इंसान के कदम रखने से पहले ही दूषित हो चुके थे हिमालय के ग्लेशियर: स्टडी

हिमालय पर औद्योगिक क्रांति के प्रमाण मिले हैं। जिसके आधार पर माना जा रहा है कि इंसान के कदम रखने से बहुत पहले ही मानव गतिविधियों ने ग्लेशियर को दूषित कर दिया था

By Lalit Maurya

On: Tuesday 11 February 2020
 
Photo: Srikant Chaudhary

अंतराष्ट्रीय जर्नल पनास में छपे नए अध्ययन के अनुसार इंसानी गतिविधियों ने सैकड़ों साल पहले मध्य हिमालय की सबसे ऊंची चोटियों में से एक को दूषित दिया था। औद्योगिक क्रांति के जन्मस्थल लंदन से करीब 10,000 किलोमीटर दूर दासुपु ग्लेशियर पर इससे होने वाले प्रदूषण के निशान मिले हैं। ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता और इस अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिक पाओलो गेब्रियल ने बताया कि "औद्योगिक क्रांति, ऊर्जा के उपयोग में एक क्रांति थी। जिसके लिए कोयले का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया गया था। उनका मत है कि इससे होने वाला प्रदूषण हजारों किलोमीटर दूर हवा के जरिये हिमालय तक पहुंचा था।

गौरतलब है कि सर्दियों में चलने वाली यह हवाएं दुनिया भर में पश्चिम से पूर्व की ओर चलती हैं। " दासुपु ग्लेशियर हिमालय में स्थित दुनिया के 14 सबसे ऊंचे पहाड़ों में से एक शीशपंगमा पर स्थित है। यह समुद्र तल से 7,200 मीटर ऊंचा है। रिकॉर्ड के अनुसार दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट के शिखर पर पहला पर्वतारोही 1953 में पहुंचा था। वहीं शीशपंगमा, जोकि 26,335 फीट की ऊंचाई पर है, पहली बार 1964 में चढ़ाई की गई थी।

23 जहरीली धातुएं के प्रमाण मिले

वैज्ञानिकों ने अध्ययन के लिए वर्ष 1997 में एक आइस कोर से बर्फ के नमूने लिए थे। जिसके विश्लेषण से उन्हें 23 धातुओं के होने के सबूत मिले थे। जिसमें कैडमियम, क्रोमियम, निकल और जस्ता सहित कई जहरीली धातुएं शामिल हैं। उनका मत है कि यह बर्फ 1780 के आस-पास जमी हो सकती है। जोकि औद्योगिक क्रांति का शुरुआती समय था | वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि संभवतः 1800 से 1900 के दशक में खेत और रास्ते बनाने के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों को जला दिया गया था। जिसके चलते कुछ धातुएं, विशेष रूप से जस्ता उड़कर हिमालय तक पहुंची होगी।

गैब्रियल ने बताया कि उस समय औद्योगिक क्रांति के साथ-साथ बढ़ती आबादी के लिए बड़े पैमाने पर कृषि क्षेत्रों की जरुरत थी। जिसके लिए जंगलों को जलाकर भूमि साफ की गयी थी। पेड़ों के जलने से जस्ता जैसे धातुएं वायुमंडल में फैल गयी। उनके अनुसार हालांकि यह कहना मुश्किल है कि ग्लेशियल को प्रदूषित करने वाली धातुएं इंसानों द्वारा जंगलों को जलाने से निकली थी या फिर प्राकृतिक रूप से लगने वाली आग का परिणाम थी। वैज्ञानिकों को इस बात के भी प्रमाण मिले हैं कि संदूषण का स्तर 1810 से 1880 के बीच सबसे ज्यादा है।

गैब्रियल ने इसका कारण इस अवधि में सामान्य से अधिक सर्दियों को माना है। सर्दियां मतलब अधिक बर्फ और अधिक मात्रा में बर्फ का जमना। साथ ही कोयले और पेड़ों के जलने से हवाओं के साथ उड़ती राख इस बर्फ में जमा हुई थी। जिसका अर्थ है जितनी अधिक बर्फ दूषित है, उस समय उतना अधिक प्रदूषण हुआ होगा। हालांकि गैब्रियल ने साफ कर दिया कि "संदूषण" और "प्रदूषण" के बीच अंतर को जानना भी जरुरी है। शोध के अनुसार धातुओं का स्तर प्राकृतिक रूप से मौजूद होने की तुलना में अधिक था, लेकिन वो इतना भी अधिक नहीं था कि स्वास्थ्य को नुकसान पंहुचा सके।  

शोधकर्ताओं के अनुसार प्रदूषण के इससे पुराने मामले भी सामने आ चुके हैं। 2015 में बर्ड पोलर सेंटर द्वारा प्रकाशित अध्ययन के अनुसार औद्योगिक क्रांति से 240 साल पहले पेरू में चांदी के लिए किये गए खनन ने दक्षिण अमेरिका की हवा को प्रदूषित कर दिया था। जो स्पष्ट रूप से इस और इशारा करता है कि दुनिया भर में प्रदूषण कोई नयी बात नहीं है। सालों पहले से इंसान इस वातावरण को दूषित करता चला आ रहा है।

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