फ्लाई ऐश के प्रबंधन में नाकाम रहे सिंगरौली-सोनभद्र पावर प्लांट: सीएसई विश्लेषण

फ्लाई ऐश के बह जाने के मामले काफी गंभीर हैं और इस इलाके में इस मुद्दे की तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा है

By Sugandha Arora Sardana

On: Wednesday 20 May 2020
 
11 अप्रैल 2020 को सासन पावर प्लांट का बांध टूटने के बहती राख की गाद। फाइल फोटो

सिंगरौली-सोनभद्र में बीते एक वर्ष के भीतर तीन बार फ्लाई ऐश के बांध के बह जाने की घटना हुई। यह इलाका उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश तक फैला हुआ है। इन घटनाओं से पता चलता है कि पावर प्लांट किस कदर उपयोग न होने वाली फ्लाई ऐश का प्रबंधन नहीं कर पा रहे हैं और यह इस इलाके का बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है।

10 अप्रैल, 2020 को सबसे ताजा मामला सामने आया सासन अल्ट्रा मेगा पावर प्लांट जो कि रिलायंस पावर के अधीन है। इस हादसे में दो लोगों की मौत हो गई और 6 किलोमीटर तक कृषि योग्य भूमि में जहरीले कचरे का फैलाव हो गया। 

पिछले वर्ष भी इसी इलाके में इस तरह के मामले एस्सार मोहन पावर प्लांट और एनटीपीसी विन्ध्यांचल प्लाट में सामने आए। 

सिंगरौली-सोनभद्र में रहने वाले लोग कोयला खनन और पावर प्लांट की वजह से होने वाले वायु प्रदूषण का खराब असर पिछले कई सालों से झेल रहे हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस इलाके को 10 साल पहले गंभीर प्रदूषित क्षेत्र चिन्हित किया था, तब यहां का एनवायरनमेंट पॉल्यूशन इंडेक्स 81.73 आंका गया था। 

राष्ट्रीय हरिय न्यायालय ने पिछले वर्ष पावर प्लांट की वजह से हो रहे वायु प्रदूषण को देखते हुए सिंगरौली में स्थापित पावर प्लांट से पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति वसूलने के लिए एक कमेटी का गठन किया था। 

सिंगरौली और सोनभद्र में जिले में 9 प्रमुख पावर प्लांट हैं जिसकी लगभग 21,270 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता है। आधे से अधिक क्षमता (11,180 मेगावाट) की क्षमता अपेक्षाकृत नई है और पिछले 10 वर्षों में जोड़ी गई है। क्षमता को बढ़ाने की वजह से कोयले की खपत में भी इजाफा हुआ और कोयला जलने से फ्लाई ऐश बनने की रफ्तार बढ़ी।  

 

सिंगरौली-सोनभद्र में चलने वाले पावर प्लांट

प्लांट का नाम

स्वामित्व

क्षमता बढ़ाने का वर्ष

क्षमता

यूनिट की संख्या

मोहन पावर प्लांट

एस्सार

2018

1,200

2

सासन पावर प्लांट

रिलायंस पावर

2015

3,960

6

निगरी थर्मल पावर प्लांट

जेपी

2015

1,320

2

विन्ध्यांचल सुपर थर्मल पावर स्टेशन

एनटीपीसी

2015

4,760

13

रिहंद थर्मल पावर स्टेशन 

एनटीपीसी

2013

3,000

6

अनपरा पावर स्टेशन

यूपीआरवीयूएनएल

2012

2,630

7

अनपरा लैंको

लैंको

2011

1,200

2

सिंगरौली सुपर थर्मल पावर स्टेशन 

एनटीपीसी

1987

2,000

7

ओबरा थर्मल पावर स्टेशन

यूपीआरवीयूएनएल 

1982

1,200

7

 कुल

 

 

21,270

 

स्त्रोत- सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट 2020

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के वर्ष 2018-19 के फ्लाई ऐश के निर्माण और इस्तेमाल पर ताजा रिपोर्ट के मुताबिक उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश दोनो फ्लाई ऐश पैदा करने के मामले में देश के शीर्ष चार राज्य में शामिल हैं और इसका समुचित इस्तेमाल करने के मामले में नीचे से चार राज्यों में शामिल हैं। 

दोनों राज्य 51 गिगावाट ऊर्जा उत्पादन की क्षमता रखते हैं जिसमें आधा उत्पादन सोनभद्र और सिंगरौली क्षेत्र में होता है। अधिक फ्लाई ऐश के निर्माण और खराब इस्तेमाल के आंकड़ों से यह संकेत मिलता है कि बिना इस्तेमाल वाले फ्लाई ऐश को गीले या सूखी अवस्था में जमा कर रखा जाता है। 

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने पाया है कि सासन पावर प्लांट का पिछले दो वर्षों में फ्लाई ऐश के इस्तेमाल की दर बेहद कम रही है। राष्ट्रीय स्तर पर सालाना फ्लाई ऐश के इस्तेमाल की दर 77.59 और 67.13 क्रमशः 2018-19 और 2017-18 के लिए है, सासन पावर प्लांट के लिए यह दर इन वर्षों में मात्र 37 प्रतिशत और 29 प्रतिशत ही है। 

सीएसई के विश्लेषण से पता चला कि प्लांट अपनी क्षमता के 95 प्रतिशत लोड से पिछले तीन वर्ष से चल रहा था, जिसके फलस्वरूप अधिक कोयला खपत और ऐश का निर्माण हुआ। 

 

सासन पावर प्लांट – ऐश के इस्तेमाल का प्रतिशत 2018-19 और 2017-18 के लिए

पावर प्लांट

वर्ष

फ्लाई ऐश का उत्पादन (मिलियन टन)

फ्लाई ऐश का इस्तेमाल (मिलियन टन)

इस्तेमाल (प्रतिशत में)

सासन पावर प्लांट (रिलायंस पावर)

2018-19

4.0222

1.4916

37.08

2017-18

              4.1204            

1.2213

29.64

स्त्रोत- सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड की वार्षिक ऐश का निर्माण और इस्तेमाल की रिपोर्ट 2018-19 और 2017-18

सीएसई के विश्लेषण ने राष्ट्रीय स्तर पर आंकड़ों को देखकर पाया कि थर्मल पावर प्लांट में पिछले दस वर्षों में बिना इस्तेमाल किया फ्लाई ऐश 627 मिलियन टन तक पहुंच गया है, जो कि इस वक्त बन रहे फ्लाई ऐश की मात्रा का तीन गुना है। 

हर साल बिना इस्तेमाल की गई फ्लाई ऐश का भंडार बढ़ता जाता है और इस तरह से ऐश के बने बांधों पर अधिक भार डाल रहा है। इन आंकड़ों को देखकर पता चलता है कि काफी मात्रा में फ्लाई ऐश गीली अवस्था में बांध में और सूखे अवस्था में पावर प्लांट पर भंडारित किया गया है। 

इसकी वजह से मौजूदा भंडारण क्षमता पर काफी दबाव पड़ रहा है। परिणामस्वरूप ऐश के बांध के टूटने या खराब होने की घटनाएं सामने आती है और आसपास निवास करने वाले लोगों पर संकट आता है। 

इसकी वजह से भूमीगत जल और सतही जल भी प्रदूषित हो रहा है। कई शोध दिखाते हैं कि इन इलाकों में रहने वाले लोग कोविड-19 से अधिक प्रभावित हो सकते हैं। 

पिछले 10 साल में भारत में 627 मिलियन टन फ्लाई ऐश का इस्तेमाल नहीं हो सका 

वर्ष

फ्लाई ऐश का उत्पादन (मिलियन टन)

फ्लाई ऐश का इस्तेमाल (मिलियन टन)

ऐश का इस्तेमाल (प्रतिशत में)

बिना इस्तेमाल की ऐश (मिलियन टन)

2018-19

217.04

168.40

77.59

48.64

2017-18

196.44

131.87

67.13

64.57

2016-17

169.25

107.10

63.28

62.15

2015-16

176.74

107.77

60.97

68.97

2014-15

184.14

102.54

55.69

81.6

2013-14

172.87

99.62

57.63

73.25

2012-13

163.56

100.37

61.37

63.19

2011-12

145.42

85.05

58.48

60.37

2010-11

131.09

73.13

55.79

57.96

2009-10

123.54

77.33

62.60

46.21

कुल बिना इस्तेमाल की ऐश (2009-18)

627

स्त्रोत- सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड और सीएसई का विश्लेषण 2020 

 

बेहतर तरीके से इस्तेमाल के लिए केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग ने फ्लाई ऐश को लेकर पहला नोटिफिकेशन 14 सितंबर, 1999 को जारी किया, जिसमें फ्लाई ऐश के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2003, 2009 और 2016 में बदलाव भी किया गया।  

वर्ष 2 सितंबर, 2009 को जारी नोटिफिकेशन में कहा गया था कि वर्ष 2014 तक सभी पावर प्लांट को 100 फीसदी फ्लाई ऐश के इस्तेमाल हो जो कि नहीं हो पाया। पर्यावरण मंत्रालय ने फ्लाई ऐश के इस्तेमाल को लेकर 31 दिसंबर, 2017 तक एक लक्ष्य निर्धारित करते हुए 25 जनवरी, 2017 को एक एक नोटिफिकेशन जारी किया। इस लक्ष्य को पूरा करने में भी कामयाबी हासिल नहीं हुई। कई पावर प्लांट अभी भी उस लक्ष्य को पूरा करने में जूझ रहे हैं। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के मुताबिक साल 2018-19 तक तकरीबन 43 प्रतिशत प्लांट ने लक्ष्य हासिल नहीं किया।

हालांकि, ऐश के इस्तेमाल का प्रतिशत धीमे-धीमे बढ़ रहा है, इसे 100 फीसदी तक लाने के लिए और अधिक प्रयासों की जरूरत होती। अगर ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले समय में फ्लाई ऐश से होने वाली दुर्घटनाओं में और बढ़ोतरी होने की आशंका है। 

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