क्या दिल्ली-राजस्थान में धूल भरी आंधियों के लिए अरावली में होता अवैध खनन और अतिक्रमण है जिम्मेवार

अनुमान है कि जिस तरह से इस क्षेत्र में विनाश हो रहा है उसके चलते 2059 तक वन भूमि के करीब 16,360.8 वर्ग किलोमीटर (21.64 फीसदी) हिस्से को बसावट के रूप में बदल दिया जाएगा

By Lalit Maurya

On: Tuesday 06 June 2023
 

राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा किए एक अध्ययन में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। इस रिसर्च के मुताबिक अरावली पर होते अवैध खनन और अतिक्रमण के साथ बढ़ते शहरीकरण के चलते अरावली की पहाड़ियां गायब हो रही हैं, जिसकी वजह से राजस्थान में धूल भरे तूफानों में वृद्धि हुई है। इन तूफानों का असर दिल्ली-एनसीआर तक पड़ रहा है।

गौरतलब है कि अरावली दुनिया की सबसे प्राचीनतम पर्वत श्रंखलाओं में से एक हैं। ऐसे में उनपर बढ़ता अतिक्रमण और किया जा रहा विनाश न केवल इंसानों के लिए बल्कि वहां पाए जाने वाले जीव-जंतुओं और वनस्पति के लिए भी खतरा है, यदि ऐसा ही चलता रहा तो इसका खामियजा पूरे इकोसिस्टम को भुगतना पड़ेगा।

यह अध्ययन प्रोफेसर लक्ष्मी कांत शर्मा और शोधकर्ता आलोक राज द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे जर्नल अर्थ साइंस इन्फार्मेटिक्स में प्रकाशित हुए हैं। इस बारे में प्रकाशित रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले दो दशकों में हरियाणा-उत्तरी राजस्थान के ऊपरी अरावली रेंज में मौजूद कम से कम 31 पहाड़ियां अब गायब हो चुकी हैं। इसके अलावा शोधकर्ताओं ने निचली और मध्य श्रृंखला में कई अन्य पहाड़ियों की पहचान की है जो इस विनाश का दंश झेल रही हैं।

इस बारे में प्रोफेसर शर्मा का कहना है कि, ‘समुद्र तल से 200 से 600 मीटर ऊंची नारायणा, कलवाड़, कोटपूतली, झालाना और सरिस्का की कई पहाड़ियों एक के बाद एक गायब हो गई हैं। इसी तरह मध्यम स्तर की वो पहाड़ियां जिनकी समुद्र तल से ऊंचाई 50 से 200 मीटर के बीच है, वो भी अब गायब होने की कगार पर हैं।

इससे पहले भी डाउन टू अर्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट में इस खतरे को उजागर किया था। इस रिपोर्ट के मुताबिक यदि अरावली का होता विनाश इसी तरह जारी रहता है तो धूल भरी आंधियां कहीं ज्यादा गंभीर रूप ले सकती हैं।

रिसर्च के मुताबिक इन पहाड़ियों के विनाश से थार रेगिस्तान में चलने वाले रेतीले तूफानों के लिए दिल्ली-एनसीआर और पश्चिमी उत्तरप्रदेश तक पहुंचने का रास्ता साफ हो गया है। इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर लक्ष्मी कांत शर्मा का कहना है कि, "इन पहाड़ियों का गायब होना बढ़ते रेतीले तूफानों के कारणों में से एक है।" उनके मुताबिक भरतपुर, ढोलपुर, जयपुर और चित्तौड़गढ़ जैसे क्षेत्रों में पहाड़ियों के गायब होने से सामान्य से ज्यादा सैंडस्टॉर्म आ रहे हैं।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 1975 से 2019 के बीच पिछले 44 वर्षों में अरावली रेंज के भूमि उपयोग में आए बदलावों का अध्ययन किया है। इसके लिए उन्होंने गूगल अर्थ इंजन (जीईई) से प्राप्त आंकड़ों और सीएआरटी (वर्गीकरण और प्रतिगमन ट्री) तकनीक का उपयोग किया है।

साथ ही शोधकर्ताओं ने मल्टीलेयर परसेप्ट्रॉन-न्यूरल नेटवर्क (एमएलपी-एनएन) एल्गोरिद्म की मदद से 2019 में भूमि उपयोग के आधार पर अगले 40 वर्षों में 2059 तक आने बदलावों का अनुमान लगाया है।

44 वर्षों में वन क्षेत्र में आई है 5,772.7 वर्ग किलोमीटर की गिरावट

इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक अरावली क्षेत्र का करीब 4.86 फीसदी हिस्सा अब बंजर हो चुका है। इसका कुल क्षेत्रफल करीब 3,676 वर्ग किलोमीटर है। वहीं 1.02 फीसदी क्षेत्र में बसावट हुई है, जो करीब 776.8 वर्ग किलोमीटर है। इतना ही नहीं अरावली क्षेत्र में 1975 से 2019 के बीच कुल वन क्षेत्र में  5,772.7 वर्ग किलोमीटर की गिरावट आई है, जो कुल क्षेत्र का करीब 7.63 फीसदी हिस्सा है।

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि जिस तरह से इस क्षेत्र में विनाश हो रहा है उसके चलते 2059 तक वन भूमि के करीब 16,360.8 वर्ग किलोमीटर (21.64 फीसदी) हिस्से को बसावट के रूप में बदल दिया जाएगा।

प्रोफेसर शर्मा के मुताबिक 1999 तक इस पर्वत श्रंख्ला के 10,462 वर्ग किलोमीटर के हिस्से में शुष्क पर्णपाती वन थे, जो 2019 में करीब 41 फीसदी की गिरावट के साथ घटकर 6,116 वर्ग किलोमीटर में शेष रह गए हैं।

उन्होंने अपनी रिपोर्ट में 2018 के बाद से हर साल राजस्थान में आती धूल भरी आधिंयों का विशेष तौर पर उल्लेख किया है, जिसने कई लोगों की जान ले ली थी और सम्पति को भारी नुकसान पहुंचाया है।

 रिसर्च के मुताबिक वन क्षेत्रों और पहाड़ियों के विनाश के चलते इंसान और पशुओं के बीच के संघर्ष भी बढ़ रहे हैं। इनकी वजह से तेंदुए, हिरण और चिंकारा जैसे जीव अपने भोजन के लिए इंसानी बस्तियों में प्रवेश कर रहे हैं। इतना ही नहीं इस विनाश की वजह से पौधों की कई दुर्लभ प्रजातियों पर भी खत्म होने का खतरा मंडरा रहा है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक इस क्षेत्र में अनियंत्रित खनन और शहरीकरण के चलते अनेकों पहाड़ियां गायब हो गई हैं। वहीं जिस तरह से संसाधनों की मांग बढ़ रही है और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जा रहा है, उनके चलते अन्य क्षेत्रों में भी पहाड़ियां जल्द गायब हो जाएंगी। देखा जाए तो इस तरह से बढ़ता इंसानी प्रभाव इस पूरी पर्वत श्रंखला के लिए एक बड़ा खतरा है।

शोधकर्ताओं के अनुसार बढ़ता इंसानी हस्तक्षेप पर्यावरणीय अखंडता को भंग कर रहा है। जो न केवल सतत विकास के लक्ष्यों की प्रगति के लिए बाधा है साथ ही यह पारिस्थितिकी संतुलन को भी बिगाड़ रहा है। ऐसे में इसपर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

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