जहां पानी ही अशुद्ध हो वहां कोरोनावायरस से बचने के लिए हाथ धोना कितना सुरक्षित है?

विश्व में 190 करोड़ लोगों के पास उपयोग केलिए शुद्ध पानी उपलब्ध नहीं है

By Sushmita Sengupta

On: Friday 20 March 2020
 
Photo: Pixels12jav.net

नावेल कोरोनावायरस (कोविड-19) से जूझने के मामले में भारत की वाहवाही हो रही है। हाथ धुलाई को लेकर चलाए जा रहे जागरूकता अभियान और उसमें बड़ी हस्तियों को भी शामिल करने जैसे प्रयासों की काफी चर्चा हो रही है। इस बीच एक चिंता सामने आ रही है कि माध्यम आय वर्ग वाले देश जैसे अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, कैरेबियन और एशिया के साथ भारत में साफ पानी की सुविधा कम लोगों को ही उपलब्ध है।

विश्वभर में निम्न अज्ड माध्यम आय वाले देश के 180 करोड़ लोग बेहद प्रदूषित पानी का उपयोग करते हैं। इन आंकड़ों का खुलासा ट्रॉपिकल मेडिसिन एंड इंटरनेशनल हेल्थ नामक पत्रिका में 2014 में छपे एक शोध से हुआ। इन देशों में लोग पानी में मौजूद सूक्ष्म प्रदूषण से ग्रस्त हैं और दक्षिणी विश्व में गंभीर किस्म का प्रदूषण पानी में पाया जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्टकहती है कि पूरे विश्व में तकरीबन 190 करोड़ आबादी द्वारा उपयोग किया जाने वाला जल पीने, साफ सफाई और दूसरे कामों के लायक ही नहीं होता, और इस पानी का स्त्रोत मुख्यतः भूजल है।

भारत में 6,50,000 गांवों में सफलतापूर्वक 1.64 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया गया है। सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट द्वारा किए गए शोध के अनुसार, मल उपचार की तकनीक सभी शौचालयों के लिए सुरक्षित नहीं है।

अफ्रीकन देशों जिनमें नाइजीरिया, यूगांडा और केन्या शामिल हैं, में ऐसी ही स्थिति देखी का सकती है। सारे देशों के पास साफ सफाई के दुरुस्त इंतजाम नहीं हैं। खुले में शौच और शौचालय में मल उपचार की अच्छी तकनीक न होने की वजह से बिना उपचारित या आधा-अधूरा उपचारित मल पानी के स्रोतों में जा मिलता है।

इससे भूजल और मिट्टी दोनों प्रदूषित होती है। इन देशों में ग्रामीण और कस्बाई आबादी भूजल या खुले जल स्त्रोतों पर निर्भर है जहां स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है।

जलजनित रोगों में डायरिया सबसे अधिक जान लेने वाला रोग बना हुआ है जिसकी वजह से 60 प्रतिशत मृत्यु जो रही है। यह आंकड़ा पूर्व स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री जेपी नड्डा ने लोक सभा में एक सवाल के जवाब में वर्ष 2018 में पेश किया था। 

हैजा, टाइफाइड और वायरल हैपेटाइटिस पानी से होने वाले अन्य रोग हैं जिससे अक्सर ग्रामीण आबादी प्रभावित होती है। पानी से होने वाली बीमारियों से होने वाली मौतों का प्रमुख कारण डायरिया है।

केंद्रीय स्वास्थ्य ब्यूरो द्वारा जारी वार्षिक प्रकाशन 2019 के नेशनल हेल्थ प्रोफाइल के अनुसार, 2017 में 1,362 और 2018 में 1,450 लोगों की इस बीमारी की वजह से मौत हो गई थी।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अतिरिक्त निदेशक दीपांकर साहा के अनुसार, भारत के ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में हाथ धोने का मतलब दूषित पानी का उपयोग करना है। ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत में भूजल में प्रवेश करने वाले जैविक प्रदूषक तत्व  आज के समय में एक प्रमुख चिंता का विषय है।

हालांकि, यदि हाथ धोने में साबुन का इस्तेमाल हो रहा है तो यह पानी में मौजूद जीवाणु को खत्म करने में सक्षम है। साफ पानी को लोगों तक पहुंचा कर कोविड-19 जैसे बीमारियों से पुख्ता तरीके से लड़ा जा सकता है।

Subscribe to our daily hindi newsletter