सावधान! रक्त और फेफड़ों के बाद अब वैज्ञानिकों को इंसानी नसों में मिले माइक्रोप्लास्टिक के अंश

वैज्ञानिकों को नसों के प्रति ग्राम ऊतक में माइक्रोप्लास्टिक के 15 कण मिले हैं

By Lalit Maurya

On: Friday 03 February 2023
 
फोटो: आईस्टॉक

वैज्ञानिकों को पेंट और फूड पैकेजिंग में इस्तेमाल होने वाले माइक्रोप्लास्टिक के हिस्से इंसानी शिराओं में मिले हैं। गौरतलब है कि इससे पहले प्लास्टिक के यह महीन कण रक्त और इंसानी फेफड़ों के अंदर काफी गहराई में पाए गए थे। इंसानी शरीर में इनके मिलने के सबूत एक बात तो पूरी तरह स्पष्ट करते हैं कि वातावरण में बढ़ता प्लास्टिक का यह जहर न केवल हमारे वातावरण बल्कि हमारी नसों और शरीर के अंगों तक में घुल चुका है।

यह पहला मौका है जब वैज्ञानिकों को संवहनी ऊतकों में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी का पता चला है। जो दर्शाता है कि यह महीन कण रक्त वाहिकाओं के माध्यम से मानव ऊतक में प्रवेश कर सकते हैं। देखा जाए तो आज दुनिया में कोई भी जगह ऐसी नहीं है जो प्लास्टिक के इस बढ़ते प्रदूषण से बची है।

गौरतलब है कि इससे पहले गहरे समुद्रों से लेकर पहाड़ की ऊंचाइयों तक पर इसके होने के सबूत सामने आ चुके हैं। ऐसे में इनका नसों में पाया जाना एक बड़ी चिंता का विषय है। वहीं जर्नल एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित एक अध्ययन में अजन्मे शिशुओं के प्लेसेंटा (गर्भनाल) में माइक्रोप्लास्टिक के होने का पता चला था।  

यह अध्ययन हल विश्वविद्यालय और हल यॉर्क मेडिकल स्कूल के साथ हल यूनिवर्सिटी टीचिंग हॉस्पिटल्स एनएचएस के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे जर्नल 01 फरवरी 2023 को जर्नल प्लोस वन में प्रकाशित हुए हैं।

अपने इस पायलट अध्ययन में शोधकर्ताओं ने अधःशाखा शिरा यानी सेफीनस शिराओं के ऊतकों का विश्लेषण किया है। जिन्हें दिल की बाइपास सर्जरी के लिए भर्ती रोगियों से लिया गया था। गौरतलब है कि यह सेफीनस शिराएं, पैरों में मौजूद रक्त वाहिकाएं होती हैं, जो ह्रदय से पैरों और पैरों से रक्त को वापस हृदय तक भेजने में मदद करती हैं।

इन नसों में ऊतकों की तीन परतें होती हैं। वहीं कोरोनरी आर्टरी बाईपास ग्राफ्टिंग सर्जरी (सीएबीजी), जिसे आमतौर पर 'बाईपास सर्जरी' के नाम से भी जाना जाता है। यह सर्जरी तब की जाती है जब हृदय की मांसपेशियों को रक्त की आपूर्ति करने वाली कोरोनरी धमनियां अवरुद्ध या फिर संकुचित हो जाती हैं।

शोधकर्ताओं के मुताबिक इससे पहले अब तक किसी भी अध्ययन में इस बात की जांच नहीं की गई है कि माइक्रोप्लास्टिक रक्त वाहिकाओं सहित किसी भी अन्य जैविक बाधा में घुसपैठ कर सकता है या फिर उसे पार कर सकता है। न ही पर्यावरण में बढ़ते माइक्रोप्लास्टिक के जोखिम और सीएबीजी के परिणामों के बीच किसी संभावित लिंक की जांच की गई है। इस अध्ययन में जो नतीजे सामने आए हैं उनके अनुसार वैज्ञानिकों को नसों के प्रति ग्राम ऊतक में माइक्रोप्लास्टिक के 15 कण मिले हैं।

इस बारे में शोध का नेतृत्व करने वाली हल विश्वविद्यालय की पर्यावरण विषविज्ञानी प्रोफेसर जेनेट रोचेल ने जानकारी दी है कि, "हम निष्कर्ष को लेकर हैरान हैं। हम इस बात को पहले ही जानते हैं कि माइक्रोप्लास्टिक्स रक्त में मौजूद हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं था कि क्या वो रक्त वाहिकाओं के संवहनी ऊतक को पार कर सकते हैं।" उनके अनुसार अध्ययन से यह स्पष्ट हो गया है कि वो ऐसा कर सकते हैं।

पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी बड़ी समस्या बन चुका है माइक्रोप्लास्टिक

हालांकि प्रोफेसर जेनेट का कहना है कि मानव स्वास्थ्य पर इसके क्या प्रभाव पड़ सकते हैं इस बारे में पूरी जानकारी नहीं है। लेकिन पता चला है कि यह सूजन और तनाव-प्रतिक्रियाओं का कारण बन सकते हैं।

शोध के मुताबिक माइक्रोप्लास्टिक्स के स्तर बृहदान्त्र और फेफड़ों के ऊतकों जितने या उससे ज्यादा थे। हालांकि उनका आकार समान था। वहीं माइक्रोप्लास्टिक्स के यह कण पांच अलग-अलग तरह के प्लास्टिक पॉलीमर के थे जो पहले से अलग थे।

इनमें अल्काइड रेसिन जो सिंथेटिक पेंट, वार्निश और एनामेल्स आदि में इस्तेमाल किया जाता है वो शामिल था। साथ ही पॉलीविनाइल एसीटेट (पीवीएसी), जो खाद्य पैकेजिंग, शिपिंग बॉक्स/ बैग, कागज, प्लास्टिक और फॉयल में चिपकने के लिए उपयोग होने वाला घटक है।

यह लकड़ी के गोंद के मुख्य अवयवों में से एक है, लेकिन इसका हाल ही में बायोमेडिकल में भी उपयोग हो रहा है। इसी तरह नायलॉन और ईवीओएच-ईवीए के भी अंश मिले हैं, जो प्लास्टिक पॉलीमर को जोड़ने और लचीले पैकेजिंग उत्पाद बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। इसके अलावा इसे तार, केबल और पाइप में लेमिनेशन के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।

इनके खतरों के बारे में जानकारी देते हुए अध्ययन से जुड़े अन्य शोधकर्ता प्रोफेसर महमूद लौबानी ने जानकारी दी है कि नसों में इन माइक्रोप्लास्टिक्स की मौजूदगी शिराओं के अंदरूनी हिस्सों को नुकसान पहुंचा सकती है, जिससे यह समय बीतने के साथ अवरुद्ध हो सकती हैं।

जर्नल केमिकल रिसर्च टॉक्सिकोलॉजी में प्रकाशित एक रिसर्च से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक शरीर की कोशिकीय कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक एक बार जब प्लास्टिक के यह महीन कण सांस या किसी अन्य तरीके से शरीर में पहुंच जाते हैं तो वो कुछ दिनों में ही फेफड़ों की कोशिकाओं के मेटाबॉलिज्म और विकास को प्रभावित या फिर उसे धीमा कर सकते हैं। साथ ही उसके आकार में भी बदलाव कर सकते हैं।

इतना ही नहीं अध्ययन से पता चला है कि हमारी रोजमर्रा की चीजों जैसे टूथपेस्ट, क्रीम आदि से लेकर हमारे भोजन, हवा और पानी तक में मौजूद यह माइक्रोप्लास्टिक्स, बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स को 30 गुना तक बढ़ा सकते है। देखा जाए तो बढ़ता माइक्रोप्लास्टिक न केवल पर्यावरण बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी एक बड़ा खतरा बन चुका है। ऐसे में इससे बचने के लिए तत्काल कार्रवाई करने की जरूरत है।

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