अष्टमुडी-वंबनाड वेटलैंड में प्रदूषण रोकने के लिए अधिकारियों ने नहीं की जरुरी कार्रवाई

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Thursday 25 August 2022
 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अपने 23 अगस्त, 2022 को दिए आदेश में कहा है कि अष्टमुडी और वंबनाड-कोल वेटलैंड में प्रदूषण को रोकने के लिए अधिकारियों ने जो कार्रवाई की है वो पर्याप्त नहीं है। वहां बढ़ता प्रदूषण जल अधिनियम 1974 के साथ-साथ वेटलैंड (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 का भी गंभीर रूप से उल्लंघन है।

ऐसे में कोर्ट ने अतिरिक्त मुख्य सचिव, पर्यावरण की अध्यक्षता में एक निगरानी समिति के गठन का निर्देश दिया है। जिसमें अन्य सदस्य निदेशक पर्यटन, निदेशक स्थानीय निकाय, निदेशक उद्योग, निदेशक पंचायत, केरल तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण, केरल राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और स्टेट वेटलैंड ऑथॉरिटी के अधिकारी शामिल होंगे।

कोर्ट का कहना है कि इसके लिए एक बहाली योजना तैयार की जानी चाहिए। जो बहाली पर आने वाली लागत के साथ अपनाए जाने वाले उपायों और उसका किस तरह उनका पालन किया जाएगा उसपर भी ध्यान रखेगी। एनजीटी के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस सुधीर अग्रवाल की बेंच ने अपने आदेश में कहा है कि निगरानी हर 14 दिन में एक बार की जानी चाहिए।

गौरतलब है कि आवेदन कर्ता कृष्णा दास के वी ने इस मामले में आवेदन दायर किया था। जिसमें उन्होंने केरल के कोल्लम में एक रामसर साइट, अष्टमुडी और वंबनाड-कोल वेटलैंड को बचाने में अधिकारियों द्वारा की गई कार्रवाई की विफलता के बारे में 24 फरवरी, 2022 को कोर्ट को अवगत कराया था।

आवेदक का कहना है कि फार्मास्युटिकल कचरे के साथ-साथ प्लास्टिक, घरेलू कचरे, बूचड़खानों से निकलते कचरे और कई अन्य स्रोतों से होती डंपिंग के कारण यह वेटलैंड कोल्लम शहर का प्रदूषित नाला बन गया है। इस मामले में केरल राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 17 अगस्त, 2022 को दायर अपनी रिपोर्ट में भी स्वीकार किया है कि दूषित सीवेज और अन्य कचरे के डाले जाने से झीलों में भारी प्रदूषण हो रहा है।

रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी गई है कि नावों को तोड़ने के कारण पैदा हो रहा कचरा भी इस वेटलैंड को दूषित कर रहा है। इसके कारण पैदा हुए ठोस कचरे को किनारों पर जलाया जा रहा है झील में बढ़ते प्रदूषण के साथ-साथ मैंग्रोव को भी नुकसान पहुंचा रहा है। यह भी पता चला है की जलीय कृषि और फिश प्रोसेसिंग इकाइयां भी प्रदूषण फैला रही हैं। 

वन भूमि उपयोग में बदलाव के मामले में एनजीटी ने पर्यावरण मंत्रालय से मांगा जवाब

एनजीटी की पश्चिमी क्षेत्र खंडपीठ ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय (एमओईएफसीसी) को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है, जिसमें उसे स्पष्ट रूप बताना है कि क्या बांस प्रसंस्करण के लिए रासायनिक उपचार संयंत्र संबंधी गतिविधियां गैर-वानिकी गतिविधियों में आएगी या नहीं और यदि हां वो आती हैं तो इस बात का भी स्पष्ट उल्लेख करना है कि क्या इस काम के लिए वन भूमि उपयोग में बदलाव के लिए अनुमति की जरुरत है या नहीं।

यह मामला महाराष्ट्र बांस विकास बोर्ड से संबंधित है, जो नागपुर के गोरेवाड़ा रिजर्व फॉरेस्ट में बांस प्रसंस्करण के लिए एक रासायनिक उपचार संयंत्र का संचालन कर रहा है।

 इस मामले में मंत्रालय ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा है कि वन भूमि पर किसी भी गैर-वानिकी गतिविधि को चलाने के लिए वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा 2 के तहत केंद्र सरकार की मंजूरी आवश्यक है। साथ ही इस क्षेत्र में वन भूमि के डायवर्जन के लिए महाराष्ट्र बांस विकास बोर्ड की ओर से कोई प्रस्ताव प्राप्त नहीं हुआ है। 

रिदम कंट्री ने पर्यावरण मानदंडों का किया उल्लंघन, करना होगा मुआवजे का भुगतान: एनजीटी

एनजीटी ने मैसर्स रिदम कंट्री को पांच करोड़ रुपये के मुआवजे का भुगतान करने का आदेश दिया है। उसे यह राशि अगले दो महीनों के भीतर महाराष्ट्र राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास जमा करानी होगी। कोर्ट के अनुसार इस धनराशि का उपयोग जिला पर्यावरण योजना के मद्देनजर पर्यावरण की बहाली के लिए किया जाएगा।

गौरतलब है कि यह आदेश मैसर्स रिदम कंट्री द्वारा पर्यावरण नियमों के उल्लंघन के जवाब में था। जानकारी मिली है कि रिदम कंट्री ने पुणे के औटाडे हंदवाड़ी में एक निर्माण परियोजना के दौरान इन नियमों का उल्लंघन किया था।

पता चला है कि यह निर्माण आवश्यक पर्यावरण मंजूरी (ईसी) और वायु अधिनियम, 1981 और जल अधिनियम 1974 के तहत आवश्यक सहमति के बिना ही शुरू किया गया था। इस मामले में महाराष्ट्र राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) ने 3 जनवरी, 2020 को एक कारण बताओ नोटिस भी जारी किया था। इसके बाद 6 जुलाई 2020 को भी एक आदेश दिया गया था। लेकिन एसपीसीबी के आदेश के बावजूद रिदम कंट्री ने परियोजना के निर्माण का काम नहीं रोका और उसे पूरा कर लिया। 

खाम नदी में बढ़ते प्रदूषण के मामले में एनजीटी ने औरंगाबाद जिला कलेक्टर से मांगी रिपोर्ट

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी), 23 अगस्त, 2022 को दिए अपने आदेश में औरंगाबाद के जिला कलेक्टर को खाम नदी में बढ़ते प्रदूषण के मामले में अपनी रिपोर्ट सबमिट करने का निर्देश दिया है। इस मामले में इंडियन एक्सप्रेस में एक खबर प्रकाशित हुई थी जिसमें कहा गया था कि खाम नदी में दूषित सीवेज छोड़ा जा रहा है। इसी के मद्देनजर एनजीटी की वेस्टन बेंच के समक्ष एक आवेदन दायर किया गया था।

इस मामले में औरंगाबाद नगर निगम ने अपने हलफनामे में कहा है कि नगर निगम 96 एमएलडी के वर्तमान सीवेज उत्पादन के मुकाबले 211 एमएलडी क्षमता के 4 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) को संचालित कर रही है। इन संयंत्रों को 2030 तक भविष्य की बढ़ती आबादी को ध्यान में रखकर डिजाईन किया गया है। वहीं अब तक कुल 186 भूमिगत जल निकासी लाइनों का काम पूरी हो चुका है।

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