गंगा नदी के निचले हिस्सों में पानी की गुणवत्ता बहुत खराब पाई गई: अध्ययन
अध्ययन में पर्यावरण में होने वाले बदलावों और जल गुणवत्ता सूचकांक पर मानसूनी वर्षा के प्रभाव को समझने के लिए गंगा नदी के निचले हिस्सों के साथ 59 स्टेशनों के 9 जगहों की निगरानी की गई
On: Thursday 09 December 2021
बढ़ती औद्योगिक गतिविधियों के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में तेजी से इंसानी दबाव बढ़ रहा है। बढ़ते दबाव के चलते गंगा सहित दुनिया भर की प्रमुख नदियों में अनुपचारित सीवेज और अन्य प्रकार के प्रदूषक छोड़े जा रहे हैं।
इस अध्ययन में पर्यावरण में होने वाले बदलावों और जल गुणवत्ता सूचकांक (डब्ल्यूक्यूआई) पर मानसूनी वर्षा के प्रभाव को समझने के लिए गंगा नदी के निचले हिस्से के साथ 59 स्टेशनों के 9 जगहों की निगरानी की गई थी।
जिसमें वैज्ञानिकों ने गंगा नदी के निचले हिस्सों में पानी की गुणवत्ता को काफी खराब पाया है। वैज्ञानिकों ने बताया कि जल गुणवत्ता सूचकांक (डब्ल्यूक्यूआई) से पता चला है कि पानी की गुणवत्ता में लगातार गिरावट आ रही थी।
तेजी से बढ़ता इंसानी दबाव और मानवजनित गतिविधियों के चलते गंगा नदी में अन्य प्रकार के प्रदूषकों के साथ-साथ नगरपालिका और उद्योगों का अनुपचारित सीवेज छोड़ा जा रहा है। कोलकाता शहर के करीब मानवजनित कारकों से गंगा नदी के निचले हिस्से बहुत अधिक प्रभावित हुए हैं। तीव्र जनसंख्या दबाव के कारण नदी के दोनों किनारों पर काफी असर देखा जा रहा है।
नतीजतन गंगा नदी के निचले हिस्से में अनुपचारित नगरपालिका और औद्योगिक सीवेज के छोड़े जाने में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। जिसके परिणामसरूप कई जैव विविधता पारिस्थितिक तंत्र जैसे सुंदरबन मैंग्रोव और लुप्तप्राय करिश्माई प्रजातियों जैसे गंगा के डॉल्फिन खतरे में हैं।
यह अध्ययन कोलकाता के इंटीग्रेटेड टैक्सोनॉमी एंड माइक्रोबियल इकोलॉजी रिसर्च ग्रुप (आईटीएमईआरजी) के प्रोफेसर पुण्यश्लोक भादुरी के नेतृत्व में किया गया। अध्ययनकर्ताओं की टीम ने प्रमुख पर्यावरण की गतिशीलता को समझने के लिए दो वर्षों तक गंगा नदी के निचले हिस्सों के 50 किलोमीटर के दायरे में 59 स्टेशनों को शामिल करते हुए नौ जगहों की निगरानी की। निगरानी के अंतर्गत गंगा के स्वास्थ्य की स्थिति का आकलन करने के लिए जैविक बदलाव के साथ पानी में घुलित नाइट्रोजन सहित सभी बदलने वाले कारकों को शामिल किया गया।
वैज्ञानिकों ने उस जगह के जल गुणवत्ता सूचकांक (डब्ल्यूक्यूआई) का पता लगाया है, जो एक प्रमुख माप है जो गंगा नदी के निचले हिस्से के स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी परिणामों को समझने में मदद करता है।
भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) - जल प्रौद्योगिकी पहल ने इस प्रमुख अध्ययन को करने के लिए सहायता प्रदान की है। यह अध्ययन एनवायरनमेंट रिसर्च कम्युनिकेशन' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
अध्ययन से पता चला है कि नदी के इस खंड का जल गुणवत्ता सूचकांक (डब्ल्यूक्यूआई) का मान 14 से 52 के बीच था। वैज्ञानिकों ने बताया कि नमूने लेने के दौरान जल गुणवत्ता लगातार बिगड़ रही थी। उन्होंने अलग-अलग प्रदूषकों के साथ प्रदूषण कहा से आ रहा है उन स्रोतों की भी पहचान की है।
विशेष रूप से नाइट्रोजन के 50 किमी खंड के साथ बायोटा पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाया। वैज्ञानिकों ने नदी बेसिन प्रबंधन में तत्काल हस्तक्षेप करने की आवश्यकता पर जोर दिया है। यहां बताते चले कि बायोटा- किसी विशेष स्थान में रहने वाले सभी जीवित प्राणी जिनमें जन्तु एवं पेड़-पौधे सभी सम्मिलित होते हैं।
इस अध्ययन के निष्कर्ष सेंसर और स्वचालन के एकीकरण के साथ-साथ गंगा नदी के निचले हिस्से की लंबे समय तक पारिस्थितिक स्वास्थ्य की निगरानी के लिए महत्वपूर्ण होंगे।