जहरीली हवा: हर साल 18.5 लाख बच्चों को अस्थमा का मरीज बना रहा है हवा में घुला नाइट्रोजन डाइऑक्साइड

बच्चों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के कारण होने वाले अस्थमा के करीब दो तिहाई मामले शहरी क्षेत्रों में दर्ज किए गए थे, जिनका कुल आंकड़ा 12.2 लाख था

By Lalit Maurya

On: Saturday 08 January 2022
 

नाइट्रोजन डाइऑक्साइड दुनिया भर में हर साल 18.5 लाख बच्चों को अस्थमा का मरीज बना रहा है जो इस बात का जीता जागता सबूत है कि जिस हवा में हमारे बच्चे सांस ले रहे हैं वो कितनी जहरीली हो चुकी है। इतना ही नहीं अपने बच्चों में बढ़ते अस्थमा के लिए हम स्वयं ही जिम्मेवार हैं।   

यह जानकारी जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के मिलकेन इंस्टीट्यूट स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है जोकि जर्नल लैंसेट प्लैनेटरी अर्थ में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं की मानें तो इसके लिए कहीं हद तक हमारी गाड़ियों से निकलने वाले धुंए और उससे होने वाले वायु प्रदूषण का नतीजा है। यह समस्या इतनी गंभीर हो चुकी है कि उसने लॉस एंजेलिस से लेकर भारत में मुंबई तक को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। 

अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने लॉस एंजिल्स से लेकर मुंबई तक 13,000 से अधिक शहरों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के कारण बच्चों में होने वाले अस्थमा के बोझ का अनुमान लगाया है। जिसके लिए उन्होंने 2000 से 2019 के बीच सामने आए अस्थमा के मामलों का विश्लेषण किया है साथ ही उन्होंने वाहनों, पावर प्लांटस और उद्योगों से होने वाले प्रदूषण और उसके प्रभाव का अध्ययन किया है। 

निष्कर्ष में सामने आया है कि 2019 में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के कारण होने वाले प्रदूषण से बच्चों में अस्थमा के 18.5 लाख मामले सामने आए थे।  जिनमें से करीब दो तिहाई शहरी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों में दर्ज किए गए थे, जिनका कुल आंकड़ा 12.2 लाख था।

हालांकि अध्ययन में यह भी सामने आया है कि पिछले कुछ समय में भारत सहित दुनिया के अन्य शहरों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के कारण बच्चों में होने वाले अस्थमा के मामलों में गिरावट आई थी। शोधकर्ताओं के मुताबिक इसके पीछे की वजह वायु प्रदूषण को लेकर सरकारों द्वारा उठाए गए कड़े कदम थे। विशेष रूप से अमेरिका जैसे संपन्न देशों में इसका प्रभाव साफ तौर पर देखा जा सकता है।

दक्षिण एशिया और अफ्रीक में बच्चों पर बढ़ रहा है अस्थमा का बोझ

शोधकर्ताओं के मुताबिक भले ही यूरोप और अमेरिकी शहरों में वायु गुणवत्ता में सुधार देखा गया है लेकिन इसके बावजूद दक्षिण एशिया, उप-सहारा अफ्रीकी और मध्य पूर्व में हवा विशेष रूप से दूषित होती जा रही है जिसमें नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर लगातार बढ़ रहा है। यही वजह है कि खास तौर पर दक्षिण एशिया और उप-सहारा अफ्रीका के शहरों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के कारण बच्चों में होने वाले अस्थमा के मामलों में वृद्धि दर्ज की गई थी। 

आंकड़ों के मुताबिक दक्षिण एशिया में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के कारण बच्चों में होने वाले अस्थमा के करीब 50 हजार मामले वर्ष 2000 में सामने आए थे वो 2019 में 81 फीसदी बढ़कर 90,400 पर पहुंच गए थे। इसी तरह उप सहारा अफ्रीका में 2000 के दौरान इन मामलों की संख्या 49,100 थी जो 2019 में 110 फीसदी बढ़कर 102,900 पर पहुंच गई थी। 

वहीं दूसरी तरफ उच्च आय वाले देशों को देखें तो जहां 2000 में एनओ2 के चलते बच्चों में अस्थमा के 464,800 मामले सामने आए थे जो 2019 में 27 फीसदी घटकर 340,900 पर पहुंच गए थे। कुल मिलकर 2000 में जहां बच्चों में अस्थमा के 20 फीसदी मामलों के लिए एनओ2 जिम्मेवार था, वो 2019 में घटकर 16 फीसदी पर आ गया था।

इससे पहले भी किए शोध में सामने आया था कि दुनिया भर में बच्चों में सामने आए अस्थमा के करीब 13 फीसदी मामलों के लिए हवा में घुला नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जिम्मेवार था जबकि सबसे ज्यादा आबादी वाले 250 शहरों में यह आंकड़ा 50 फीसदी तक था। भारत जैसे देशों में यह समस्या गंभीर रूप ले चुकी है। जहां दिल्ली जैसे शहर अपनी जहरीली होती हवा को लेकर लगातार संघर्ष कर रहे हैं।     

अपने निष्कर्ष के बारे में जानकारी देते हुए शोधकर्ता सूसन एनेनबर्ग का कहना है कि बढ़ता नाइट्रोजन डाइऑक्साइड बच्चों में अस्थमा को बढ़ा रहा है। शहरी क्षेत्रों में यह समस्या गंभीर रूप ले चुकी है। ऐसे में बच्चों को इस जहरीली हवा से बचाने के लिए हवा की गुणवत्ता में सुधार हमारी रणनीतियों का एक अहम हिस्सा होना चाहिए। 

Subscribe to our daily hindi newsletter