प्लास्टिक कचरे से अलग हो जाएगा पॉलिमर, इंजीनियरों ने बनाया विशेष घोल

विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय के इंजीनियरों ने एक विशेष घोल (सॉल्वैंट) का उपयोग करके अनेक परतों से बनी प्लास्टिक सामग्रियों में से पॉलिमर को निकालने का तरीका विकसित किया है।

By Dayanidhi

On: Tuesday 24 November 2020
 

अनेक परतों से बनी प्लास्टिक सामग्री भोजन और चिकित्सा पैकेजिंग में सबसे अधिक उपयोग की जाती है। क्योंकि पॉलिमर में गर्मी से बचाने या ऑक्सीजन और नमी नियंत्रण जैसे विशिष्ट गुण होते हैं। लेकिन इनके उपयोग के बावजूद मौजूदा प्लास्टिक को पारंपरिक तरीकों से रीसायकल करना असंभव होता है।

लगभग 10 करोड़ टन मल्टीलेयर थर्मोप्लास्टिक, जिसमें हर एक में अलग-अलग पॉलिमर की 12 परतें होती हैं। जिसे दुनिया भर में हर साल उत्पादित किया जाता है। इस पूरे का चालीस प्रतिशत निर्माण प्रक्रिया में ही बर्बाद हो जाता है, क्योंकि पॉलिमर को अलग करने का कोई तरीका नहीं है, इस तरह लगभग सभी प्लास्टिक लैंडफिल या फिर जला दिए जाते हैं।

अब अमेरिका की विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय के इंजीनियरों ने एक विशेष घोल (सॉल्वैंट) का उपयोग करके इन सामग्रियों में से पॉलिमर को फिर से निकालने की एक विधि का विकास किया है।

पॉलिमर घुलनशीलता के थर्मोडायनेमिक गणनाओं द्वारा कई बार घोल से साफ किया जाता है, रासायनिक और जैविक इंजीनियरिंग के यूडब्ल्यू-मैडिसन प्रोफेसर जॉर्ज ह्यूबर और रीड वैन लेहैन ने आम परत वाली सामग्री से बने एक व्यावसायिक प्लास्टिक से पॉलिमर को अलग करने के लिए एसटीआरएपी प्रक्रिया का उपयोग किया। यह सामग्री पॉलीएथिलीन, एथिलीन विनाइल अल्कोहल और पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट से बनी होती है। यह शोध साइंस एडवांसेज में प्रकाशित हुआ है।

अलग-अलग पॉलिमर रासायनिक रूप से प्लास्टिक बनाने के लिए उपयोग किए जाते हैं जो एक समान दिखाई देते हैं।

टीम को उम्मीद  है कि अब नए प्लास्टिक सामग्री बनाने के लिए पुराने सामग्री से फिर से निकाले गए पॉलिमर का उपयोग होगा। यह प्रक्रिया विशेष रूप से अधिक परतों वाली प्लास्टिक निर्माताओं को उत्पादन और पैकेजिंग प्रक्रियाओं के बाद फैंक दी जाने वाली 40 प्रतिशत प्लास्टिक कचरे को दुबारा उपयोग किया जा सकता है।

ह्यूबर कहते हैं कि हमने एक अनेक परतों वाली प्लास्टिक के साथ यह करके दिखाया है। हमें अन्य अधिक परतों वाली प्लास्टिक के साथ यह कोशिश करने की आवश्यकता है और हमें इस तकनीक को और बेहतर करने की आवश्यकता है।

चूंकि अनेक परतों से बने प्लास्टिक की जटिलता बढ़ जाती है, इसलिए घोल (सॉल्वैंट्स) की पहचान करने में कठिनाई होती है जो प्रत्येक पॉलिमर को घोल सकती है। इसीलिए स्ट्राप प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए वैन लेहन द्वारा उपयोग किए गए कम्प्यूटेशनल दृष्टिकोण पर निर्भर करता है, जिसे संचालित करने वाले स्क्रीनिंग मॉडल फॉर रियलिस्टिक सॉल्वैंट्स (सीओएसएमओ-आरएस) कहा जाता है।

सीओएसएमओ-आरएस अलग-अलग तापमान पर घोल के मिश्रण में पॉलिमर की घुलनशीलता की गणना कर सकता है, जो संभावित विलायक की संख्या को कम कर सकता है, जो एक पॉलिमर को घोल सकता है। वान लेहन कहते हैं कि यह हमें और अधिक जटिल प्रणालियों से निपटने में मदद कर सकता है, यह वास्तव में रीसाइक्लिंग की दुनिया में बड़ा बदलाव लाने जा रहा है।

इसका उद्देश्य एक ऐसी कम्प्यूटेशनल प्रणाली विकसित करना है जो सभी प्रकार के अनेक परतों से बनी प्लास्टिक को रीसायकल करने के लिए विलायक (सॉल्वैंट्) मिश्रण को खोजने में मदद करेगा।  टीम ग्रीन सॉल्वैंट्स के एक डेटाबेस का उपयोग करने और इसे बनाने वाले ग्रीन सॉल्वैंट्स के पर्यावरणीय प्रभाव को बहुत कम करने की उम्मीद करती है, जो उन्हें विभिन्न विलायक प्रणालियों की प्रभावशीलता, लागत और पर्यावरणीय प्रभाव को बेहतर ढंग से संतुलित करने में मदद करेगा।

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