ट्रैफिक के शोर से पक्षी छोड़ रहे हैं गाना-चहचहाना, प्रजनन पर भी पड़ा असर: अध्ययन

जर्मनी के शोधार्थियों ने म्युनिख शहर के शोर भरे इलाके और शांत इलाके में अलग-अलग रह रहे जेबरा फिंच पक्षी पर शोध किया और कई चौंकाने वाले तथ्य प्रस्तुत किए

By Dayanidhi

On: Thursday 17 October 2019
 
जेबरा फिंच। Photo: Pixabay

बढ़ते ध्वनि प्रदूषण से पक्षियों का जीवन बेहद प्रभावित हो रहा है। उनमें प्रजनन की शक्ति घट रही है और साथ ही उनके व्यवहार में भी परिवर्तन आ रहा है। हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। यह अध्ययन जर्मनी के मैक्स प्लैँक इंस्टीट्यूट फॉर ऑर्निथोलॉजी के शोधार्थियों ने किया है। उन्होंने जेबरा फिंच नाम के पक्षी पर अध्ययन किया और पाया कि ट्रैफिक के शोर से उनके रक्त में सामान्य ग्लकोकार्टिकोइड प्रोफाइल में कमी हुई और पक्षियों के बच्चों का आकार भी सामान्य चूजों से छोटा था। अध्ययन में दावा किया गया है कि ट्रैफिक के शोर की वजह से पक्षियों के गाने-चहचहाने पर भी फर्क पड़ता है।

यह अध्ययन कंजर्वेशन फिजियोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। अध्ययन में पक्षियों के दो समूह को शामिल किया गया। इनमें एक समूह वह था, जो जर्मनी के राज्य बावरिया की राजधानी म्युनिख के एक शोर भरे इलाके में रहता है, जबकि दूसरा समूह शांत इलाके में रहता है। यह अध्ययन पक्षियों के प्रजनन काल के दौरान किया गया। 

जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि पहली प्रजनन अवधि के अंत के कुछ समय बाद दोनों समूहों के समान जोड़ो के लिए शोर की स्थिति बदल दी गई। शोधकर्ताओं ने दोनों परिस्थितियों में प्रजनन अवधि के दौरान, पहले और बाद में हार्मोन में तनाव के स्तर को दर्ज किया। इसके अलावा, उन्होंने (इम्यून फंक्शन) प्रतिरक्षा कार्य और प्रजनन की सफलता के साथ-साथ चूजों की वृद्धि दर को भी देखा।

उन्होंने पाया कि जब वे शांत वातावरण में प्रजनन कर रहे थे, तब पक्षियों के खून में कॉर्टिकोस्टेरॉन का स्तर ट्रैफिक के शोर में प्रजनन कर रहे पक्षियों की तुलना में कम था। यह आश्चर्यजनक था क्योंकि तनाव अक्सर कॉर्टिकोस्टेरॉन के उच्च स्तर का परिणाम होता है, एक हार्मोन जो तनावपूर्ण अनुभवों के दौरान चयापचय क्रिया में शामिल होता है।

प्रमुख अध्ययनकर्ता सू एनी ज़ोलिंगर कहते हैं, शांत वातावरण में प्रजनन करने वाले पक्षियों में, प्रजनन के पूरे मौसम में उनका आधारभूत कॉर्टिकोस्टेरॉन कम रहता है। इससे पता चलता है कि जिन पक्षियों को शोर में रहने की आदत नहीं थी उनके प्रजनन चक्र के दौरान उनके हार्मोन का स्तर उपर-नीचे होता है अर्थात असामान्य पाया गया था। वहीं इसके विपरीत जो शांत वातावरण में इस प्रक्रिया से गुजरते हैं उनके हार्मोन का स्तर सामान्य पाया गया था।

जिन चूजों के माता-पिता ट्रैफिक के शोर के संपर्क में थे, उनके चूजे शांत वातावरण में रहने वाले माता-पिता की तुलना में छोटे थे।  हालांकि, एक बार शोरगुल की स्थिति में रह रहे चूजों के बड़े होकर घोंसला छोड़ देने के पशचात, वे फिर शांत जगहों पर घोंसले बनाने में कामयाब रहते हैं। हालांकि, शोधकर्ता ने संतानों पर पड़ने वाले दीर्घकालिक प्रभावों को नहीं लिया है।

ऐसा इसलिए है क्योंकि पिछले एक अध्ययन से पता चला है कि ट्रैफ़िक के शोर के संपर्क से युवा ज़ेबरा फ़िंच पक्षी में टेलोमेयर क्षति में तेजी आई है, जिसका अर्थ है कि इन पक्षियों का जीवनकाल छोटा होने की आशंका है। हालांकि घोंसले में चूजों की संख्या पर यातायात के शोर का कोई प्रभाव नहीं था।

पक्षियों के साथ अध्ययन आम तौर पर यातायात से जुड़े अन्य कारकों, जैसे कि रासायनिक प्रदूषण, प्रकाश प्रदूषण और शहरी क्षेत्रों में पाए जाने वाले अन्य भिन्नताओं को शामिल करने के लिए किया गया था, उदाहरण के लिए पक्षी समुदायों की संख्या और संरचना, निवास स्थान की संरचना, खाद्य प्रकार और उसकी उपलब्धता आदि थे।

शोध समूह के मुख्य अध्ययनकर्ता हेनरिक ब्रम कहते हैं, हमारे आंकड़े बताते है कि शहरी परिवेश की अन्य सभी गड़बड़ियों के बिना यातायात (ट्रैफिक) का शोर, पक्षियों के शरीर क्रिया विज्ञान को बदल देता है और उनके विकास पर प्रभाव डालता है। इसका मतलब यह है कि पक्षियों की प्रजातियां जो पहली नज़र में शहरों में अच्छी तरह से मुकाबला करती दिखती हैं, ट्रैफ़िक के शोर से प्रभावित हो सकती हैं।

क्या है ग्लूकोकार्टिकोइड

ग्लूकोकार्टिकोइड् स्टेरॉयड हार्मोन का एक वर्ग है, जो लगभग हर कशेरुक (हड्डीवाले) पशु कोशिका में मौजूद होता है।

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