फिर अटका बांध सुरक्षा विधेयक, जानें क्या हैं वजह

नौ साल से बांध सुरक्षा विधेयक अटका हुआ है, सरकार राज्यों के विरोध की वजह से इसे पास नहीं करा पा रही है 

By Dayanidhi

On: Monday 05 August 2019
 
तमिलनाडु का मुल्लापेरियार बांध। फोटो: केके नजीब

बांध सुरक्षा विधेयक कई राज्यों के विरोध के कारण लोकसभा में पारित होने में विफल रहा। विधेयक पर उनकी आपत्तियां दोतरफा हैं, जिनमें से एक है कि पानी पर राज्य का अधिकार होता है, इसलिए यह एक असंवैधानिक कदम है। दूसरा, विधेयक में पर्यावरण पर प्रभाव और संबंधित पक्षों की परिभाषा भी स्पष्ट नहीं है। विपक्ष ने माना कि बांधों की सुरक्षा होनी चाहिए, लेकिन यह सुरक्षा कौन करेगा? यह राज्यों का विषय है और उनके अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।

इसमें अंतराराज्यीय नदियों के पानी को लेकर होने वाला विवाद सबसे मुख्य बिंदु है। केंद्रीय मंत्री खुद बताते है कि 92 फीसदी बांध अंतरराज्यीय दायरे में आते हैं। साथ ही बांधों से आपदाओं की सूरत में मुआवजे के दावों के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है। संसदीय समिति ने जून 2011 में पेश की गई अपनी सिफारिशों में भी इस ओर ध्यान आकर्षित किया था। कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और ओडिशा सहित कई राज्यों ने विधेयक का विरोध किया है क्योंकि वे कहते हैं कि विधेयक में राज्यों की संप्रभुता पर उनके बांधों का प्रबंधन करने के लिए हस्तक्षेप किया गया है, जो संविधान में निहित संघवाद के सिद्धांतों का उल्लंघन है। 

तमिलनाडु की मुख्य चिंता विधेयक की धारा 23 (1) से है, जिसके अनुसार यदि एक राज्य के बांध दूसरे के क्षेत्र में आते हैं, तो राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण राज्य बांध सुरक्षा संगठन की भूमिका निभाएगा, इस प्रकार उस राज्य के अधिकार क्षमता को समाप्त कर देगा, जो अंतर-राज्य संघर्ष का कारण बनता है।

तमिलनाडु के लिए यह इसलिए चिंताजनक है, क्योंकि उसके चार बांध मुल्लापेरियार, परम्बिकुलम, थुक्कक्कडवु और पेरुवरिपल्लम का स्वामित्व तो उसके पास है, लेकिन ये बांध पड़ोसी राज्य केरल में स्थित हैं। वर्तमान में, इन बांधों पर अधिकार राज्यों के बीच पहले से मौजूद दीर्घकालिक समझौतों द्वारा चल रहा हैं। विधेयक के प्रावधानों का तात्पर्य है कि बांध के मालिक के पास किसी अन्य राज्य में स्थित बांध की सुरक्षा और रखरखाव पर अधिकार नहीं होगा। 

विधेयक 2019 में क्या है?

देश भर में सभी बांधों के लिए समान सुरक्षा प्रक्रियाओं को विकसित करने के उद्देश्य से बांध सुरक्षा विधेयक, तीसरी बार लोकसभा में पेश किया गया है। विधेयक आपदाओं को रोकने के लिए बांधों की निगरानी, निरीक्षण, संचालन और रखरखाव और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संस्थागत तंत्र प्रदान करता है। यह देश भर के सभी बांधों पर लागू होता है, जो विशिष्ट डिजाइन और संरचनात्मक स्थितियों के अधीन 10 मीटर से अधिक ऊंचाई पर हैं।

बांध सुरक्षा विधेयक 2019 सुरक्षा संबंधी नीति विकसित करेगी और ऐसे विनियमों की सिफारिश करेगी जो उस प्रयोजन के लिये जरूरी हो। बांधों की समुचित निगरानी, निरीक्षण के लिये नीति, मार्गदर्शन और मानकों के क्रियान्वयन के लिये और दो राज्यों के राज्य बांध सुरक्षा संगठनों के बीच या राज्य के राज्य बांध सुरक्षा संगठन और उस राज्य में से बांध स्वामी के बीच किसी मुद्दे का समाधान करने के लिये एक विनियामक निकाय के रूप में राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकार की स्थापना की बात कही गई है। 

इसे पहली बार अगस्त 2010 में सदन में पेश करके स्थायी समिति को विचार के लिए भेजा गया था। समिति ने जून 2011 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसके बाद, राज्यों के विरोध के कारण 15 वीं और 16 वीं लोक सभा में विधेयक पारित करने का प्रयास विफल रहा। सरकार बांध सुरक्षा विधेयक 2018 में भी लेकर आयी थी इस पर भी प्रदेशों के विरोध का साझा बिंदू यही था कि इस तरह का विधेयक लाकर केंद्र सरकार राज्यों के बांधों का स्वामित्व व नियंत्रण आगे चलकर अपने हाथ में ले लेगी।

अब केंद्र सरकार विधेयक क्यों पेश कर रही है?

केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के बताया कि भारत में 5,344 बड़े बांध हैं और इनमें से 92 फीसदी अंतरराज्यीय दायरे में आते हैं, इसलिए यह विधेयक लाना उचित है। उन्होंने कहा कि देश में 293 बांध 100 साल से ज्यादा पुराने हैं। बांधों की सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण क्योंकि एक बांध में दरार आने पर उससे बहुत बड़ा नुकसान होता है। मंत्री ने कहा कि 1980 के दशक में केरल मुल्लपेरियार बांध में दरार आने पर केंद्रीय जल आयोग के पास शिकायत आई थी जिसके बाद एक समिति बनाई है। समिति ने कहा कि देश में बांधों की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रोटोकॉल की जरूरत है।

3 जुलाई, 2019 को, महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में रत्नागिरी में तिवारी बांध के टूटने  से 23 लोगों के मारे जाने की आशंका जताई गई थी। स्थानीय निर्वाचित प्रतिनिधियों ने कहा कि सरकार ने 14 साल पहले बनाए गए बांध की मरम्मत के लिए उनकी दलीलों की उपेक्षा की थी, भले ही उन्होंने शिकायत की थी कि संरचना में दरारें पड़ी थीं। एक अधिकार क्षेत्र का मुद्दा जिसके बारे में ग्रामीणों की याचिका को नजरअंदाज करते हुए चिपलून और दापोली दोनों तहसील कार्यालयों ने कोई कार्यवाही नहीं की जबकि तिवारी बांध गिर गाया।

इस तरह के मुद्दों ने देश में कानूनी और संस्थागत सुरक्षा उपायों की कमी से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय प्राधिकरण की स्थापना को लेकर सरकार के तर्क को मज़बूति प्रदान की है।

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