पर्यावरण नियमों के दायरे में नहीं आता मोबाइल टावरों से होने वाले रेडिएशन: डीपीसीसी

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Monday 19 December 2022
 
मोबाइल टावर; फोटो: पिक्साबे

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने अपनी नई रिपोर्ट में कहा है कि मोबाइल टावरों से होने वाले रेडिएशन के लिए पर्यावरणीय कानूनों के तहत कोई पर्यावरणीय मानक और मानदंड निर्धारित नहीं हैं। साथ ही मोबाइल टावरों से होने वाले विकिरण का मामला पर्यावरण अधिनियम, 1986 के दायरे में नहीं आता है।

यह रिपोर्ट 19 दिसंबर, 2022 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के सम्मुख प्रस्तुत की गई है। गौरतलब है कि डीपीसीसी ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा दिल्ली के पीतमपुरा में 9 स्थानों पर पार्कों में दूरसंचार टावरों की स्थापना के जवाब में यह बात कही है।

इस बाबत संचार मंत्रालय के दूरसंचार विभाग ने 10 मार्च, 2021 को एक पत्र के माध्यम से कहा है कि एक मोबाइल टावर से होने वाला विद्युत चुम्बकीय विकिरण जो आईसीएनआईआरपी द्वारा निर्धारित सुरक्षित सीमा के दायरे में है और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित हैं, उनके द्वारा स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रतिकूल प्रभाव का कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।

इस बारे में डीपीसीसी ने स्पष्ट करते हुए लिखा है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, वायु अधिनियम, 1981 और पर्यावरण अधिनियम, 1986 द्वारा मोबाइल टॉवर विकिरण और पर्यावरण पर इसके प्रभावों पर प्रकाशित जागरूकता नोट के अनुसार विकिरण को अधिनियमों के प्रावधानों के तहत कवर नहीं किया गया है। ऐस में इसे प्रदूषक नहीं माना जा सकता।

ऐसे में इससे जुड़ी चिंता का एकमात्र मुद्दा मोबाइल टावर से जुड़े डीजी सेट से होते शोर और वायु उत्सर्जन नियंत्रण से जुड़ा है। उनके अनुसार फिलहाल दिल्ली में मोबाइल टावर कंपनियां इन टावरों में डीजी सेट नहीं लगा रही हैं। वहीं अभी तक स्पष्ट नहीं है कि मोबाइल टावर वास्तव में मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार चाहे वो सीपीसीबी द्वारा जारी दिशा-निर्देश हों या सर्वोच्च न्यायालय, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और उच्च न्यायालयों द्वारा पारित विभिन्न आदेश हों, अभी यह तय किया जाना बाकी है कि मोबाइल रेडिएशन मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को प्रभावित करता है या नहीं। डीपीसीसी ने 19 दिसंबर, 2022 को सबमिट इस रिपोर्ट में कहा है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने प्रकाशित जागरूकता नोट में भी इस बात का जिक्र नहीं किया है कि भारत में मोबाइल टावर रेडिएशन मानव स्वास्थ्य को कोई नुकसान पहुंचाते हैं।

दिल्ली में सेप्टेज प्रबंधन पर अंतरिम रिपोर्ट की गई दायर

दिल्ली में सेप्टेज टैंकों के संग्रह के लिए कोई विशिष्ट क्षेत्र निर्धारित नहीं किया गया है और इससे जुड़े लोग पूरी दिल्ली में किसी भी स्थान से सेप्टिक अपशिष्ट एकत्र कर सकते हैं।

विक्रेता सेप्टेज प्रबंधन नियमों की शर्तों का पालन कर रहे हैं इस पर नियंत्रण रखने के लिए, रिपोर्ट में यह सिफारिश की गई है कि दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) को यह आकलन करना चाहिए कि सेप्टिक वेस्ट के निपटान के लिए संख्या के आधार पर कितने वाहनों अथवा टैंकरों की आवश्यकता है। साथ ही जिन घरों में सेप्टिक टैंक हैं उनकी संख्या और उस जिले में उत्पन्न सेप्टिक वेस्ट की कुल कितनी मात्रा उत्पन्न होती है।

गौरतलब है कि 22 अप्रैल, 2022 को एनजीटी द्वारा गठित इस संयुक्त समिति की अंतरिम प्रगति रिपोर्ट में कहा गया है कि उस जिले की आवश्यकता को देखते हुए वहां पर्याप्त संख्या में अधिकृत वेंडर/टैंकर तैनात किए जाने चाहिए। इस समिति की अध्यक्षता न्यायमूर्ति एस पी गर्ग ने की थी।

साथ ही डीजेबी को सेप्टेज की होती अनधिकृत डंपिंग के खिलाफ कार्रवाई करने और अधिकृत विक्रेताओं की गतिविधियों पर निगरानी करने के लिए हर जिले में टास्क फोर्स का गठन किया जाना चाहिए। साथ ही लाइसेंस प्राप्त वाहनों के प्रदर्शन पर नजर रखने के लिए एक केंद्रीकृत निगरानी प्रणाली को जल्द विकसित किए जाने की भी तत्काल आवश्यकता है।

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अनधिकृत कॉलोनियों और बिना सीवर वाले क्षेत्रों में इमारतों के मालिकों और कब्जाधारियों ने केवल डीजेबी के लाइसेंसधारी विक्रेताओं के माध्यम से ही अपने सेप्टेज का निर्वहन किया है। इस रिपोर्ट को 17 दिसंबर 2022 को एनजीटी में सबमिट किया गया है।

बांदा जिले में होते अवैध खनन पर कोर्ट में सबमिट की गई रिपोर्ट

बांदा जिले की पहाड़ियों में पर्यावरणीय नियमों को ताक पर रख होते अवैध खनन, क्रशिंग और ब्लास्टिंग के मामले में संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट 15 दिसंबर 2022 को कोर्ट में सबमिट कर दी है। मामला उत्तर प्रदेश में बांदा जिले के नहरी और खलारी गांवों में होते अवैध खनन से जुड़ा है।

गौरतलब है कि इस मामले में 15 नवंबर 2022 को समिति ने आवेदक रज्जन पांडे के साथ सभी खनन क्षेत्रों का दौरा किया था। इसी प्रकार उस दिन संयुक्त समिति की देखरेख में खनन पट्टे का ड्रोन सर्वेक्षण भी किया गया था। ड्रोन सर्वे के दौरान खनन पट्टाधारकों के प्रतिनिधि ने समिति को बताया कि वे साल भर से लगातार सामग्री का खनन कर रहे हैं।

समिति ने सिफारिश की है कि इस क्षेत्र में गिरते भूजल को देखते हुए एसईआईएए इन खनन परियोजनाओं को दी गई पर्यावरणीय मंजूरी में संशोधन और समीक्षा कर सकती है। इसके अलावा खनन क्षेत्र के आसपास आवासीय और कृषि क्षेत्र है।

खनन परियोजनाओं तक पहुंचने के लिए मार्ग न होने के कारण वो गांव की कच्ची सड़क का उपयोग कर रहे हैं जिनकी चौड़ाई अपर्याप्त है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पिछले पट्टे में खनन समापन योजना के अनुसार बहाली का काम पूरा नहीं किया गया है। 

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