पंचेश्वर बांध: 87 गांव ही नहीं डूबेंगे, पेड़-पौधों व जीवों की कई प्रजातियां खत्म हो जाएंगी: रिपोर्ट

पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय व उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की “स्टेट ऑफ इनवायरमेंट रिपोर्ट ऑफ उत्तराखंड में पंचेश्वर बांध से होने वाले नुकसान का आकलन किया गया है

By Varsha Singh

On: Monday 22 June 2020
 
File Photo: Ravleen Kaur

महाकाली नदी पर प्रस्तावित पंचेश्वर बांध अपने साथ पर्यावरणीय, मानवीय, सांस्कृतिक संकट तो लाएगा ही, आशंका जतायी जा रही है कि भारत-नेपाल के बदलते रिश्तों के बीच सामरिक संकट की वजह भी बन सकता है। पर्यावरण से जुड़े खतरों की अनदेखी कर इस बांध पर आगे बढ़ी सरकार मौजूदा समय में इस पर नए सिरे से विचार कर सकती है।

हाल ही में जारी पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय और उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की “स्टेट ऑफ इनवायरमेंट रिपोर्ट ऑफ उत्तराखंड” में बताया गया है कि महाकाली नदी पर पंचेश्वर बहुद्देशीय परियोजना के लिए नेपाल को भारत 1,500 करोड़ रुपए देगा। 315 मीटर की प्रस्तावित ऊंचाई का ये विश्व का दूसरा सबसे बड़ा बांध होगा। जिससे 6,720 मेगावाट बिजली उत्पादन होगा। ये प्रोजेक्ट कर्णाली और मोहना नदी के प्रवाह को नियंत्रित करेगा। जो उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी, पीलीभीत समेत तराई के अन्य क्षेत्रों में हर वर्ष बाढ़ की वजह बनती हैं। बांध के लिए बनने वाली झील में पिथौरागढ़, चंपावत और अल्मोड़ा के 87 गांव पूरी तरह डूब जाएंगे। पेड़-पौधों की 193 प्रजातियां, 43 स्तनधारी, 70 चिड़िया, 47 तितलियां और 30 मछलियों की प्रजातियों पर खतरा होगा।

राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा कहते हैं कि 1996 में शुरु हुई इस परियोजना पर अब भी बहुत काम नहीं हुआ है। बांध की बिजली और सिंचाई के पानी को लेकर दोनों देशों के बीच सहमति नहीं बन पायी है। काली नदी के उदगम (लिंपियाधुरा) पर नेपाल अपना दावा कर रहा है। इस परियोजना के लिए पुनर्वास एक्ट को हलका किया गया। डूब क्षेत्र की परिभाषा बदली गई। इसके तहत उन्हीं लोगों का पुनर्वास होगा जिनके घर और खेत दोनों डूबेंगे। इस बांध से 31 हज़ार परिवार प्रभावित हो रहे हैं। लेकिन इस परिभाषा के तहत मात्र 6 हज़ार परिवार आते हैं। प्रदीप टम्टा कहते हैं भारत-चीन तनाव को देखते हुए पंचेश्वर बांध रणनीतिक सीमा पर है। यदि दोनों देशों के बीच रिश्ते बिगड़ते हैं, पंचेश्वर बांध पर सामरिक दृष्टि से कोई खतरा आता है तो सारी तबाही भारत को ही झेलनी होगी। नेपाल पर उतन असर नहीं होगा।

पर्यावरणविद् हिमांशु ठक्कर कहते हैं कि भारत-नेपाल की सरकारों को पता है कि ये परियोजना आर्थिक तौर पर व्यवहारिक नहीं है। पंचेश्वर से बनने वाली बिजली की कीमत कम से कम सात रुपये प्रति यूनिट होगी। जबकि सौर और पवन ऊर्जा से कम पैसों में बिजली मिल रही है। नेपाल में निर्माणाधीन विद्युत परियोजना पूरी होने पर वह जल्द ही क्षमता से अधिक बिजली उत्पादन की स्थिति में आ जाएगा। इतनी महंगी बिजली बेचना दोनों देशों के लिए आसान नहीं होगा।

पूर्व आईएएस और राज्य में कई अहम पदों पर रहे एसएस पांगती कहते हैं नेपाल की सीमा से लगे चंपावत के बनबसा, टनकपुर और पिथौरागढ़ के धारचुला तक महाकाली नदी आसानी से पार की जा सकती है। ये क्षेत्र पेड़ों, वन्यजीवों, नशीले पदार्थों की तस्करी के लिए जाना जाता है। यहां माओवादी गतिविधियां भी देखी गई हैं। महाकाली नदी लंबी है, सड़क नहीं है और आबादी कम है। चंपावत-पिथौरागढ़ के बीच सामरिक महत्व का टनकपुर-जौलजीबी सड़क मार्ग ही अब तक पूरा नहीं हो सका है। जब तक बांध की मॉनीटरिंग सुनिश्चित न हो, ये बांध सुरक्षा पर खतरा होगा। पर्यावरणीय खतरों को तो दरकिनार किया ही गया है।

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