देश के खराब वायु गुणवत्ता वाले सभी शहरों में एनजीटी ने पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर लगाया प्रतिबंध
कोविड-19 महामारी को वायु प्रदूषण और घातक बना सकता है। यह पहला प्रीकॉशनरी प्रिंसिपल पर आधारित आदेश है जो कोविड और वायु प्रदूषण के रिश्ते की संभावना को मान्यता भी देता है।
On: Monday 09 November 2020
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने केंद्र और राज्य प्राधिकरणों को देशभर में एनसीआर समेत ऐसे सभी शहर जहां वायु गुणवत्ता खराब है या फिर उससे भी बदतर स्थिति में है वहां पर पटाखों की बिक्री और उसके इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगाने का आदेश दिया है। पीठ ने कहा है कि 9-10 नवंबर की मध्य रात्रि से एक दिसंबर तक पूरी तरह से पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल का यह आदेश एनसीआर में प्रभावी रहेगा। साथ ही यह आदेश देश के अन्य प्रदूषित शहरों पर ( बीते वर्ष नवंबर के आंकड़े के आधार पर) भी लागू होगा।
कोविड-19 और वायु प्रदूषण के गठजोड़ से स्थिति गंभीर होने के अंदेशे को लेकर एनजीटी ने 09 नवंबर, 2020 को जारी अपने आदेश में कहा है यदि इस आदेश पर किसी राज्य को आपत्ति है तो वह एनजीटी में अपील कर सकता है। अन्यथा एक दिसंबर के बाद इस पर विचार किया जाएगा। एनजीटी ने इस मामले में 5 नवंबर, 2020 को सभी राज्यों व संघ शासित प्रदेशों को आदेश जारी करते हुए अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था।
आदेश में स्पष्ट किया गया है कि ऐसे शहर जहां वायु प्रदूषण मॉडरेट या सामान्य है वहां दीपावली, छठ और क्रिसमस आदि पर्व पर दो घंटे के लिए सिर्फ ग्रीन कैकर्स जलाने या दागने की अनुमति दी जाए। कोविड-19 को बढ़ा सकने वाले वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए यदि प्राधिकरण कोई अन्य उपाय या सख्त कदम उठाना चाहते हैं तो वे अपना कदम भी बढाएं।
पीठ ने देश के सभी मुख्य सचिव, डीजीपी को सभी जिलाधिकारियों, पुलिस अधीक्षक और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व समितियों को इस संबंध में सर्कुलर जारी करने का आदेश दिया है। वहीं, सीपीसीबी और राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व समितियों को इस दर्मियान रेग्युलर मॉनिटरिंग करने और उसे वेबसाइट पर सार्वजनिक किए जाने का भी आदेश दिया गया है। इस मामले पर अगली सुनवाई एक दिसंबर, 2020 को होगी।
एनजीटी ने पटाखों के व्यवसाय और रोजगार से जुड़े हुए कारोबारी एसोसिएशन की अपीलों को खारिज करते हुए कहा है कि मौजूदा स्थिति में वित्तीय घाटा और रोजगार का नुकसान जरूर होगा लेकिन यह दलील लोगों के जीवन और स्वास्थ्य के नुकसान की तुलना में स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है।
वहीं, सरकार और देश की सर्वोच्च प्रदूषण नियंत्रण ईकाई केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने एनजीटी को अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि कोविड-19 की महामारी और वायु प्रदूषण के बीच रिश्ते की संभावना की पड़ताल उनके जांच दायरे से बाहर का विषय है।
हालांकि एनजीटी ने इस टिप्पणी पर गौर करने के बाद कहा है कि प्रीकॉशनरी प्रिंसिपल यानी बचाव के सिद्धांत के तहत लोगों के जीवन के अधिकार (राइट टू लाइफ) और शुद्ध हवा में सांस लेने के अधिकार को ध्यान में रखते हुए विज्ञान के सबूतों (बर्डेन ऑफ प्रूफ) को नजरअंदाज भी किया जा सकता है।
एनजीटी ने कोविड-19 की वैश्विक मीडिया रिपोर्ट्स, सीपीसीबी व राज्यों की ओर से दाखिल जवाब के बाद मामले में नियुक्त न्याय मित्र और वरिष्ठ अधिवक्ता राज पांजवानी की ओर से पेश की गई दलीलों को ध्यान में रखकर यह आदेश दिया है।
देशभर के तमाम प्रदूषित शहरों में पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने वाले इस आदेश को लेकर एनजीटी ने न्यायाधिकार क्षेत्र पर भी टिप्पणी की है।
एनजीटी ने कहा, "वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के स्थापित होने से उसका न्यायाधिकार प्रभावित नहीं होता है और न ही वायु प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले में कोविड-19 के प्रभावों को शामिल किया गया है ऐसे में जरूरी है कि ट्रिब्यूनल इस बारे मे आगे सुनवाई करे। जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि कलकत्ता उच्च न्यायालय के अलावा उड़ीसा, राजस्थान, सिक्किम और चंडीगढ़ व दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की ओर से कोविड-19 को ध्यान में रखते हुए वायु प्रदूषण को लेकर दिया गए आदेश ट्रिब्यूनल के लिए गौर करने लायक है।"
सीपीसीबी ने एनजीटी को 6 नवंबर, 2020 को प्रदूषित शहरों की स्थिति रिपोर्ट मुहैया कराई थी। पीठ ने इस सूची पर गौर करते हुए कहा कि नॉन-अटेनमेंट शहरों (जहां वायु प्रदूषण मानकों से ज्यादा हो) के अलावा भी कई शहरों की वायु गुणवत्ता के मानक ठीक नहीं है। इसलिए हमें कोविड-19 और वायु प्रदूषण के रिश्ते को ध्यान में रखते हुए एक रूप वाले मापदंड (यूनिफॉर्म यार्डस्टिक) को अपनाना होगा।