पिछले 800 सालों में किस तरह बदला एशियाई नदियों का बहाव: अध्ययन

शोधकर्ताओं ने पाया कि एशियाई नदियां उस अवधि के 50 साल पहले और 50 साल बाद की तुलना में 20 वीं सदी के पहले हिस्से में महासागरों से बहुत कम प्रभावित हुई

By Dayanidhi

On: Thursday 31 December 2020
 
Photo : Wikimedia Commons, Mekong River

दुनिया की दस सबसे बड़ी नदियों सहित कई आबादियों के घर कहे जाने वाले नदी-नालों, एशियाई मानसून क्षेत्र तीन अरब से अधिक लोगों के लिए पानी, ऊर्जा और भोजन प्रदान करता है। इसलिए हमें इसके पिछले जलवायु पैटर्न को समझना महत्वपूर्ण हो जाता है ताकि हम पानी के चक्र में लंबे समय में होने वाले बदलावों का बेहतर अनुमान लगा सकें, जिसका असर भविष्य में पानी की आपूर्ति पर पड़ेगा।

एशियाई मानसून क्षेत्र के पिछले जलवायु पैटर्न को बेहतर ढंग से समझने के लिए सिंगापुर यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड डिजाइन (एसयूटीडी) के शोधकर्ताओं ने दो साल तक शोध किया। शोध के तहत उन्होंने सन 1200 से 2012 तक एशिया के 16 देशों की 41 नदियों के 62 स्टेशनों पर 813 सालों के बहाव के आंकड़ों का विश्लेषण किया।

नदी के बहाव के इतिहास का पुनर्निर्माण करने के लिए, शोधकर्ताओं ने पेड़ के छल्ले (ट्री रिंग) पर भरोसा किया। इसके लिए उन्होंने 2010 में कुक और अन्य सहोयोगियों के द्वारा किए गए अध्ययन का सहारा लिया। एशिया में पेड़ के छल्लों (ट्री रिंग) के आंकड़ों का एक व्यापक नेटवर्क विकसित किया और प्राचीन सूखे का रिकॉर्ड तैयार किए, जिसे मानसून एशिया ड्राउट एटलस (एमएडीए) कहा जाता है। एसयूटीडी के शोधकर्ताओं ने एमएडीए का उपयोग अपने नदी के बहाव मॉडल के लिए एक उपकरण की तरह किया।

उन्होंने हाइड्रोक्लाइमैटिक समानता के आधार पर प्रत्येक नदी के लिए एमएडीए के सबसे सही आंकड़े का चयन करने के लिए एक नई प्रक्रिया विकसित की। इस प्रक्रिया ने मॉडल को सबसे महत्वपूर्ण जलवायु संकेतों को निकालने में मदद दी जो पेड़ के छल्लों के आंकड़े नदी के बहाव पर पड़ने वाले प्रभाव को दिखाते हैं।

शोधकर्ताओं ने बताया कि हमारे परिणामों से पता चलता है कि एशिया में नदियां एक स्पष्ट पैटर्न में बहती हैं। बड़े सूखे और प्रमुख वर्षा की अवधि अक्सर आस-पास के घाटियों में एक साथ होती हैं। कभी-कभी भारत में गोदावरी से लेकर दक्षिण-पूर्व एशिया में मेकांग तक सूखा पड़ता है। जल प्रबंधन के लिए इसे समझना महत्वपूर्ण हैं, खासकर जब देश की अर्थव्यवस्था कई नदी घाटियों पर निर्भर करती है। अध्ययन वाटर रिसोर्सेज रिसर्च में प्रकाशित हुआ है।

आधुनिक मापों का उपयोग करते हुए, इस बारे में पता चला है कि एशियाई नदियों का व्यवहार महासागरों से प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए, यदि एक अल नीनो घटना में प्रशांत महासागर अपने उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में गर्म हो जाता है, तो इससे वायुमंडलीय प्रसार में बदलाव होगा और यह दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई नदियों में सूखे का कारण बन सकता है।

हालांकि, एसयूटीडी अध्ययन से पता चला है कि यह महासागर-नदी संबंध समय के साथ एक जैसे नहीं रहते है। शोधकर्ताओं ने पाया कि एशिया में नदियां उस अवधि के 50 साल पहले और 50 साल बाद की तुलना में 20 वीं सदी के पहले हिस्से में महासागरों से बहुत कम प्रभावित थीं।

एसयूटीडी के मुख्य शोधकर्ता एसोसिएट प्रोफेसर स्टेफानो गैलीली ने कहा कि नीति निर्माताओं के लिए यह शोध बहुत महत्वपूर्ण है। हमें यह समझने की जरूरत है कि पानी पर निर्भर बुनियादी ढांचे पर बड़े निर्णय लेने के लिए पिछले हजारों वर्षो के दौरान नदी का बहाव कहां और क्यों बदल गया।

ऐसा ही एक उदाहरण आसियान पावर ग्रिड का विकास है, जिसकी कल्पना सभी आसियान देशों में जलविद्युत, थर्मोइलेक्ट्रिक और अक्षय ऊर्जा संयंत्रों की एक प्रणाली को जोड़ने के लिए की गई है। हमारे रिकॉर्ड से पता चलता है कि 'भयंकर सूखे' ने कई बिजली उत्पादन साइटों को एक साथ बर्बाद किया है, इसलिए हम अब इस जानकारी का उपयोग चरम घटनाओं के दौरान ग्रिड को डिजाइन करने के लिए कर सकते हैं।

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