अगले 38 वर्षों में तीन गुना बढ़ जाएगा प्लास्टिक वेस्ट, हर साल पैदा होगा 100 करोड़ टन कचरा

2019 में जहां 7.9 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा ऐसे ही वातावरण में डंप किया जा रहा था, उसका आंकड़ा 2060 में बढ़कर 15.3 करोड़ पर पहुंच जाएगा

By Lalit Maurya

On: Monday 06 June 2022
 

क्या आप जानते हैं कि 2060 तक हर साल पैदा होने वाला प्लास्टिक कचरा अब से करीब तीन गुना बढ़ जाएगा। यदि 2019 के आंकड़ों को देखें तो वैश्विक स्तर पर हर साल करीब 35.3 करोड़ टन प्लास्टिक वेस्ट पैदा हो रहा है जो अगले 38 वर्षों में बढ़कर 101.4 करोड़ टन से ज्यादा हो जाएगा।

यह जानकारी हाल ही में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) द्वारा हाल ही में जारी होने वाली रिपोर्ट “ग्लोबल प्लास्टिक आउटलुक: पालिसी सिनेरियोज टू 2060” में सामने आई है। रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि इस कचरे का लगभग आधा हिस्सा ऐसे ही लैंडफिल में डंप किया जा रहा है जबकि करीब 20 फीसदी से भी कम हिस्से को रीसायकल किया जाता है। नतीजन देश-दुनिया में तेजी से इससे जुड़ा कचरा अपने पैर पसार रहा है। यहां तक की दुनिया के उन सुदूर निर्जन इलाकों में भी प्लास्टिक की मौजूदगी के सबूत मिले हैं जहां अब तक इंसानी विकास की छाया नहीं पड़ी है।

देखा जाए तो पिछले कुछ दशकों में इंसानी विकास के साथ ही प्लास्टिक के उपयोग में भी तेजी से बढ़ोतरी हुई है। आज प्लास्टिक बैग्स से लेकर पैकेजिंग और निर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स, वाहनों, टायरों जैसी रोजमर्रा की अनगिनत चीजों के लिए इसका उपयोग किया जा रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार यदि ऐसा ही चलता रहा तो भविष्य में उत्तरी अमेरिका, यूरोप और पूर्वी एशिया में प्लास्टिक की खपत लगभग दोगुनी हो जाएगी, जबकि तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में इसके तीन से पांच गुना बढ़ने की आशंका है। वहीं अनुमान है कि उप-सहारा अफ्रीका में इसकी खपत छह गुना तक बढ़ सकती है। 

जहां एक तरफ प्लास्टिक ने इंसानी विकास में मदद की है साथ ही उसके लिए नए सिरदर्द भी पैदा किए हैं। अनुमान है कि यदि इसकी मांग में तेजी से कटौती के साथ-साथ दक्षता में सुधार भी किया जाए तो भी अगले चार दशकों में इसक उत्पादन करीब दोगुना हो जाएगा। अनुमान के मुताबिक 1950 के बाद से अब तक करीब 830 करोड़ टन प्लास्टिक उत्पादित किया जा चुका है जिनमें से 60 फीसदी को ऐसे ही या तो लैंडफिल में डंप कर दिया गया है, या फिर वातावरण में छोड़ दिया गया है।

प्लास्टिक की खपत कितनी विशाल है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जहां 2019 में हर साल करीब 46 करोड़ टन प्लास्टिक इस्तेमाल किया जा रहा था वो 2060 तक बढ़कर 123 करोड़ टन प्रति वर्ष से ज्यादा हो जाएगा। इसकी बढ़ती खपत का ही नतीजा है कि जहां एक तरफ इस प्लास्टिक उत्पादन से जुड़े कार्बन पदचिह्न में भी तेजी से वृद्धि हो रही है। साथ ही इससे पैदा होने वाला कचरा भी तेजी से बढ़ रहा है।

स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए बड़ा सिरदर्द बन चुका है माइक्रोप्लास्टिक

इतना ही नहीं रिपोर्ट से पता चला है कि 2019 में जहां 7.9 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा ऐसे ही वातावरण में डंप किया जा रहा था, उसका आंकड़ा 2060 में बढ़कर 15.3 करोड़ पर पहुंच जाएगा। इसका ठीक तरह से प्रबंधन न हो पाना जहां इंसानी स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रहा है, साथ ही यह प्रदूषण वन्यजीवन और इकोसिस्टम को भी भारी नुकसान पहुंचा रहा है।

इसके साथ ही जीवाश्म ईंधन आधारित होने के कारण इससे होने वाला उत्सर्जन भी अपना आप में एक बड़ी समस्या है। यदि प्लास्टिक के उत्पादन से विघटन तक के पूरे जीवनचक्र को देखें तो वर्तमान में इससे करीब 200 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य गैसें उत्सर्जित हो रही हैं, जोकि कुल वैश्विक उत्सर्जन का करीब तीन फीसदी है। यदि इस समस्या पर आज ध्यान न दिया गया तो 2060 में यह आंकड़ा बढ़कर दोगुना हो जाएगा। इससे जलवायु परिवर्तन की समस्या कहीं ज्यादा विकराल हो सकती है।

एक अनुमान के मुताबिक इससे पैदा होने वाला कचरा हर साल करीब 10 लाख से ज्यादा समुद्री पक्षियों और एक लाख से ज्यादा समुद्री जानवरों की मौत की वजह बन रहा है। पिछले शोधों से भी पता चला है कि वैश्विक स्तर पर बढ़ता प्लास्टिक, माइक्रोप्लास्टिक के रूप में नए खतरे पैदा कर रहा है। ऐसे ही एक शोध में सामने आया है कि एक बार वायुमंडल में प्रवेश करने के बाद प्लास्टिक के यह महीन कण छह दिनों तक हवा में रह सकते हैं| इतने समय में यह कई महाद्वीपों की यात्रा कर सकते हैं।

देखा जाए तो हर साल करोड़ों टन प्लास्टिक वेस्ट को ऐसे ही बिना उपचार के वातावरण में छोड़ा जा रहा है जो हवा, पानी और फसलों के जरिए लौटकर वापस हमारे पास ही आ रहा है। हाल ही प्रकाशित शोधों से पता चला है कि प्लास्टिक के यह कण न केवल इंसानी फेफड़ों बल्कि उसके रक्त में भी मिले हैं।

इतना ही नहीं प्लास्टिक के यह कण कोशिकाओं की कार्यप्रणाली को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इतना ही नहीं इन माइक्रोप्लास्टिक्स की वजह से बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स 30 गुना तक बढ़ सकता है। हाल ही में पहली बार अजन्मे शिशुओं के प्लेसेंटा (गर्भनाल) में माइक्रोप्लास्टिक का पता चला है, जोकि एक बड़ी चिंता का विषय है।  

रिपोर्ट में यह भी माना है कि यदि वैश्विक स्तर पर नीतियों में सुधार किया जाए तो अभी जहां 12 फीसदी प्लास्टिक रीसायकल किया जा रहा है वो भविष्य में बढ़कर 40 फीसदी तक हो सकता है। हालांकि रिपोर्ट के मुताबिक तेजी से बढ़ती आबादी और आर्थिक विकास के चलते प्लास्टिक वेस्ट में वृद्धि होना लगभग तय है।

ऐसे में यह जरुरी है कि दुनिया के सभी देश इस समस्या की गंभीरता को समझें और इससे निपटने के लिए ठोस रणनीति बनाएं। हमें व्यक्तिगत स्तर पर भी इससे निपटने के प्रयास करने होंगे। बढ़ते प्लास्टिक उपयोग को कम करना हमारी भी जिम्मेवारी है। इसके लिए जरुरत से ज्यादा प्लास्टिक उत्पादों की खरीदारी से बचें और उससे जुड़े कचरे को ऐसे ही न फेंकें। हमें इस बात की गंभीरता को समझना होगा कि खतरा इन उत्पादों से ज्यादा हमारी जीवन शैली से है जो ज्यादा से ज्यादा संसाधनों की बर्बादी की राह पर जा रही है।

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