बीते दो साल में 130 करोड़ में सरकारी एजेंसियों से सिर्फ 17 करोड़ पर्यावरणीय जुर्माना वसूल पाया पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

ऐसे में न सिर्फ बड़ी प्राइवेट कंपनियां बल्कि सरकार खुद पर्यावरणीय जुर्माने का मजाक बना रही हैं। वह भी तब जब पर्यावरण प्रदूषण जानलेवा और खतरनाक होता जा रहा है।

By Vivek Mishra

On: Friday 10 June 2022
 

डाउन टू अर्थ के आरटीआई खुलासे के बाद एक और साक्ष्य सामने आया है जिससे यह पुष्ट होता है कि नख और शिख विहीन प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पर्यावरणीय जुर्माना लगाती हैं लेकिन उनकी रिकवरी में फिसड्डी साबित होती हैं। पंजाब में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रुल्स, 2016 और अन्य पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन करने के लिए पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नियमों का उल्लंघन करने वाले शहरी नगर निकायों पर दो साल में कुल 130 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया लेकिन निकायों से महज 17 करोड़ रुपए ही सरकार से वसूला सका। 

 डाउन टू अर्थ को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की ओर से गठित कचरा प्रबंधन के आदेशों की निगरानी करने वाली जस्टिस जसबीर सिंह की समिति की रिपोर्ट से यह जानकारी मिली। 

रिपोर्ट में कहा गया है "पंजाब के विभिन्न नगर निकायों पर सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रुल्स, 2016 के नियमों का पालन न करने के लिए 01 जुलाई, 2020 से लेकर 31 मार्च, 2021 तक की अवधि के बीच 17.01 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय जुर्माना और 01 अप्रैल, 2021 से 28 फरवरी, 2022 तक 20.35 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय जुर्माना लगाया गया।"

इसी तरह से रिपोर्ट में कहा गया "नालों (ड्रेन) के साइट रेमिडेशन को न अपनाने और एसटीपी न लगाने के लिए 01 जुलाई, 2020 से 28 फरवरी 2022 की अवधि के बीच में पंजाब के नगर निकायों पर 93.22 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय जुर्माना लगाया गया।"

समिति की रिपोर्ट बताती है कि सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रुल्स, 2016 के नियमों का पालन करने वाले मामले में ही राज्य सरकार ने सिर्फ 17 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय जुर्माना राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास जमा किया है। रिपोर्ट में लिखा गया " राज्य सरकार के जरिए अदा की गई पर्यावरणीय जुर्माने की यह एक बहुत छोटी रकम है।"

जस्टिस जसबीर सिंह की समिति ने लुधियाना में कूड़े के ढेर में जलकर मरने वाले 7 व्यक्तियों के एक मामले में एनजीटी में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में कहा कि निगरानी समिति यह सिफारिश करती है कि सरकार को आदेश दिया जाना चाहिए वह पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के जरिए लगाए गए विभिन्न पर्यावरणी जुर्माने को डिपॉजिट करें जो कि 100 करोड़ रुपए से अधिक है। 

पॉल्यूटर पेज प्रिंसिपल के तहत पर्यावरणीय जुर्माने का इस्तेमाल तात्कालिक राहत और दीर्घकालिक राहत के  लिए किया जाता है। 

ऐसे में न सिर्फ बड़ी प्राइवेट कंपनियां बल्कि सरकार खुद पर्यावरणीय जुर्माने का मजाक बना रही हैं। वह भी तब जब पर्यावरण प्रदूषण जानलेवा और खतरनाक होता जा रहा है।

2017 में दिल्ली के गाजीपुर लैंडफिल साइट से दो लोगों की मौत के बाद भी सबक नहीं लिया जा सका। इसके बाद 2022 में लुधियाना के ताजपुर में एक ही परिवार के सात लोग कचरे के ढेर में जलकर मर गए और हरियाणा के मानेसर में एक अधेड़ उम्र की औरत प्लास्टिक कचरे में जलकर मर गई। 

 सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रुल्स, 2016 के तहत न सिर्फ कचरे का प्रबंधन बल्कि पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाना ही सरकारों का दायित्व है। अदालतें कई बार अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए लोगों के बुनियादी अधिकारों को संरक्षित और सुरक्षित करने का आदेश देती रहती हैं। इस दिशा में पर्यावरणीय जुर्मान का न वसूला जाना एक घातक संकेत है।

डाउन टू अर्थ की आरटीआई वाली खबर आप इस लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं : 

डीटीई का खुलासा : कोका-कोला, रिलायंस, अदानी जैसे समूह से बीते 30 सालों में जुर्माना नहीं वसूल पाई सीपीसीबी

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