विशाखापट्टनम गैस लीक: विशेषज्ञों ने माना एनजीटी कमिटी रिपोर्ट में हैं कई खामियां

हाल ही में वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने इस रिपोर्ट पर सवाल उठाए हैं। एक्सपर्ट की राय है कि इस रिपोर्ट में कई खामियां हैं, जिन पर फिर से जांच करने की जरुरत है

By Lalit Maurya

On: Friday 05 June 2020
 
Women outside a mortuary to receive the body of a relative who died after the gas leak at the LG Polymers plant in Visakhapatnam on May 8; Photo: Reuters

7 मई 2020 की सुबह एलजी पोलिमर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के विशाखापट्टनम प्लांट से स्टाइरीन गैस का रिसाव हुआ था जिसके चलते 12 लोगों कि दुखद मौत हो गई थी, जबकि इससे हजारों लोग प्रभावित हुए थे।

इस हादसे की जांच के लिए एनजीटी द्वारा एक संयुक्त जांच कमिटी गठित की गई थी जिसने 17 मई को अंतरिम और 28 मई को अपनी विस्तृत रिपोर्ट एनजीटी को सौंप दी थी। इस रिपोर्ट में एलजी पोलिमर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के विशाखापट्टनम प्लांट में हुए हादसे के लिए कंपनी को जिम्मेवार माना है। रिपोर्ट में एलजी पॉलिमर इंडिया और उसके प्रमुख कोरियाई उद्योग एलजी केम के अनुभवहीनता को इस दुर्घटना की सबसे बड़ी वजह माना है।

पर हाल ही में वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने इस रिपोर्ट पर कई सवाल उठाए हैं। एक्सपर्ट (सागर धारा और डॉ बाबू राव) की राय है कि इस रिपोर्ट में कई खामियां हैं, जिन पर फिर से जांच करने की जरुरत है। सागर धारा के अनुसार घटनाओं का जो क्रम रिपोर्ट में बताया गया है वो अधूरा है| जिससे पूरे घटनाक्रम को ठीक से नहीं समझा जा सकता। विशेषज्ञों का मत है कि यह मामला इंसानी लापरवाही से कहीं बढ़कर है।

प्रबंधकों को बचाने के लिए रिपोर्ट में अपनाया गया नरम रुख

स्वतंत्र वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के एक ग्रुप ने आरोप लगाया है कि इस रिपोर्ट में एलजी पॉलिमर संयंत्र के प्रबंधन पर बहुत नरम रुख अपनाया गया है| उनके अनुसार जिस फैक्ट्री से स्टाइरीन वाष्प का रिसाव हुआ था उस फर्म के खिलाफ और अधिक कठोर कार्रवाई करने की जरुरत थी|

समिति ने जो 155 पेजों की रिपोर्ट एनजीटी को सौंपी है उसमें हादसे के लिए तकनीकी और सुरक्षा खामियों को कारण बताया है|  जबकि उद्योगों की सुरक्षा से जुड़े विषेशज्ञों और वैज्ञानिकों ने इस जांच रिपोर्ट की प्रमाणिकता और वैज्ञानिक आधार पर ही सवाल उठाया है| डॉ के बाबू राव के अनुसार यह रिपोर्ट कंपनी द्वारा दी गई जानकारी का संकलन मात्र है| गौरतलब है कि डॉ के बाबू राव  भारतीय रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक और ‘साइंटिस्ट फॉर प्यूपल’ नामक एनजीओ के सदस्य हैं| 

एनजीटी रिपोर्ट में एलजी पॉलिमर इंडिया और उसके प्रमुख कोरियाई उद्योग एलजी केम के अनुभवहीनता को इस दुर्घटना की सबसे बड़ी वजह माना था| यह कंपनी काम के बंद होने के बावजूद, कई हफ्तों तक स्टाइरीन से भरे टैंक की निगरानी और रखरखाव कर रही थी| जिसे उसने ठीक से नहीं किया| साथ ही जिस टैंक में यह गैस भरी थी वो भी काफी पुराने डिज़ाइन का टैंक था| जिसके कारण दुर्घटना ने इतना गंभीर रूप ले लिया था| 

वर्षों पुराने टैंक और संयंत्रों के बावजूद, प्लांट को कैसे दे दिया गया सुरक्षा प्रमाण पत्र

सागर धारा के अनुसार इस रिपोर्ट में कितने समय तक टैंक से वाष्प के रूप में गैस निकलती रही और वो कितना फैली थी इस बारे में ठीक से नहीं बताया गया है| जबकि यह जानकारी रिसाव की मॉडलिंग करने के लिए बहुत जरुरी है| इसकी मदद से यह जाना जा सकता है कि कितने लोग इससे प्रभावित हुए होंगे साथ ही वनस्पतियों और जीवों पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन किया जा सकता है| रिपोर्ट में जो दुर्घटना का तत्काल और मूल कारण बताया गया है, वो भ्रम पैदा करता है| रिपोर्ट के अनुसार दुर्घटना का मूल कारण खुद पोलीमराइजेशन को माना है| जबकि वो तात्कालिक कारण है| जबकि मूल कारण लॉकडाउन अवधि के दौरान कंपनी द्वारा अवरोधक की व्यवस्था नहीं करना था| साथ ही रात में प्रशीतन प्रणाली को बंद करना, टैंक पर पर्याप्त तापमान को मापने के लिए  सेंसर का नहीं होना जैसे कारण मुख्य थे जोकि कंपनी की विफलता को दिखाते हैं|

जिन जगहों से स्टाइरीन का रिसाव हुआ उनकी संख्या में मतभेद हैं| वहीं रिपोर्ट में उद्योग विभाग को नियमों की अनदेखी और खामियों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है| जबकि यह उनकी जिम्मेदारी थी कि उन्होंने इतने पुराने टैंक को कंपनी में चलते रहने के बावजूद कंपनी को सुरक्षा सम्बन्धी प्रमाणपत्र कैसे दे दिया था| सागर के अनुसार इस पूरी रिपोर्ट में कहीं भी एलजी केम को जिम्मेदार नहीं माना गया है| गौरतलब है कि एलजी पॉलिमर इंडिया प्रा लिमिटेड, दक्षिण कोरिया की एलजी केम की ही सहायक कंपनी है| ऐसे में रिपोर्ट द्वारा एलजी केम की जिम्मेवारी का उल्लेख नहीं करना एक भारी गलती है|

इंसानी स्वास्थ्य, वनस्पति और जीव जंतुओं पर पड़ने वाले असर का नहीं है पूरा विवरण

एक्सपर्ट के अनुसार इस रिपोर्ट में इंसानी स्वास्थ्य, वनस्पति और जीव जंतुओं पर पड़ने वाले असर का पूरा विवरण नहीं दिया गया है| रिपोर्ट में सिर्फ 12 इंसानों और 17 जानवरों के मरने के बारे में लिखा है जबकि इंसानी स्वास्थ्य, पेड़ पौधों, जानवरों पर इसका क्या असर पड़ा है उसके बारे में नहीं स्पष्ट किया गया है| हालांकि रिपोर्ट में अगले 5 सालों तक इंसान के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर की निगरानी करने को कहा है| पर बड़ा सवाल यह है कि अब तक जो लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ा है उसके बारे में इस रिपोर्ट में क्यों नहीं लिखा गया है| इसके साथ ही रिपोर्ट में गैस के रिसाव के बारे में जो डाटा दिया है वो अधूरा है| रिपोर्ट में कंपनी का दायित्व ठीक से निर्धारित नहीं किया गया है यह नहीं बताया है कि उसका हादसे में पूर्ण दायित्व है या नहीं| क्योंकि मुआवजे के निर्धारण के लिए कंपनी का दायित्व जानना जरुरी होता है| डॉ के बाबू राव ने इस रिपोर्ट के बारे में टिपण्णी की है कि यह रिपोर्ट संयंत्र प्रबंधन द्वारा दी गई जानकारी का संकलन मात्रा है| जिसमें वास्तविक जांच की कमी है| बड़े दुःख की बात है कि एनजीटी ने एक ऐसी समिति गठित की जिसमे सिर्फ शिक्षाविद ही थे, जबकि इस जांच के लिए औद्योगिक सुरक्षा से जुड़े एक्सपर्ट्स की जरुरत थी| इस पूरी रिपोर्ट में फील्ड में जाकर स्टाइरीन स्टोरेज सिस्टम का डाटा एकत्र नहीं किया गया| 

सागर के अनुसार इस जांच में एलजी पॉलिमर और संयंत्र के श्रमिकों के साथ-साथ आसपास रहने वाले लोगों को भी जांच में शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि उनके जीवन भी इस हादसे के कारण जोखिम में थे। ऐसे में यह अन्यायपूर्ण है कि दुर्घटना की जांच में उनकी भूमिका को नजरअंदाज कर दिया गया।

प्लांट के चारों और किसकी इजाजत से बन गए घर

उनके अनुसार नीरी ने इस विषय में आगे भी अध्ययन करने की बात कही है जो सीधे तौर पर नीरी और रिपोर्ट के विचारों में मतभेद को दिखाता है| रिपोर्ट के अनुसार प्लांट के आसपास 200  मीटर के दायरे में घर कैसे बन गए, और उन इमारतों के नक्शे कैसे पास हो गए, इस पर तो सवाल उठाया गया है पर उसके लिए कौन जिम्मेदार है उसका उल्लेख नहीं किया गया है| यह एक सोचने का विषय है और इसमें जिम्मेवारी तय करनी जरुरी है कि कैसे एक प्लांट के चारों और घरों के निर्माण की इजाजत मिल गयी जिससे हजारों लोगों का जीवन खतरे में पड़ गया| ऐसे में न जाने कितने ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब ढूंढ़ने अभी बाकी है| इस हादसे ने कई ऐसे सवाल खड़े कर दिए हैं जिनके लिए कई और विभाग/अधिकारी जिम्मेवार है और उनकी जिम्मेवारी अभी तय करना बाकी है|

औद्योगिक सुरक्षा सिर्फ एक प्लांट से जुड़ा मुद्दा नहीं है यह सारे देश में चल रहे अनगिनत उद्योगों से जुड़ा मामला है| ऐसे में आज जरुरी है कि पूरे इंडस्ट्रियल सिस्टम को अधिक पारदर्शी बनाया जाए| यह हादसा दिखाता है कि चूक सिर्फ एक प्लांट से नहीं हुई बल्कि इसके लिए कई विभागों द्वारा की गई चूक भी जिम्मेवार है| कैसे एक प्लांट में बिना सुरक्षा से जुड़े उपायों और पुराने संयंत्रों से साथ काम करने की इजाजत दे दी जाती है कैसे प्लांट के चारों और घरों को बनाने की इजाजत मिल जाती है, यह भी जांच का विषय है| जरुरत है कि सरकारी विभागों और उद्योगों की जवाबदेही तय की जाए| यह हादसा उन भारी खामियों को उजागर करता है, कि देश में किस तरह से न जाने कितने ऐसे संयंत्र उद्योगों और अधिकारियों की सांठ-गांठ से चल रहे हैं| जिनमें इस तरह के हादसे हो सकते हैं|

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