इंसानी शोर से खतरे में है जीव-जंतुओं का अस्तित्व: स्टडी

क्वीन्स यूनिवर्सिटी, बेलफास्ट के शोधकर्ताओं के अनुसार मानव द्वारा किया जा रहा ध्वनि प्रदूषण जीवों की 100 से भी अधिक प्रजातियों के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा है

By Lalit Maurya

On: Friday 22 November 2019
 
Photo: Vikas Choudhary

यह तो सभी जानते हैं कि हमारे द्वारा किया जा रहा शोर हमारे लिए एक बड़ी आफत का सबब बनता जा रहा है। पर क्वीन्स यूनिवर्सिटी, बेलफास्ट के शोधकर्ताओं द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार इसके चलते अनेकों जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। शोधकर्ताओं के अनुसार ध्वनि प्रदूषण सभी तरह के जीवों जैसे पक्षियों, मछलियों, उभयचरों, स्तनधारियों और सरीसृपों सहित सभी प्रजातियों के व्यवहार को बदल रहा है।

यह शोध रॉयल सोसाइटी के जर्नल बायोलॉजी लेटर्स में प्रकाशित हुआ है। क्वींस यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज से जुड़े और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ हंसजोर्ग कुन्क के अनुसार यह अध्ययन स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि ध्वनि प्रदूषण प्रजातियों के सभी सातों समूहों को प्रभावित करता है। प्रजातियों में भिन्नता होने के बावजूद शोर के प्रति उनकी प्रतिक्रिया में अंतर नहीं था।

कीटों से लेकर विशाल व्हेल्स तक कोई भी नहीं है सुरक्षित

आज मानव जल, थल और नभ हर जगह को अपने शोर से प्रदूषित कर रहा है। चाहे जमीन पर वाहनों से होने वाले शोर को देख लीजिये या उद्योगों की कर्कश ध्वनि को या फिर आसमान में उड़ने वाले जहाज को या फिर पाने में चलने वाले जहाजों को जिसके प्रोपेलर से होने वाले शोर से व्हेल्स पर पड़ने वाले असर को ही देख लीजिये। जिससे उनके सोनार पर असर पड़ रहा है और वे बड़े पैमाने पर अपने पथ से भटक रही है। और मौत के मुंह में जा रही हैं।

शोधकर्ताओं के अनुसार शोर का असर केवल उन प्रजातियों पर ही नहीं पड़ रहा जो धवनि के प्रति संवेदी हैं, बल्कि इसका असर ज्यादातर प्रजातियों पर देखा गया है। डॉ कुन्क ने बताया कि इन सब में दिलचस्प बात यह रही की शोर का असर छोटे कीटों से लेकर व्हेल्स जैसे विशाल जीवों पर पड़ रहा है। शोध के अनुसार यह जरुरी नहीं कि जीवों पर इसका सीधा असर हो। और यह कहना भी आसान नहीं है कि प्रभाव सकारात्मक है या नकारात्मक, पर यह स्पष्ट की उनपर प्रभाव पड़ रहा है और यह उनके अस्तित्व से लेकर आबादी तक को प्रभावित कर रहा है।

पक्षी, कीड़े और स्तनधारियों जैसी कई प्रजातियां ध्वनि संकेतों के माध्यम से बात करती हैं। ऐसा वह अपने साथी के चयन से लेकर एक दूसरे को आने वाले खतरे से अवगत कराने में करती हैं। पर यदि ध्वनि प्रदूषण से वह इस महत्वपूर्ण जानकारी को साझा नहीं कर पाएंगी तो यह उनके अस्तित्व को खतरे में डाल देगा । जहां ध्वनि प्रदूषण के चलते कुछ जीव अपने शिकारियों से नहीं बच पर रहे । वहीं इसके विपरीत यह कुछ जीवों के लिए अपना शिकार खोजना मुश्किल कर रहा है।

उदाहरण के लिए चमगादड़ और उल्लू को ही ले लीजिये, उनके जैसे जीव संभावित शिकार को उनकी आवाज से पहचानते हैं। पर ध्वनि प्रदूषण उस आवाज को सुनने में दिक्कत पैदा कर रहा है और इसलिए उन्हें अपना शिकार खोजने और भोजन जुटाने में अधिक समय लग रहा है, जिससे इन प्रजातियों में गिरावट आ सकती है।

जलीय दुनिया में मछली के लार्वा अपना घर रीफ्स द्वारा उत्सर्जित होने वाली ध्वनि की मदद से ढूंढ़ते हैं। समुद्र में जहाजों के कारण होने वाला  ध्वनि प्रदूषण, लार्वा के लिए उपयुक्त घर ढूंढ़ने में कठिनाई पैदा कर रहा है, जिससे अनुपयुक्त रीफ्स के चुनाव के कारण उनका जीवनकाल घट सकता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि ध्वनि प्रदूषण के कारण जानवरों के प्रवास पर भी व्यापक असर पड़ रहा है। कई पक्षी प्रवास के दौरान ध्वनि प्रदूषित क्षेत्रों में जाने से बचते हैं। इसके कारण अपने बच्चों को पालने के लिए यह पक्षी कम प्रदूषित क्षेत्रों की ओर प्रवास कर रहे हैं और वहां अपने बसेरे का निर्माण कर रहे हैं । इस तरह के प्रवास के कारण प्रजातियों के वितरण में असमानता आ रही है।

यह परिवर्तन पारिस्थितिकी तंत्र के लिए हानिकारक हो सकता है क्योंकि प्रत्येक प्रजाति एक विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। निष्कर्ष के रूप में डॉ कुन्क ने बताया कि "यह अध्ययन इस बात के पक्के सबूत देता है कि मानव द्वारा किये जा रहे ध्वनि प्रदूषण से पर्यावरण में व्यापक परिवर्तन आ रहा है| यह प्रदूषण का एक गंभीर रूप है, जिसे वैश्विक स्तर पर देखा जाना चाहिए । अध्ययन से यह भी पता चलता है कि ध्वनि प्रदूषण किस तरह जलीय और स्थलीय प्रजातियों को प्रभावित कर रहा है। आज वैश्विक स्तर पर इसपर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है, साथ ही जीवों को इससे बचाने के लिए एक व्यापक रणनीति बनाने की भी आवश्यकता है।”

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