तत्काल जरूरत है। केंद्रीय सड़क यातायात एवं राजमार्ग मंत्रालय ने अब यह नीति अधिसूचित नहीं की है। यह नीति कैसी हो और इसे कैसे प्रभावी बनाए जा सकता है, इस संबंध में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने “वाट टू डू विद ओल्ड व्हीकल: टूवार्ड्स इफेक्टिव स्क्रैपेज पॉलिसी एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर” रिपोर्ट जारी है।

सीएसई की कार्यकारी निदेशक (रिसर्च एंड एडवोकेसी) अनुमिता रायचौधरी की अगुवाई में तैयार की गई इस रिपोर्ट के मुताबिक, “इस नीति से ग्रीन रिकवरी का एक बड़ा मौका है। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत उत्सर्जन से संबंधित भारत स्टेज-6 (बीएस-6) मानक लागू हो रहे हैं, विद्युत वाहनों की पहल हो रही है और प्रदूषित शहरों से पुराने वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाया जा रहा है। नई नीति में ऐसी व्यवस्था करनी होगी जिससे अपनी उम्र पूरी कर चुके वाहनों को अधिक से अधिक बदला जा सके और इन वाहनों का सामान रिसाइकल व पुन: उपयोग किया जा सके।

रिपोर्ट जारी करने के दौरान सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि वाहनों के लगातार बढ़ने से शहरों में कबाड़ और प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। ऐसे समय में एक प्रभावी नीति बीएस-6 उत्सर्जन मानकों में नया निवेश बढ़ाने और साफ हवा के लिए विद्युत वाहनों की संख्या बढ़ाने में मददगार होगी।

द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टेरी) द्वारा 2017 में प्रकाशित पोजिशन पेपर के अनुसार, वाहनों से होने वाला करीब 60 प्रतिशत प्रदूषण 10 साल से अधिक पुराने वाहनों से होता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, पुराने वाहन वर्तमान मानकों से 15 गुणा अधिक प्रदूषण फैला रहे हैं। 

सीपीसीबी का अध्ययन बताता है कि देश भर में इस समय 90 लाख ईएलवी सड़कों पर चल रहे हैं। अनुमान के मुताबिक, 2025 तक 2.18 करोड़ ईएलवी हो जाएंगे। वियोनशॉम्पिंग विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के तेजस सूर्या नाइक का जून 2018 में प्रकाशित शोधपत्र “इंड ऑफ लाइफ व्हीकल्स मैनेजमेंट एट इंडियन ऑटोमोबाइल सिस्टम” बताता है कि दुनियाभर में ऑटोमोबाइल का कचरा चुनौती बन चुका है। दुनियाभर में वाहनों का स्वामित्व आबादी में विकास दर से अधिक है। 2010 में वाहनों का स्वामित्व 100 करोड़ पार हो चुका है। इसी के साथ ईएलवी की संख्या भी बेतहाशा बढ़ी है। इस चुनौती से पार पाने के लिए यूरोपीय यूनियन, जापान, कोरिया, चीन और ताइवान कानूनी ढांचा बनाकर इस समस्या पर काफी हद तक काबू पा लिया है। भारत में 2010 में 11 करोड़ वाहन सड़कों पर चल रहे थे। 2010 से 2015 तक बीच अतिरिक्त 10.3 करोड़ वाहनों का उत्पादन किया गया।

सड़क यातायात एवं राजमार्ग मंत्रालय के वाहन पोर्टल के मुताबिक, भारत में इस समय 25.84 करोड़ वाहनों का पंजीकरण है। अनुमान है कि 2030 तक 31.5 करोड़ वाहन सड़कों पर होंगे। सड़क पर चलने वाले वाहन पर्यावरण को प्रदूषित तो कर ही रहे हैं, साथ ही पारिस्थितिक संतुलन भी बिगाड़ रहे हैं। अगर भविष्य में इनका ठीक से प्रबंधन नहीं किया गया तो स्थिति भयावह होगी। अपनी उम्र पूरी करने के बाद वाहनों की स्क्रैपिंग जरूरी है लेकिन इनका लगातार इस्तेमाल हो रहा है। तेजस सूर्या नाइक के शोध पत्र के मुताबिक, इस वक्त अकेले दिल्ली की सड़कों पर 54.92 लाख ईएलवी हैं। 2025 तक ऐसे वाहनों की संख्या बढ़कर 77.35 लाख और 2030 तक 96.33 लाख हो जाएगी। इसी तरह चेन्नई में फिलहाल 25.18 लाख ईएलवी हैं जिनके 2025 तक 38.61 लाख और 2030 तक 49.38 लाख होने का अनुमान है।

अगर इन दोनों महानगरों में वाहनों के पंजीकरण के आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि शहरों में कितनी तेजी से वाहनों की संख्या बढ़ रही है। दिल्ली में अभी कुल 1.13 करोड़ वाहन पंजीकृत हैं। अनुमान है कि 2025 तक दिल्ली में 1.23 करोड़ और 2030 तक पंजीकृत वाहनों की संख्या बढ़कर करीब 1.42 करोड़ हो जाएगी। साल 2030 तक पांच शहरों- दिल्ली, चेन्नई, इंदौर, पुणे और जमशेदपुर में पंजीकृत वाहनों की संख्या 2.97 करोड़ होगी। 2030 तक केवल चेन्नई, इंदौर और दिल्ली में 1.62 करोड़ वाहन अपनी उम्र पूरी कर चुके होंगे और रिसाइक्लिंग के लिए तैयार होंगे। ईएलवी के वैज्ञानिक तरीके से निपटारे और रिसाइक्लिंग की अब तक उपेक्षा की गई है। ऐसे वाहनों की वैज्ञानिक तरीके से रिसाइक्लिंग के लिए पूरे देश में फिलहाल सेरो नामक केवल एक संयंत्र उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर नगर जिले के ग्रेटर नोएडा में चल रहा है। इसे ऑटोमोबाइल कंपनी महिंद्रा और सरकारी उपक्रम एमएसटीसी ने संयुक्त रूप से स्थापित किया है।
सीपीसीबी के मुताबिक, एक कार में 70 प्रतिशत इस्पात और 7-8 प्रतिशत एलुमिनियम होता है। शेष 20-25 प्रतिशत हिस्सा प्लास्टिक, रबड़, कांच, आदि होता है। अगर पर्यावरण अनुकूल और वैज्ञानिक तरीके से रिसाइक्लिंग की जाए तो इनमें से अधिकांश चीजें दोबारा इस्तेमाल की जा सकती हैं।

सीएसई रिपोर्ट में कुछ सुझाव

  • डीजल से चलने वाले भारी वाहनों को प्राथमिकता के आधार पर बीएस-6 में  बदला जाए
  • पुरानी कार और दोपहिया वाहनों को हटाने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन दिया और 2030 तक 30-40 प्रतिशत वाहनों को विद्युतीकरण किया जाए। दिल्ली ने इस दिशा में पहल कर दी है
  • राज्यों में सीपीसीबी के गाइडलाइन अनिवार्य की जाएं और उन्हें राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम से जोड़ा जाए        
  •  राष्ट्रीय नीति के उद्देश्यों के अनुसार राज्य स्तरीय स्कैपेज पॉलिसी बने जिससे ऑटोमोबाइल उद्योग सुरक्षित तरीके से पुराने वाहनों को तोड़कर पुर्जों को निकाल सकें
  • पुराने, अनफिट वाहनों को पहचानने का मापदंड बनाए जाए। प्रदूषण के हॉटस्पॉट में वाहनों की उम्र निर्धारित की जा सकती है
  • पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना स्क्रैपिंग सुविधाओं को बढ़ाए जाए। असंगठित क्षेत्र को भी इसमें शामिल जाए
  • वाहनों का डाटाबेस अपडेट किया जाए जिससे पुराने वाहनों की सटीक जानकारी मिल सके

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