उत्तराखंड के जंगलों में हाथी की लीद में मिले प्लास्टिक के अंश, बड़े खतरे के संकेत
वैज्ञानिकों को उत्तराखंड के जंगलों और उसके आसपास से एकत्र किए गए हाथी की लीद के करीब एक तिहाई नमूनों में इंसानी कचरे की उपस्थिति के सबूत मिले हैं
On: Tuesday 17 May 2022
दुनिया भर के लिए प्लास्टिक अब एक बड़े खतरे में बदल चुका है। आज दुनिया की शायद ही कोई ऐसी जगह होगी जो इससे अछूती हो। हिमालय के ऊंचे शिखरों से समुद्र की अथाह गहराइयों तक में इसके पाए जाने के सबूत मिले हैं। जो दर्शाता है कि यह खतरा पर्यावरण पर किस तरह हावी हो चुका है। लेकिन अब इंसानों और जीवों के शरीर में इसके अंश का मिलना बड़े खतरे की ओर इशारा करता है।
अब तक आपने गाय और अन्य जानवरों द्वारा प्लास्टिक को निगलने और उनके शरीर में इसके अंश के मिलने की बात तो सुनी होगी पर हाल ही में उत्तराखंड के जंगलों में वैज्ञानिकों को एशियाई हाथी (एलिफस मैक्सिमस इंडिकस) की लीद में प्लास्टिक के अंश मिले हैं, जो दर्शाते हैं कि आज प्लास्टिक न केवल शहरों में बल्कि उससे दूर जंगलों में रहने वाले जीवों के शरीर में भी अपनी पैठ बना चुका है। भारतीय शोधकर्ताओं ने इसपर एक व्यापक अध्ययन किया है जिसके नतीजे जर्नल फॉर नेचर कंजर्वेशन में प्रकाशित हुए हैं।
गौरतलब है कि ‘एलिफस मैक्सिमस इंडिकस’ एशियाई हाथी की चार उपजातियों में से एक है, जिस भारतीय हाथी भी कहा जाता है। हाथी की यह प्रजाति 6 से 11 फ़ीट ऊंची होती है। वजन करीब 5,000 किलोग्राम होता है। आज दुनिया में इस प्रजाति के केवल 20 से 25 हजार हाथी ही बचे हैं। यही वजह है कि इसे संकटग्रस्त प्रजाति की लिस्ट में शामिल किया गया है।
हाथी की लीद में मिले प्लास्टिक और अन्य कचरे की जांच के लिए शोधकर्ताओं ने उनके आहार की जांच की है और पाया है कि उत्तराखंड के जंगलों और उसके किनारों से एकत्र किए लीद के नमूनों में प्लास्टिक के साथ अन्य तरह के इंसानी कचरे के अंश मिले हैं, जिसकी मात्रा के निर्धारण के लिए उन्होंने इस कचरे की पहचान की है और वर्गीकृत किया है साथ ही उन्हें मापा भी है।
32 फीसदी नमूनों में मिले इंसानी कचरे के अंश
वैज्ञानिकों को अपनी जांच से पता चला है कि एकत्र किए गए लीद के करीब एक तिहाई (32 फीसदी) नमूनों में इंसानी कचरे की उपस्थिति के सबूत मिले हैं। वहीं जिन 32 फीसदी नमूनों में इंसानी कचरे के अंश मिले हैं उनमें से 85 फीसदी में प्लास्टिक के टुकड़े मिले हैं जिनका आकार 1 से 355 मिलीमीटर के बीच था। मतलब की हर नमूने में प्लास्टिक के करीब 47 कण मिले हैं।
वैज्ञानिकों को यह जानकर हैरानी हुई की जहां जंगलों के किनारे से लिए नमूनों में प्रति 100 ग्राम नमूनों में प्लास्टिक के 35.34 कण मिले हैं वहीं घने जंगलों में यह आंकड़ा बढ़कर दोगुना हो गया था। जहां प्रति 100 ग्राम लीद में प्लास्टिक के 85.3 कण पाए गए हैं। इसके साथ ही जंगलों के अंदर से लिए प्रति 100 ग्राम नमूने में अन्य नॉन बायोडिग्रेडेबल वेस्ट जैसे कांच, धातु, रबर बैंड, मिट्टी के बर्तन और टाइल के टुकड़ों के 34.79 कण मिले हैं, जबकि जंगल के किनारों से लिए नमूनों में केवल 9.44 कण प्रति 100 ग्राम में पाए गए हैं।
देर होने से पहले उठाने होंगे ठोस कदम
इसी तरह कोयंबटूर वन्यजीव संरक्षण ट्रस्ट (सीडब्ल्यूसीटी) के सदस्यों को कोयंबटूर में मरुथमलाई के पास जंगली हाथी की लीद में सैनिटरी नैपकिन, मास्क और प्लास्टिक बैग सहित अपशिष्ट पदार्थ मिले थे। जीवों पर प्लास्टिक के प्रभावों का एक ऐसा ही सबूत कावेरी नदी से भी मिला था, वैज्ञानिकों के मुताबिक कावेरी नदी में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक जैसे प्रदूषक मछलियों के कंकाल में विकृति पैदा कर रहे हैं। साथ ही बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण के चलते इनके विकास पर भी असर पड़ रहा है।
गौरतलब है कि इससे पहले जर्नल ऑफ थ्रैटेनेड टैक्सा में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में उत्तराखंड में संरक्षित क्षेत्रों के पास खुले में कचरे को डंप करने से पैदा होने वाले खतरे को लेकर आगाह किया था। शोध के मुताबिक यह ओपन डंप शिवालिक हाथी अभ्यारण्य में एशियाई हाथियों के लिए एक उभरता हुआ खतरा है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक हाथी की लीद में माइक्रोप्लास्टिक की तुलना में मैक्रोप्लास्टिक के ज्यादा अंश मिले हैं। वैज्ञानिकों की मानें तो यह पहला अध्ययन है जो एशियाई हाथी द्वारा प्लास्टिक और अन्य तरह के कचरे को निगले जाने की पुष्टि करता है।
साथ ही यह हमारे गैर-जिम्मेदाराना तरीके से प्लास्टिक के इस्तेमाल और ठोस कचरे के प्रबंधन से जुड़ी नीतियों पर भी सवाल खड़ा करता है। वनजीवों के शरीर में प्लास्टिक की मौजूदगी एक बड़ा खतरा है जो पूरे इकोसिस्टम को प्रभावित कर सकती है। ऐसे में यह जरुरी है कि इन जीवों के आवास के आसपास प्लास्टिक प्रदूषण के खतरे को कम करने के लिए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़ी कारगर रणनीति तैयार की जाए।