डाउन टू अर्थ खास: सात साल बाद मध्य प्रदेश सरकार ने तोड़ा वादा, बनेगा बसनिया बांध

जनविरोध को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने नर्मदा घाटी पर बनने वाले बांधों में से एक चौथाई को निरस्त कर दिया था। जनविरोध के शांत होते ही एक बांध का काम शुरू कर दिया गया

By Anil Ashwani Sharma

On: Thursday 13 April 2023
 
मध्य प्रदेश के मंडला जिले के ओढारी गांव (बसनिया बांध स्थल ) में आदिवासी बांध स्थल पर बैठक कर अपनी रणनीति बनाते हुए (सभी फोटो: राजकुमार सिन्हा)

“सात साल पहले जब बसनिया बांध के निरस्त होने की खबर आई थी तो हम सब आदिवासियों ने राहत की सांस ली। भ्रम हुआ कि हमारे जंगल और घर डूबने से बच गए। लेकिन, अब अचानक इस बांध के निर्माण की सूचना पाकर हम सकते में हैं। मध्य प्रदेश सरकार ने बहुत बड़ा धोखा किया।” मध्य प्रदेश के मंडला जिले के ओढारी गांव (बसनिया बांध निर्माण स्थल) के सरपंच तितरा मारवी ये बातें कहते हुए गहरी उदासी में खो गए। मध्य प्रदेश सरकार ने विधानसभा में किए वादे को महज सात साल के अंदर तोड़ दिया। अब आदिवासियों को बेघर करने की तैयारी है।

जनआंदोलन की राष्ट्रीय समन्वयक मेधा पाटकर ने कहा कि बसनिया बांध नर्मदा घाटी के उन सात बांधों में से एक है, जिसे मार्च 2016 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश विधानसभा में निरस्त किए जाने की घोषणा की थी। चौहान ने कहा था कि चूंकि इस बांध से बड़ी संख्या में विस्थापन और खेती की जमीन डूबेगी, इसलिए इस बांध के साथ सात बांधों को निरस्त किया गया है। लेकिन, अचानक बांध को आगे बढ़ाने का निर्णय क्यों, किस आधार पर और किस प्रक्रिया के तहत राज्य सरकार ने लिया, यह उसे स्पष्ट करना चाहिए। साथ ही उन्होंने सवाल उठाया कि नर्मदा घाटी भूकंप को लेकर संवेदनशील क्षेत्र है। घाटी में भूकंप लगभग तीन रिक्टर स्केल से अधिक मात्रा से लगातार बढ़ता जा रहा है।

बीते ढाई साल में नर्मदा और सोन नदी घाटी वाले जिलों में धरती के नीचे करीब 37 बार भूकंप आ चुके हैं। इसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 1.8 से 4.6 के बीच रही। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के मुताबिक प्रदेश में बीते 200 साल में चार बड़े और विनाशकारी भूकंप आए हैं। प्रदेश में आखिरी बार विनाशकारी भूकंप 25 साल पहले आया था। 22 मई 1997 को तड़के चार बजे जबलपुर में आए भूकंप में 41 लोगों की मौत हुई थी। तब रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 5.8 मापी गई थी। बसनिया बांध मंडला जिले में है और यह जबलपुर का पड़ोसी जिला है।

नर्मदा विकास प्राधिकरण ने मध्य प्रदेश के हिस्से वाली नर्मदा नदी पर 29 बड़े बांध बनाने की योजना पर 1980 से ही काम शुरू कर दिया था, जिनमें से अब तक दस बांध बन चुके हैं, छह बांध पर कार्य प्रगति पर है और शेष 13 बांध में से सात बांध निरस्त कर दिए गए थे।

मंडला जिले के विधायक अशोक मर्सकोले आदिवासियों के साथ जिला मुख्यालय में बांध के विरोध में प्रदर्शन करते हुए राज्य सरकार ने 21 दिसंबर 2022 को राज्य की विधानसभा में बताया कि इस बांध के निर्माण के लिए एक कंपनी को अधिसूचित कर दिया गया है। इस संबंध में मंडला जिले की निवास विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित विधायक अशोक मर्सकोले ने बताया कि पिछली 21 दिसंबर 2022 को मैंने राज्य विधानसभा में प्रश्न-काल में पूछा था कि नर्मदा घाटी में प्रस्तावित किन-किन परियोजनाओं में आने वाली कितनी आरक्षित वन भूमि एवं कितनी संरक्षित भूमि प्रस्तावित है।

साथ ही इसमें कितने बड़े और कितने छोटे पेड़ों के जंगल की जमीन शामिल है? इस प्रश्न के जवाब में मुख्यमंत्री जिनके पास नर्मदा विकास का विभाग भी है, ने बताया कि निर्माण कार्य के लिए अनुबंधित एजेंसी (जिस कंपनी को बांध के निर्माण करने का ठेका मिला हुआ) द्वारा ही वैकल्पिक भूमि के चयन एवं वन भूमि की अनुमति का कार्य किया जाना है।

इस संबंध में बरगी बांध विस्थापित संघ के सदस्य राजकुमार सिन्हा ने बताया कि इस जवाब का सीधा मतलब था कि सरकार विधानसभा में दिए गए अपने लिखित बयान से पूरी तरह से पलट गई।

तब मुख्यमंत्री ने सात बांधों (जिसमें बसनिया बांध भी शामिल है) के निर्माण को निरस्त करने के अपने लिखित बयान में बताया था कि प्रस्तावित सात बांधों के नए भू-अर्जन अधिनियम से लागत में वृद्धि होने, अधिक डूब क्षेत्र होने और डूब क्षेत्र में वन भूमि के आने के कारण निरस्त किया गया है।

सिन्हा कहते हैं कि सात साल के अंदर मुख्यमंत्री के दो बयान विधानसभा में अलग-अलग समय पर दिए गए। एक में वे सात बांधों को निरस्त करने की घोषणा कर रहे हैं और दूसरे बयान में उन्हीं सात में से एक बांध के लिए निर्माण एजंेसी के साथ किए गए अनुबंध के बारे में जानकारी दे रहे हैं।

मुख्यमंत्री के बयान के बाद नर्मदा घाटी में प्रस्तावित बसनिया बांध का नर्मदा घाटी विकास विभाग और मुंबई की एफकोंस कंपनी के बीच 24 नवंबर 2022 को अनुबंध पर हस्ताक्षर हुए। राज्य सरकार ने पहले ही 26 मई 2020 को 13 बांधों के लिए पावर फाइनेंस कार्पोरेशन के साथ 22 हजार करोड़ रुपए का भी अनुबंध किया हुआ है। हकीकत यह है कि पावर फाइनेंस कार्पोरेशन जल विद्युत उत्पादन के लिए ही कर्ज देगी। इसलिए बचे हुए बांधों में 225 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन का लक्ष्य बढ़ाया गया है।

नर्मदा घाटी विभाग ने 2009-2010 की अपनी रिपोर्ट में बसनिया बांध से 20 मेगावाट विद्युत उत्पादन और 50 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई का लक्ष्य रखा था। इसे अब बढ़ाकर 100 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन और सिंचाई का रकबा घटाकर केवल 8,780 हेक्टेयर लक्ष्य कर दिया गया है।

राज्य सरकार को सिंचाई से बहुत ही कम राजस्व प्राप्त होता है, जबकि विद्युत उत्पादन में भरपूर राजस्व मिलता है, जिससे लिया गया कर्ज चुकाने में दिक्कत नहीं आती। कई विशेषज्ञों का कहना है कि इस बांध के विकल्प में माइक्रो लिफ्ट सिंचाई योजना ज्यादा उपयोगी होगी, इससे लागत और समय भी कम लगेगा तथा सिंचाई का रकबा भी बढ़ाया जा सकता है। इस बात की पुष्टि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के पूर्व उपाध्यक्ष रजनीश वैश्य ने भी की।

राजकुमार कहते हैं कि यहां एक बात गौर करने की है कि पावर फाइनेंस कार्पोरेशन की बहुत सारी पूंजी थर्मल पावर में फंस गई है। इसलिए पावर फाइनेंस कार्पोरेशन हरित ऊर्जा के नाम पर जल विद्युत उत्पादन के लिए कर्ज दे रहा है। जीवाश्म ईंधन से अलग हटने का वैश्विक दबाव (जलवायु परिवर्तन को लेकर) भी नीतिगत बदलाव के लिए बाध्य है। लेकिन, यहां एक बड़ा सवाल है कि घने जंगल और जैव विविधता को डुबाने के बाद यह जल विद्युत हरित ऊर्जा कैसे हो जाएगी?

यही नहीं, केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा नदी घाटी परियोजनाओं के लिए गठित विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति की 40वीं बैठक 25 जनवरी 2023 को हुई। राज्य सरकार की ओर से बैठक में नर्मदा घाटी की बसनिया बहुउद्देशीय परियोजना के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन रिपोर्ट मंजूर करने का प्रस्ताव रखा गया था। इस प्रस्ताव पर विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति ने टिप्पणी की कि परियोजना में 2,107 हेक्टेयर वन भूमि क्षेत्र शामिल है, कायदा कहता है कि यहां कम से कम जंगल शामिल होना चाहिए।

साथ ही यह भी कहा गया कि इस परियोजना का वैकल्पिक स्थल का विश्लेषण प्रस्ताव में नहीं रखा गया है। समिति का कहना है कि इस विकास परियोजना में जंगल के एक बड़े क्षेत्र की जरूरत होगी और साथ ही इस परियोजना क्षेत्र में आदिवासी जनसंख्या निवास करती है। विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति ने कहा कि वन भूमि को परिवर्तित करने से पारिस्थितिकी तंत्र, जैव विविधता की हानि और पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

समिति ने राज्य सरकार से कहा है कि आदिवासियों पर इस परियोजना के प्रभाव का पारिस्थितिकीय परिप्रेक्ष्य में वैकल्पिक स्थल भी प्रस्तुत करें। समिति ने उपरोक्त तथ्यों के आधार पर परियोजना के लिए दिया जाने वाला टर्म ऑफ रेफरेंस (संदर्भ बिंदु) देना स्थगित कर दिया है।

इंफोग्राफिक: तरुण सहगल
डेटा स्रोत: डीटीई/सीएसई डेटा सेंटर 
अन्य इंफोग्राफि‍क के लिए  www.downtoearth.org.iinfographics  जाएं।

कितनी डूब

यह बांध मध्य प्रदेश के मंडला जिले के गांव अोढारी में प्रस्तावित है। इस बांध में कृषि भूमि 2,443 हेक्टेयर, वन भूमि 2,107 हेक्टेयर और शासकीय भूमि 1,793 हेक्टेयर अर्थात कुल 6,343 हेक्टेयर जमीन डूब में आएगी। इस बांध से मंडला के 18 और डिंडोरी जिले के 13 आदिवासी बाहुल्य गांव के 2,735 परिवार विस्थापित होंगे, जिनकी आजीविका का एकमात्र साधन खेती ही है।

डूब क्षेत्र की गणना अभी तक टोपोशीट (यानी कि केवल नक्शा देख कर ही अनुमान लगा लिया गया है) के आधार पर हुआ है। जब प्रत्यक्षत: गांव-गांव जाकर जमीनी सर्वे होगा तो विस्थापित होने वाले गांवों की संख्या और डूब में आने वाली जमीन के रकबे में बढ़ोतरी होगी ही। इसका एक बड़ा उदाहरण जबलपुर में बना बरगी बांध है, जहां पहले राज्य सरकार ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि प्रभावित गांव 101 होंगे, लेकिन जलाशय में पानी भरने के बाद 162 बांध में गांव डूब गए।

बसनिया बांध में डूबने वाले एक और रामपुरी गांव के नवल सिंह मारवी कहते हैं कि इस बांध से मात्र 8,780 हेक्टेयर में सिंचाई होगी जबकि 6,343 हेक्टेयर भूमि डूब में आएगी। क्या 2,443 हेक्टेयर कृषि और 2,107 हेक्टेयर वन भूमि को 100 मेगावाट बिजली उत्पादन के नाम पर डुबाया जाना उचित है?

ध्यान रहे कि मंडला जिला संविधान की पांचवीं अनुसूची (आदिवासी क्षेत्र के लिए विशेष व्यवस्था) के तहत वर्गीकृत है, जहां पेसा (पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) विधेयक) अधिनियम प्रभावशील है। इस परियोजना के संबंध में प्रभावित किसी भी ग्राम सभाओं को अब तक नर्मदा घाटी विकास विभाग द्वारा किसी भी तरह की जानकारी प्रदान नहीं की गई है। यह आदिवासियों को पेसा नियम के तहत प्राप्त संवैधानिक अधिकारों का सीधा-सीधा उल्लंघन है। यही नहीं बांध निर्माण के लिए मुंबई की कंपनी को ठेका दिए जाने की सूचना भी बांध प्रभावित गांवों के आदिवासियों को स्थानीय समाचार पत्रों से ही ज्ञात हुई।

पांचवीं अनुसूची और पेसा अधिनियम के तहत प्राप्त अधिकार के दायरे में बांध प्रभावित ग्राम सभाओं ने बसनिया बांध बनाए जाने की स्वीकृति अब तक प्रदान नहीं की है।

नर्मदा नदी घाटी परियोजना भारत की दूसरी सबसे बड़ी परियोजना है। इसकी परिकल्पना भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने की थी और इसे मूर्त रूप दिया था देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने। नर्मदा घाटी परियोजना नर्मदा नदी पर गुजरात, मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र की एक संयुक्त परियोजना है। इसमें नर्मदा एवं उसकी 41 सहायक नदियों पर 30 बड़े बांध, 135 मध्यम बांध तथा 3,000 छोटे बांधों का निर्माण किया जाना है। बड़े बांधों में से केवल सरदार सरोवर बांध ही गुजरात में बना है। इसके अलावा अकेले मध्य प्रदेश में ही 29 बड़े बांध बनाए जाने हैं। इन 29 बांधों में से ही एक बसनिया बांध है।

जब से इसके फिर से बनने की अधिसूचना जारी हुई है तब से इस क्षेत्र में बांध प्रभावित आदिवासी गांव के लोग लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। यह विरोध प्रदर्शन कई बार उग्र रूप भी धारण कर चुका है। सरकार की ओर से 30 दिसंबर 2022 को बांध स्थल पर सर्वे करने आई सर्वेयर टीम को प्रदर्शनकारियों ने बंधक बना लिया था। हालांकि, बाद में स्थानीय अधिकारियों के आश्वासन के बाद ग्रामीणों ने बंधक बनाए कर्मचारियों को छोड़ दिया लेकिन आदिवासियों का बांध के िवरोध में लगातार धरना-प्रदर्शन जारी है।

यह तो भविष्य के गर्भ में है कि ग्रामीणों के विरोध के बावजूद अन्य बांधों की तरह बसनिया बांध बनकर तैयार होगा या आदिवासियों का संघर्ष जीतेगा।

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