मालदीव में हैं दुनिया का सबसे ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक का जमावड़ा

मालदीव के नाइफारू द्वीप पर प्रति किलोग्राम रेत में माइक्रोप्लास्टिक के 55 से 1,127.5 टुकड़े मिले हैं, जोकि अपने आप में एक रिकॉर्ड है

By Lalit Maurya

On: Tuesday 11 August 2020
 

मालदीव में माइक्रोप्लास्टिक का स्तर दुनिया में सबसे ज्यादा है। यह जानकारी हाल ही में ऑस्ट्रेलिया की फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी के द्वारा किए शोध में सामने आई है। शोध के अनुसार मालदीव में समुद्र और उसके किनारे बड़ी मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक का का जमावड़ा है। 

मालदीव में 1,192 कोरल द्वीप हैं, जो लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं। हिन्द महासागर में स्थित इस द्वीपीय देश को उसके सुन्दर नज़ारों और जैवविवधता से भरपूर द्वीपों के लिए जाना जाता है। यह देश एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल भी है। जहां हर साल लाखों पर्यटक आते हैं। जिसकी वजह से यहां मौजूद कचरे में बड़ी तेजी से इजाफा हो रहा है।

 मालदीव से पहले भारत में मिली थी माइक्रोप्लास्टिक की सबसे ज्यादा एकाग्रता 

जिस तरह से यहां माइक्रोप्लास्टिक में इजाफा हो रहा है, वो यहां के पर्यावरण, समुद्री जीवों और जैवविविधता के लिए एक बड़ा खतरा बनता जा रहा है। इसके साथ ही इसका असर यहां रहने वाले लोगों के कामकाज और रोजगार पर भी पड़ रहा है। यहां के ज्यादातर स्थानीय लोग अपनी जीविका के लिए मछली और पर्यटन पर निर्भर हैं। मालदीव में माइक्रोप्लास्टिक के बढ़ते प्रदूषण को समझने के लिए फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह शोध किया है जोकि जर्नल साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुआ है।

 इस शोध में नाइफारू द्वीप के तट पर 22 स्थानों पर रेत में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक के स्तर की जांच की है। यहां प्रति किलोग्राम रेत में माइक्रोप्लास्टिक के 55 से 1,127.5 टुकड़े मिले हैं। गौरतलब है कि इससे पहले भारत के तमिलनाडु राज्य में 3 से 611 माइक्रोप्लास्टिक प्रति किग्रा रेत में मिले थे। जबकि मालदीव के अन्य द्वीपों में चाहे वहां बसाव हो या नहीं, वहां प्रति किलोग्राम रेत में 197 से 822 कण मिले हैं।

इस शोध के प्रमुख शोधकर्ता टोबी पट्टी का कहना है कि नाइफारू के आसपास पानी में माइक्रोप्लास्टिक्स अत्यधिक मात्रा में केंद्रित है। उन्होंने बताया कि हमें जो माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े मिले हैं वो चौड़ाई में 0.4 मिमी से छोटे हैं। जिससे यह समस्या और गंभीर हो जाती है क्योंकि इनके समुद्री जीवों द्वारा लील लिए जाने की संभावनाएं अधिक हैं। यह न केवल इकोसिस्टम और यहां पाए जाने वाले जीवों के लिए खतरा है बल्कि साथ ही मानव स्वास्थ के लिए भी एक बड़ी चुनौती हैं।

 शोधकर्ताओं का मानना है कि मालदीव्स में मिला यह माइक्रोप्लास्टिक सिर्फ मालदीव में ही उत्पन्न नहीं हुआ है यह भारत जैसे आसपास के देशों से भी यहां पहुंचा है। साथ ही यह मालदीव की भूमि पुनर्ग्रहण नीतियों, खराब सीवरेज और अपशिष्ट जल प्रणाली का भी नतीजा हैं। 

क्या होता है माइक्रोप्लास्टिक

गौरतलब है कि जब प्लास्टिक के बड़े टुकड़े टूटकर छोटे कणों में बदल जाते हैं, तो उसे माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं। इसके साथ ही कपड़ों और अन्य वस्तुओं के माइक्रोफाइबर के टूटने पर भी माइक्रोप्लास्टिक्स बनते हैं।  प्लास्टिक के 1 माइक्रोमीटर से 5 मिलीमीटर के टुकड़े को माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है। जिस तरह से दुनिया में प्लास्टिक प्रदूषण बढ़ रहा है, उसका पर्यावरण पर क्या असर होगा, इसे अब तक बहुत कम करके आंका गया है। जबकि माइक्रोप्लास्टिक्स के बारे में तो बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।

यदि मालदीव में उत्पन्न हो रहे कचरे को देखें तो हर साल यहां लगभग 365,000 टन सॉलिड वेस्ट उत्पन्न होता है। राजधानी माले में प्रति व्यक्ति हर दिन 1.8 किलोग्राम की दर से ठोस कचरा उत्पन्न करता है। वहीं दूसरे द्वीपों में प्रति व्यक्ति हर दिन 0.8 किलोग्राम कचरा उत्पन्न करता है जबकि जिन द्वीपों में टूरिस्ट रिसोर्ट हैं, वहां प्रतिदिन 3.5 किलोग्राम प्रति व्यक्ति की दर से कचरा उत्पन्न हो रहा है। 

प्रोफेसर बर्क डा सिल्वा के अनुसार मालदीव में जिस तेजी से जनसंख्या में वृद्धि और विकास हो रहा है, उसको देखते हुए मौजूद वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम काफी नहीं है। यही वजह है कि यह छोटा सा द्वीपीय देश इससे जुड़े अनेक समस्याओं से जूझ रहा है। पिछले एक दशक में यहां प्रति व्यक्ति उत्पन्न किये जा रहे वेस्ट में करीब 58 फीसदी की वृद्धि देखी गई है। 

ऐसे में उनका मानना है कि यदि कचरे में कमी नहीं की जाती और वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम में तेजी से सुधार नहीं किया जाता तो वातावरण में इसी तरह माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा बढ़ती रहेगी।

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