उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में मानक से दोगुना ज्यादा है ध्वनि प्रदूषण

ध्वनि प्रदूषण से प्रदूषित शहरों में दक्षिण एशिया के 13 शहर शामिल हैं, जिनमें 5 अकेले भारत के हैं

By Bhagirath Srivas

On: Friday 25 March 2022
 

देश की राजधानी सबसे अधिक ध्वनि प्रदूषण वाले शहरों की सूची में शामिल है। फोटो : विकीमीडिया कॉमन्स

यूनाइटेड नेशंस एनवायरमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) की एक हालिया रिपोर्ट में पीतलनगरी के रूप में मशहूर उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद शहर में ध्वनि प्रदूषण की मात्रा मानक से दोगुना अधिक पाई गई है। 

मुरादाबाद में अधिकतम 114 डेसिबल (डीबी) ध्वनि प्रदूषण दर्ज किया है। रिपोर्ट में कुल 61 शहरों का उल्लेख है। सबसे अधिक 119 डीबी ध्वनि प्रदूषण बांग्लादेश की राजधानी ढाका में दर्ज किया है। रिपोर्ट में तीसरे स्थान पर पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद है जहां ध्वनि प्रदूषण का स्तर 105 डीबी दर्ज किया गया है।

यूएनईपी की “फ्रंटियर 2022 “रिपोर्ट में ध्वनि प्रदूषण को पर्यावरण के लिए उभरता खतरा माना गया है। रिपोर्ट में मुरादाबाद के अलावा भारत के सबसे अधिक ध्वनि प्रदूषण वाले शहरों में जयपुर, कोलकाता, आसनसोल और दिल्ली को भी शामिल किया गया है। दिल्ली में 83, जयपुर में 84, कोलकाता और आसनसोल में 89-89 डेबिसल ध्वनि प्रदूषण दर्ज किया गया है। उल्लेखनीय है कि 70 डीबी से अधिक ध्वनि प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना गया है।  

रिपोर्ट में ध्वनि प्रदूषण से प्रदूषित शहरों में दक्षिण एशिया के 13 शहर शामिल हैं, जिनमें 5 शहर अकेले भारत के हैं। रिपोर्ट में दिए गए ध्वनि प्रदूषण के आंकड़े दिन के समय के यातायात अथवा वाहनों से संबंधित हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 1999 के दिशानिर्देशों में रिहाइशी क्षेत्रों के लिए 55 डीबी मानक की सिफारिश की थी, जबकि यातायात व व्यवसायिक क्षेत्रों के लिए यह सीमा 70 डीबी थी।

डब्ल्यूएचओ ने 2018 में स्वास्थ्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सड़क पर ध्वनि प्रदूषण की सीमा 53 डीबी निर्धारित की। भारत में रिहाइशी इलाकों में दिन के समय 55 डीबी का मानक है। यानी इससे अधिक शोर ध्वनि प्रदूषण की श्रेणी में आएगा।  

रिपोर्ट में यूएनईपी की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन ने कहा, जैसे-जैसे शहर बढ़ते हैं, ध्वनि प्रदूषण पर्यावरण का प्रमुख खतरा बन जाता है। ध्वनि प्रदूषण का उच्च स्तर नींद पर असर डालकर मानव स्वास्थ्य और खुशहाली को प्रभावित करता है। यह क्षेत्र में रहने वाली कई जानवरों की प्रजातियों के संचार और उनके सुनने की क्षमता पर बुरा असर डालता है।”

रिपोर्ट के अनुसार, उच्च ध्वनि प्रदूषण की लंबी अवधि लोगों और नीति निर्माताओं के  लिए चिंता का विषय है। यूरोपियन यूनियन के कम से कम 20 प्रतिशत नागरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक शोर की जद में हैं।

रिपोर्ट बताती है, “नियमित रूप से दिन में 8 घंटे  85 डेसिबल ध्वनि के संपर्क में रहने से सुनने की क्षमता स्थायी रूप से खत्म हो सकती है।” इतना ही नहीं, शहरों में लंबी अवधि तक अपेक्षाकृत कम ध्वनि प्रदूषण के संपर्क में रहने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार, यूरोप में लंबे वक्त तक ध्वनि प्रदूषण में रहने से सालाना 12,000 अकाल मृत्यु होती हैं, 48,000 हृदय रोग के नए मामले आते हैं और 2.2 करोड़ लोग चिड़चिड़ेपन से पीड़ित होते हैं।

कनाडा के टोरंटो में 15 वर्ष लंबे अध्ययन में पाया गया है कि यातायात के शोर ने 8 प्रतिशत लोगों में हृदयघात, हार्ट फेलियर, मधुमेह का खतरा बढ़ा दिया जबकि 2 प्रतिशत लोगों में हाइपरटेंशन यानी उच्च रक्तचाप बढ़ा दिया।

रिपोर्ट के मुताबिक, कोरिया में हुआ अध्ययन बताता है कि दिन के समय ध्वनि में 1 डेसिबल की वृद्धि से कार्डियो (हृदय) और सेरेब्रोवास्कुलर (मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह से संबंधित) बीमारियों का खतरा 0.17 से 0.66 प्रतिशत बढ़ जाता है।

रिपोर्ट के अनुसार, अन्य प्रदूषणों की तरह ध्वनि प्रदूषण की भी रोकथाम हो सकती है। कई देशों में इस दिशा में कानून बनाने की पहल जरूर हुई, लेकिन ये कानून समस्या दूर करने में बहुत कारगर साबित नहीं हुए हैं।

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