एशिया में महिलाओं में 25 और पुरुषों में 24 प्रतिशत बढ़ा फेफड़े का कैंसर, वायु प्रदूषण जिम्मेवार

एक नए अध्ययन में कहा गया है कि एशिया में पुरुषों के फेफड़ों का कैंसर एडेनोकार्सिनोमा (एलएडीसी) में सालाना 24 फीसदी की वृद्धि हुई, वहीं महिलाओं में इसकी सबसे अधिक 25 फीसदी की वृद्धि हुई है

By Dayanidhi

On: Monday 29 November 2021
 
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स

वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने दुनिया भर में फेफड़ों के एडेनोकार्सिनोमा (एलएडीसी) के मामलों में वृद्धि के लिए बढ़ते वायु प्रदूषण को जिम्मेदार माना है। एडेनोकार्सिनोमा एक प्रकार का फेफड़े का कैंसर है। अध्ययन ने यह भी निष्कर्ष निकाला है कि दुनिया भर में तंबाकू की खपत कम होने से फेफड़ों में होने वाले स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (एलएससीसी) कैंसर भी कम हुआ है।

यह अध्ययन सिंगापुर की नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, (एनटीयू सिंगापुर) के नेतृत्व में किया गया है। शोध में सुझाव दिया गया है कि इस कैंसर के लिए आनुवंशिक, पर्यावरणीय और जीवन शैली एक अहम भूमिका निभाती है। जबकि फेफड़े के स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा अक्सर धूम्रपान करने से होता है। 

इस अध्ययन से पता चला है कि पृथ्वी के वायुमंडल में ब्लैक कार्बन की 0.1 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर वृद्धि हुई, जिसे कालिख के रूप में भी जाना जाता है। कालिख के कारण दुनिया भर में एडेनोकार्सिनोमा (एलएडीसी) की घटनाओं में 12 फीसदी की वृद्धि हुई है। 

ब्लैक कार्बन एक तरह का प्रदूषक है जिसे पीएम 2.5 के तहत वर्गीकृत किया गया है। शोधकर्ताओं ने पाया कि यह 1990 से 2012 तक वैश्विक स्तर पर सालाना 3.6 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (µg/m3) बढ़ा है।

इस बीच, धूम्रपान के प्रसार में 1 फीसदी की कमी आने का मतलब वैश्विक स्तर पर एलएससीसी की घटनाओं में 9 फीसदी की गिरावट के बराबर है। दुनिया भर में धूम्रपान करने वालों की संख्या में सालाना 0.26 फीसदी की कमी आई है, जो 1990 से 2012 तक लगभग 6 फीसदी तक कम हो गई है।

ए कैंसर जर्नल फॉर क्लिनिशियन के अनुसार 2020 में अनुमानित 18 लाख मौतों के लिए फेफड़े का कैंसर प्रमुख रूप से जिम्मेवार था। दुनिया भर के आंकड़ों ने फेफड़ों के कैंसर के रुझानों पर प्रकाश डाला है, लेकिन यह समझना कि उनके पीछे क्या कारण हो सकते हैं, यह स्पष्ट नहीं है, जबकि एनटीयू के नेतृत्व वाले अध्ययन ने कैंसर की घटनाओं को तंबाकू के सेवन और वायु प्रदूषण से जोड़ा है।

एनटीयू के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और स्वास्थ्य और जीव विज्ञान के प्रोफेसर जोसेफ सुंग ने कहा कि हमारे अध्ययन में, हम यह निर्धारित करने में सफल रहे कि दुनिया भर में फेफड़ों में एडेनोकार्सिनोमा कि वृद्धि वायु प्रदूषण के कारण हो सकता है। पिछले दशकों में यह हमेशा स्पष्ट नहीं रहा है कि दुनिया भर में महिलाओं और धूम्रपान न करने वालों को फेफड़ों का कैंसर कैसे हो रहा है। उन्होंने कहा फेफड़ों के कैंसर को लेकर हमारा अध्ययन विशिष्ट प्रकार के कारणों में पर्यावरणीय कारकों के महत्व को भी शामिल करता है।

प्रमुख अध्ययनकर्ता एनटीयू के एशियन स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर स्टीव यिम ने कहा हमारे अध्ययन ने हमें फेफड़ों के एडेनोकार्सिनोमा की बढ़ती प्रवृत्ति के पीछे के कारण के रूप में एक इशारा किया है, जबकि बावजूद इसके धूम्रपान करने वाले लोगों की संख्या घट रही है। उन्होंने कहा हमारे निष्कर्ष वायु प्रदूषक उत्सर्जन, विशेष रूप से ब्लैक कार्बन को कम करने की आवश्यकता पर जोर देते हैं।

अध्ययन ने फेफड़ों के कैंसर के आंकड़ों के लिए 1990 से 2012 तक विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों का विश्लेषण किया, जबकि 1980 से 2012 तक आयु-मानक धूम्रपान प्रसार दर के लिए डेटासेट एक स्वतंत्र वैश्विक स्वास्थ्य अनुसंधान केंद्र, इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन से लिया गया था। प्रदूषण के आंकड़े नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) से प्राप्त किए गए थे। विश्लेषण किए गए प्रदूषक ब्लैक कार्बन, सल्फेट और पीएम 2.5 थे।

लिंग और जगह  की भूमिका

विभिन्न महाद्वीपों में अलग-अलग लिंगों के बीच फेफड़ों के कैंसर और ब्लैक कार्बन के बीच संबंध भी अलग तरह के होते हैं। उदाहरण के लिए, प्रदूषक और एलएडीसी और एलएससीसी दोनों के बीच की कड़ी पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक मजबूत पाई गई थी।

दुनिया भर में ब्लैक कार्बन की 0.1 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (µg/m3) वार्षिक वृद्धि पुरुषों में 9 फीसदी की तुलना में महिलाओं में एलएडीसी में 14 फीसदी की वृद्धि पाई गई। जहां तक एलएससीसी का संबंध है, प्रदूषक में समान वृद्धि महिलाओं में 14 फीसदी की वृद्धि से जुड़ी हुई थी, जबकि विपरीत लिंग में यह 8 फीसदी थी।

शोधकर्ताओं ने कहा कि अध्ययन में, दुनिया भर के आंकड़ों से पता चलता है कि एलएससीसी में कमी पुरुषों में अधिक महत्वपूर्ण है और कमी की प्रवृत्ति तंबाकू की खपत में कमी के साथ मेल खाता है।

हालांकि, तंबाकू के उपयोग की घटती प्रवृत्ति के बावजूद, एशिया, उत्तरी अमेरिका और ओशिनिया, जहां महिला धूम्रपान करने वालों की संख्या में 1 फीसदी की वृद्धि उन भौगोलिक क्षेत्रों में कैंसर की 12 फीसदी वृद्धि से जुड़ी थी।

जनसंख्या वृद्धि और बढ़ते वायु प्रदूषण का प्रभाव

वैज्ञानिकों ने समझाया कि दुनिया भर में धूम्रपान करने वालों का कुल प्रतिशत कम होने के बावजूद, 1980 से 2012 तक बड़े पैमाने पर जनसंख्या वृद्धि के कारण दुनिया भर में धूम्रपान करने वालों की संख्या अधिक थी। जिसके परिणामस्वरूप धूम्रपान करने वाली महिलाओं की संख्या में 7 फीसदी की वृद्धि हुई।

वैज्ञानिकों के अनुसार, एलएडीसी की बढ़ती घटनाएं एशिया में विशेष रूप से प्रमुख हैं, जहां ब्लैक कार्बन और सल्फेट का उत्सर्जन बढ़ रहा है।

एशिया में पुरुषों के बीच एलएडीसी में सबसे बड़ी वृद्धि देखी गई, जिसमें सालाना 24 फीसदी की वृद्धि हुई, मुख्य रूप से जापान में यह सालाना 38 फीसदी है, दक्षिण कोरिया में 37 फीसदी सालाना वृद्धि हुई। एशिया में महिलाओं के लिए, एलएडीसी में 25 फीसदी की वृद्धि हुई, इसी तरह, जापान मैं यह 43 फीसदी सालाना और दक्षिण कोरिया में 36 फीसदी है दोनों में स्पष्ट रूप से बढ़ती हुई प्रवृत्ति दिखाई दे रही है।

शोधकर्ताओं ने एशिया में वायु प्रदूषण की प्रमुख प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला, जिसमें ब्लैक कार्बन (11.9 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर  वार्षिक (µg/m3)) और सल्फेट (35.4 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर वार्षिक (µg/m3)) ने दुनिया भर में सबसे ज्यादा वृद्धि दिखाई, दक्षिण कोरिया ने दोनों प्रदूषकों के लिए सबसे बड़ी वृद्धि पेश की। 

बिजली उत्पादन या परिवहन के लिए जीवाश्म ईंधन के दहन को लंबे समय से अधिकांश शहरी व्यवस्था में पीएम 2.5 कण वायु प्रदूषण के स्रोत के रूप में जाना जाता है। यह कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को बढ़ाकर जलवायु परिवर्तन को भी बढ़ता है, जो ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है।   

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