वायु प्रदूषण से हर तीन मिनट में एक बच्चे की मौत, राजस्थान सबसे ऊपर
एक अध्ययन में बताया गया है कि देश में प्रति तीन मिनट एक बच्चा अपने निचले फेफड़े के संक्रमण(एलआरआई) के कारण मौत के मुंह में जा रहा है। इस संक्रमण का सबसे बड़ा कारण वायु प्रदूषण बताया गया है
On: Monday 14 October 2019


क्या आप जानते हैं कि देश के नौनिहालों के लिए वायु प्रदूषण कितना बड़ा साइलेंट किलर बन गया है? वायु प्रदूषण से भारत में हर तीन मिनट में एक बच्चे (0 से 5 साल) की मौत हो जाती है। 2017 में भारत में वायु प्रदूषण से लगातार एक लाख 85 हजार से अधिक बच्चों की मौत हो गई। यानी, औसतन रोजाना का आकलन किया जाए तो रोजाना लगभग 508 बच्चों की मौतें हुई। ये आंकड़े ग्लोबल बर्डेन डिजीज, 2017 (पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, भारतीय अनुसंधान चिकित्सा परिषद, आईएचएमई के संयुक्त अध्ययन) के अध्ययन में सामने आए हैं।
अध्ययन में यह बताया गया है कि देश में प्रति मिनट एक बच्चा अपने निचले फेफड़े के संक्रमण(एलआरआई) के कारण मौत के मुंह में जा रहा है। इस संक्रमण का सबसे बड़ा कारण वायु प्रदूषण बताया गया है।
अध्ययन के मुताबिक पिछले दस सालों में 0 से 5 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों में प्रमुख दस बीमारियों से लगभग दस लाख से अधिक बच्चों की मौतें हो गई। इसमें एलआरआई से मरने वाले बच्चों की संख्या इन दस प्रमुख बीमारियों में दूसरे नंबर पर है। यानी इस बीमारी से देश के 0 से पांच वर्षकी आयुवर्ग के बच्चे अपना छठा वर्ष नहीं देख पाते हैं।
यदि पूरे देश के राज्यों को देखें तो इस बीमारी से राजस्थान देश में सबसे ऊपर है। जहां एक वर्ष में 126 बच्चे मर जाते हैं। दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश है। यहां 112 मौतें हो जाती हैं।
इस बीमारी से सबसे कम संख्या में बच्चों की मौतें केरल में हुई हैं। सरकार प्रतिवर्ष ठंड शुरू होने के साथ वायु प्रदूषण को रोकने के लिए दर्जनों घोषणाएं करती है और ठंड के खत्म होते ही सभी योजनाओं को ठंडे बस्ते में डाल देती है। चूंकि सरकार के उपाय हर वर्ष पूरी तरह से अस्थाई होते हैं, इसलिए इसका अधिक बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ता।
सरकार कभी इस समस्या का स्थायी समाधान खोजने का प्रयास नहीं करती है। चूंकि यह एक ऐसा साइलेंट कीलर है जो कि आंखों से दिखाई नहीं देता ऐसे में सरकारें इसे बहुत बड़ा कारण नहीं मानतीं। लेकिन आंकड़े बता रहे हैं इस भयावह वायु प्रदूषण से लगातार बच्चों की मौतें के आंकड़े बढ़ रहे हैं। ध्यान देने वाली बात है कि ये आंकड़े केवल बच्चों के हैं और 0 से 5 आयु वर्ग से अधिक के बारे में यदि देखेंग तो यह और भयावह होगा।
सरकारें हर साल बस पराली के जलने पर हो हल्ला करती हैं और हरियाणा व पंजाब की राज्य सरकारों को कोसती हैं। या फिर पंद्रह दिन के लिए सम-विषय योजनाओं को बस जनता का ध्यान भटकाने के लिए टोटके के रूप में शुरू कर देती हैं। इस प्रकार के टोटके से वायु प्रदूषण पर नियंत्रण पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।