दुनिया भर में हवा के जरिए फैल चुका है माइक्रोप्लास्टिक, स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए है खतरा

शोध के अनुसार वायुमंडल में प्रवेश करने के बाद प्लास्टिक के यह कण छह दिनों तक हवा में रह सकते हैं| इतने समय में यह कई महाद्वीपों की यात्रा कर सकते हैं

By Lalit Maurya

On: Wednesday 14 April 2021
 
माइक्रोस्कोप में देखने पर एक फ़िल्टर के अंदर धूल और फाइबर के बीच मिला नीले माइक्रोप्लास्टिक का कण; फोटो: जेनिस ब्राह्नी

क्या आप जानते हैं आपके सामान की पैकेजिंग और सोडा बोतलों में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक के छोटे टुकड़े हवाओं के जरिए पूरी दुनिया की यात्रा कर सकते हैं| प्लास्टिक को लेकर किए गए एक शोध से पता चला है कि हवा के जरिए माइक्रोप्लास्टिक से होने वाला प्रदूषण पूरी दुनिया में फैल रहा है|

अनुमान है कि 2015 में करीब 55 फीसदी प्लास्टिक को ऐसे ही वातावरण में छोड़ दिया गया था| जिसका बड़ा हिस्सा महासागरों पर बड़े द्वीप की तरह समुद्रों में तैरता दिखाई  देता है| अक्सर सड़कों और वातावरण में पड़ा यह प्लास्टिक छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट कर माइक्रोप्लास्टिक का रूप ले लेता है| हाल ही में कॉर्नेल और यूटा स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए शोध से पता चला है कि समुद्र और जमीन पर होने के साथ-साथ यह टुकड़े हमारी जानकारी से ज्यादा वातावरण में फैल चुके हैं| यह शोध 12 अप्रैल को प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में प्रकाशित हुआ था।

शोधकर्ताओं के अनुसार जिस तरह से इंसान प्लास्टिक प्रदूषण कर रहा है उसके चलते प्लास्टिक चक्र भी कार्बन चक्र जैसी प्राकृतिक प्रक्रियाओं की तरह ही हमारे पर्यावरण का हिस्सा बनता जा रहा है| शोध के अनुसार यह 21 वीं सदी की पर्यावरण से जुड़ी सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है|

हर वर्ष करोड़ों टन प्लास्टिक ऐसे ही समुद्रों और धरती पर फेंक दिया जाता है जो छोटे टुकड़ों में माइक्रोप्लास्टिक के रूप में टूटकर वापस हवाओं के जरिए रास्तों, समुद्रों और खेतों तक पहुंच रहा है| यह माइक्रोप्लास्टिक हमारी सांस, पीने के पानी और भोजन के जरिए हमारे शरीर में वापस पहुंच रहा है और उसे नुकसान पहुंचा रहा है|

छह दिनों तक हवा में रह सकते हैं माइक्रोप्लास्टिक के कण

इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता जेनिस ब्राह्नी ने बताया कि हमारे चारों ओर बहुत सा प्लास्टिक है, जो हमे विरासत में मिला है| यह हवा के जरिए वायुमंडल में यात्रा करता है और पूरी दुनिया में जमा होता है| यह कोई इस वर्ष का प्लास्टिक नहीं है यह वो है जिसे हमने दशकों पहले पर्यावरण में फेंक दिया था|

शोध के अनुसार महासागरों में फेंका प्लास्टिक हवा और लहरों के जरिये आपस में टकराता है जिससे इसके छोटे-छोटे कण बनते हैं यह कण छह दिनों तक हवा में रह सकते हैं| इतने समय में यह कई महाद्वीपों की यात्रा कर सकते हैं

गौरतलब है कि जब प्लास्टिक के बड़े टुकड़े टूटकर जब छोटे कणों में बदल जाते हैं, तो उसे माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं। सामान्यतः प्लास्टिक के 1 माइक्रोमीटर से 5 मिलीमीटर के टुकड़े को माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है।

1907 में पहली बार सिंथेटिक प्लास्टिक बेकेलाइट का उत्पादन किया गया था| जोकि प्लास्टिक इंडस्ट्री की शुरुवात थी| 1950 से पहले उसमें कोई खास वृद्धि नहीं हुई थी| 1950 में वैश्विक स्तर पर हर वर्ष करीब 20 लाख टन प्लास्टिक का उत्पादन किया जा रहा था जो अगले 65 वर्षों में 2015 तक 200 गुना बढ़ चुका था| 2015 में इसका वार्षिक उत्पादन करीब 35 करोड़ टन हो गया था| आज 1950 से देखें तो 2015 तक करीब 782 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन हो चुका है| चूंकि इसे विघटित होने में बहुत ज्यादा वक्त लगता है यही वजह है कि आज भी इसका बहुत बड़ा हिस्सा वातावरण में मौजूद है|

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