उत्तर भारत ही नहीं, मध्य भारत में भी जहरीली हो चुकी है हवा: सीएसई

सीएसई द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट से पता चला है कि मध्य भारत में सिंगरौली और ग्वालियर की हवा सबसे ज्यादा दूषित हो चुकी है

By Lalit Maurya

On: Tuesday 04 January 2022
 

यह सही है कि जाड़ों के दौरान दिल्ली एनसीआर सहित उत्तर भारत के कई हिस्सों में हवा दमघोंटू हो जाती है। पर हाल ही में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा जारी विश्लेषण से पता चला है कि यह स्थिति केवल उत्तर भारत तक ही सीमित नहीं है। देश के मध्यवर्ती हिस्सों में भी सर्दियों के दौरान हवा की गुणवत्ता काफी खराब हो चुकी है। रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित कई अन्य क्षेत्रों के शहर सर्दियों के दौरान प्रदूषण की गंभीर स्थिति का सामना करने को मजबूर हैं।

विश्लेषण के मुताबिक 2021 के दौरान सिंगरौली में 95 दिनों तक वायु की गुणवत्ता 'बहुत खराब' या 'गंभीर' श्रेणी की थी। यह अवधि लगभग दिल्ली के बराबर ही है। सीएसई द्वारा जारी इस ताजा विश्लेषण के मुताबिक 2021 के दौरान सिंगरौली में 95 दिनों तक हवा की गुणवत्ता 'बेहद खराब' या 'खतरनाक' स्तर पर थी। यह लगभग समान अवधि के दौरान दिल्ली में दर्ज किए गए प्रदूषित दिनों के लगभग बराबर ही है।

वहीं यदि अन्य प्रमुख शहरों की बात करें तो नवंबर 2021 तक भोपाल में करीब 38 दिनों में वायु गुणवत्ता का स्तर या तो खराब या फिर बदतर स्थिति में था, जबकि इंदौर में 36, ग्वालियर में 72, जबलपुर में 49 और उज्जैन में 30 दिनों तक प्रदूषण की ऐसी ही स्थिति दर्ज की गई थी। इतना ही नहीं रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि सर्दियों के दौरान सिंगरौली, कटनी, ग्वालियर, जबलपुर और भोपाल धुंध से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। 

अपने इस विश्लेषण में सीएसई ने 1 जनवरी 2019 से 12 दिसंबर, 2021 के बीच इस क्षेत्र में पीएम2.5 के वार्षिक और मौसमी रुझानों का आंकलन किया था। इसके लिए सीएसई ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के 17 शहरों में वायु गुणवत्ता की निगरानी कर रहे 18 स्टेशनों से प्राप्त आंकड़ों को शामिल किया है। इसमें ग्वालियर के दो और भोपाल, दमोह, देवास, इंदौर, जबलपुर, कटनी, मैहर, मंडीदीप, पीथमपुर, रतलाम, सागर, सतना, सिंगरौली, उज्जैन, भिलाई और बिलासपुर के एक-एक स्टेशन शामिल हैं। 

सर्दियों के दौरान प्रदूषण में दर्ज की गई कई गुना वृद्धि

पता चला है कि पूर्वी मध्यप्रदेश के छोटे से शहर सिंगरौली में 2021 के दौरान वायु गुणवत्ता का वार्षिक औसत सबसे खराब 81 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था, जबकि इसके बाद ग्वालियर में 56 और कटनी में 54 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर रिकॉर्ड किया गया था। देखा जाए तो यदि सिंगरौली को छोड़ दें तो मध्य भारत के अन्य शहरों में पीएम 2.5 का वार्षिक औसत अपेक्षाकृत रूप से कम था, लेकिन सर्दियों के दौरान उसका स्तर में कई गुना वृद्धि दर्ज की गई थी।

उदाहरण के लिए नवंबर 2021 के दौरान ग्वालियर में साप्ताहिक पीएम 2.5 का स्तर 202 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक बढ़ गया था। वहीं इस सर्दी में पीएम 2.5 का अब तक का उच्चतम साप्ताहिक स्तर सिंगरौली में 191 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर, जबकि कटनी में 141, भोपाल में 129, जबलपुर में 124, इंदौर में 104 और दमोह में 101 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक पहुंच गया था। हालांकि यह पिछली सर्दियों की तुलना में थोड़ा कम है।

धुआं उगलते वाहन है एक बड़ी समस्या

इतना ही नहीं सर्दियों के दौरान कई शहरों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर भी कहीं ज्यादा था, जोकि इंदौर में सबसे ज्यादा दर्ज किया गया था। विश्लेषण से पता चला है कि सर्दियों के दौरान इन दोनों राज्यों के सभी शहरों के लिए वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। जहां ग्वालियर और सिंगरौली में वायु गुणवत्ता सबसे खराब हो चुकी है। देखा जाए तो सर्दियों के दौरान इन शहरों की हवा दिल्ली एनसीआर और उत्तर प्रदेश के कई शहरों जितनी दूषित हो चुकी है।

मध्य भारत में बढ़ते प्रदूषण में वाहनों का प्रमुख योगदान था। गौरतलब है कि सभी शहरों में शाम 6 से रात 8 बजे के बीच प्रति घंटा नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की सांद्रता चरम पर पाई गई थी, प्रदूषण का यह स्तर शाम में भीड़भाड़ वाले समय से मेल खाता है। 

रिपोर्ट के अनुसार दीवाली के दिन मध्य भारत में प्रदूषण का स्तर सबसे ज्यादा दर्ज किया गया था। इस क्षेत्र में दीवाली की रात (रात 8 बजे से सुबह 8 बजे के बीच)  प्रदूषण का स्तर, दीवाली से पहले की सात रातों की तुलना में 3.9 गुना तक बढ़ गया था। दीपावली की रात भोपाल में प्रदूषण का स्तर सबसे ज्यादा था, जब पीएम2.5 के स्तर में 3.9 गुना वृद्धि दर्ज की गई थी, जबकि उज्जैन में 3.7 गुना वृद्धि देखी गई थी।

सीएसई की मानें तो इस क्षेत्र में प्रदूषण की रियल टाइम में हो रही निगरानी सीमित है। ऐसे में यदि लम्बी अवधि के रुझान को समझने के लिए आंकड़ें पर्याप्त नहीं है। ऐसे में सीएसई का मानना है कि वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत वायु गुणवत्ता की निगरानी को बेहतर करने और बहु-क्षेत्रीय स्वच्छ वायु कार्य योजनाओं के समयबद्ध कार्यान्वयन के लिए तत्काल ध्यान देने की जरुरत है।

इस बारे में सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी का कहना है कि “भले ही इस क्षेत्र में रियल टाइम में वायु गुणवत्ता सम्बन्धी आंकड़ें बेहद सीमित है, लेकिन इन दो बड़े राज्यों के केवल 17 शहरों से जो आंकड़े सामने आ रहे हैं, वह प्रदूषण के बढ़ते संकट और सर्दियों के धुंध की चपेट में आने का संकेत देते हैं। ऐसे में स्वच्छ हवा के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर जल्दी और मजबूत बहु-क्षेत्रीय कार्रवाई की जरुरत है।“ 

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