ग्रामीण इलाकों में रह रहे पक्षियों को आक्रामक बना रहा है ट्रैफिक का शोर: अध्ययन

यह अध्ययन रोबिन नाम के पक्षी पर किया गया, जो शहरी व ग्रामीण क्षेत्र दोनों में रहते हैं, लेकिन शहरी क्षेत्र में रहने वाले पक्षी के व्यवहार में खास परिवर्तन नहीं देखा गया

By Dayanidhi

On: Monday 12 December 2022
 
विकिमीडिया कॉमन्स, लुइसविले केंटकी

एक नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया है कि लोगों द्वारा किए जा रहे ध्वनि प्रदूषण के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले रॉबिन पक्षी आक्रामक होते जा रहे हैं। अध्ययन में शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में रहने वाले नर यूरोपीय रॉबिन (एरिथाकस रूबेकुला) के व्यवहार का पता लगाया गया।

रॉबिन एक उग्र पक्षी है, यूके में एंग्लिया रस्किन विश्वविद्यालय (एआरयू) और तुर्की में कोक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक रॉबिन के थ्री डी मॉडल का उपयोग करके एक घुसपैठिए के प्रति उनकी आक्रामकता को मापा। मॉडल में रॉबिन के आवाज की रिकॉर्डिंग की गई थी, जबकि पास में एक अलग स्पीकर के माध्यम से ट्रैफिक का अतिरिक्त शोर जोड़ा गया था।

रॉबिन अपने इलाके को बचाने तथा घुसपैठियों को बाहर रखने के लिए घूरने और आवाज निकालने दोनों संकेतों पर भरोसा करते हैं। खतरा महसूस होने पर वे अपना व्यवहार बदलते हैं।

घुसपैठियों को दूर भगाने के लिए अपनी आवाज के साथ-साथ, क्षेत्रीय बातचीत के दौरान रॉबिन अपने शरीर को डरावना बनाकर प्रदर्शित करते हैं। इनमें लहराना और अपनी गर्दन पर लाल पंखों को प्रदर्शित करना, साथ ही साथ अपने प्रतिद्वंद्वी के करीब जाना और उसका पीछा करने का प्रयास करना शामिल है।

सिम्युलेटेड घुसपैठिए के साथ बातचीत के दौरान पक्षियों के व्यवहार को रिकॉर्ड करके, शोधकर्ताओं ने पाया कि शहरी रॉबिन्स ने आमतौर पर ग्रामीण रॉबिन्स की तुलना में अधिक शारीरिक आक्रामकता प्रदर्शित की। हालांकि, यातायात के शोर के साथ ग्रामीण रॉबिन्स अधिक आक्रामक हो गए। वैज्ञानिकों का मानना है कि प्रादेशिकता के भौतिक प्रदर्शन में वृद्धि होती है क्योंकि यातायात का शोर, आवाज का उपयोग करके रॉबिन्स के इशारे करने संबंधी व्यवहार में बाधा डालता है।

शहरी रॉबिन पर परीक्षण के दौरान, जो पहले से ही शोर वाले आवासों में रह रहे हैं, सिम्युलेटेड यातायात के शोर ने शारीरिक आक्रामकता के स्तर को प्रभावित नहीं किया, लेकिन उन्होंने अपनी बोलने की दर को कम करके अतिरिक्त शोर के लिए अनुकूलित किया।

शोधकर्ताओं को संदेह है कि शहरी रॉबिन ने शोर में अस्थायी वृद्धि को अपनाना सीख लिया है जबकि ग्रामीण रॉबिन्स ने ऐसा नहीं किया है और ग्रामीण रॉबिन्स इसके बजाय शारीरिक आक्रामकता को बढ़ा कर इसकी भरपाई करते हैं।

एंग्लिया रस्किन यूनिवर्सिटी (एआरयू) में व्यावहारिक पारिस्थितिकी के लेक्चर और अध्ययनकर्ता डॉ. कैगलर एक्के ने कहा, हम जानते हैं कि लोगों की गतिविधि का वन्यजीवों पर लंबे समय तक उनके सामाजिक व्यवहार पर भारी प्रभाव डाल सकता है, परिणाम बताते हैं कि मानव-निर्मित शोर का रॉबिन्स पर कई प्रकार के प्रभाव हो सकते हैं, यह उनके आवास पर निर्भर करता है जिसमें वे रहते हैं।

उन्होंने बताया कि आम तौर पर शांत परिवेश में, हमने पाया कि यातायात का अतिरिक्त शोर ग्रामीण रॉबिन्स को अधिक शारीरिक रूप से आक्रामक बनाता है, उदाहरण के लिए मॉडल पक्षी के अधिक निकट आना और हमारा मानना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि शोर उनके आपसी संचार को बाधित कर रहा है।

शहरी आवासों में शोर के पुराने उच्च स्तर, जैसे कि यातायात या निर्माण उपकरण से, स्थायी रूप से ध्वनि के संकेतों के कुशल संचार में बाधा पहुंचा सकते हैं। यह एक कारण है कि ग्रामीण पक्षियों की तुलना में शहरी रॉबिन आमतौर पर अधिक आक्रामक क्यों होते हैं। इस बात पर जोर दिया जाना चाहिए कि शारीरिक आक्रामकता रॉबिन जैसे छोटे पक्षियों के लिए एक खतरनाक व्यवहार है और इसके स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होने के आसार हैं।

प्रमुख अध्ययनकर्ता कागला ओनसल ने कहा, संचार बेहद उपयोगी होता है क्योंकि वे एक घुसपैठिए को लड़ाई के बिना रोक सकते हैं जो क्षेत्र के मालिक और घुसपैठिए दोनों के लिए महंगा पड़ सकता है, लेकिन अगर उनकी आवाज घुसपैठिए द्वारा नहीं सुनी जाए तो, रॉबिन्स को शारीरिक आक्रामकता का सहारा लेना पड़ सकता है।

हालांकि, इससे न केवल चोट लगने का खतरा होता है, बल्कि आक्रामकता का प्रदर्शन भी गौरैया का शिकार करनेवाला बाज जैसे शिकारियों का ध्यान आकर्षित कर सकता है। यह अध्ययन बिहेवियरल इकोलॉजी एंड सोशियोबायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुआ है। 

Subscribe to our daily hindi newsletter