ओवरफ्लो होते बांध से क्यों करते हैं प्यार?

नर्मदा के विस्थापितों का पुनर्वास न किए जाने के बावजूद ओवर फ्लो करते बांध को देखने से पहले हमें अधिकारियों से कुछ सवाल पूछने चाहिए 

By Himanshu Upadhyaya

On: Thursday 12 September 2019
 
सरदार सरोवर बांध से बहकर आ रहा पानी खेतों में घुस गया है। Photo: Shatakshi Gawade

सत्रह साल पहले, जुलाई में एक दोपहर में दो दोस्त बड़वानी शहर से निकल कर पश्चिमी मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी पर एक पुल के नीचे पानी का स्तर देखने को पहुंच जाते हैं। वे इस बात का आकलन करना चाहते थे कि नदी किनारे बसे जलसिंधी और डोमखेड़ी जैसे गांवों में उस समय क्या होगा, जब नदी का जलस्तर बढ़ जाएगा। क्योंकि चार महीने पहले, 14 मई 2002 को नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई 90 मीटर से बढ़ाकर 95 मीटर करने की स्वीकृति दी थी।

जब वे बडवानी लौटे, तो उन्हें तुरंत सूचना मिली और वे फिर से जलसिंधी रवाना हो गए। उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि किसी इलाके या गांव के डूबने का दृश्य क्या होता है और यह मानसून की बाढ़ से कैसे अलग होता है?

उस साल अगस्त में हुई अच्छी बारिश के कारण सरदार सरोवर बांध पूरी तरह भर गया और पानी बाहर निकलने लगा। नर्मदा का पानी बड़ी तेजी से मुख्य नहरों में बहने लगा और कुछ ही दिनों में अहमदाबाद में साबरमती नदी तक पहुंच सकता था। उस समय स्थानीय गुजराती भाषा की मीडिया ने इसे बड़ी खबर माना और अपने अखबारों के पहले पन्ने पर बांध के ओवरफ्लो होने की बड़ी-बड़ी फोटोएं प्रकाशित कीं।

आज जब मैं यह लिख रहा हूं तो 12 सितंबर की सुबह सरदार सरोवर बांध का स्तर (137.08 मीटर) है और मुझे लगता है कि कुछ अपवादों को छोड़ दें तो गुजराती मीडिया बिरादरी 9 अगस्त के बाद (उस समय जल स्तर 129.65 मीटर था) से रोजाना ओवरफ्लो बांध के दृश्य दिखाकर मंत्रमुग्ध कर रहे हैं। लगभग हर दिन जब मैं समाचार देखता हूं तो मुझे पता चलता है कि नर्मदा बांध में पानी का प्रवाह और ओवरफ्लो कितना हुआ है, बांध की दीवार के पीछे का जल स्तर क्या है और कितने द्वार खुले हैं। बांध के ओवरफ्लो होने का अद्भुत दृश्य पेश किया जा रहा है, लेकिन इससे डूब क्षेत्र के उन गांवों का क्या होगा, जहां लोग दशकों से पुनर्वास और पुनर्वास की झलक पाने के लिए इंतजार कर रहे हैं के बारे में पूरी तरह से चुप्पी है।

17 मीटर ऊंचे स्टील रेडियल गेट वर्ष 2017 में स्थापित किए गए थे और बांध 17 सितंबर को माननीय प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर राष्ट्र को समर्पित किया गया था। 2017 और 2018 के मानसून के दौरान, नर्मदा बांध का उच्चतम जल स्तर क्रमश: 130.75 मीटर और 129 मीटर तक पहुंच गया था। नर्मदा बचाओ आंदोलन का दावा है कि लगभग 30,000 परिवार जिनके खेत और घर पानी के नीचे जा रहे हैं, उनका अब तक पुनर्वास नहीं किया गया है।

इस वर्ष जुलाई के पूरे महीने में, मध्य प्रदेश राज्य सरकार ने विरोध प्रदर्शन की आवाज उठाई थी और गुजरात से पूर्ण जलाशय स्तर (यानी 138.68 मीटर) तक जलाशय भरने की अपनी मांग पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया था। मध्य प्रदेश राज्य सरकार ने चिंता जताई कि परियोजना से प्रभावित 6000 परिवारों का अभी भी पुनर्वास नहीं किया गया है, हालांकि नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण द्वारा तय सीमा के अनुसार 31 अक्टूबर तक बांध का जलस्तर ओवरफ्लो हो जाता है तो नर्मदा बचाओ आंदोलन का आकलन है इसका नुकसान काफी अधिक होगा। यह तय सीमा नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण द्वारा 2017 में तैयार की गई। नर्मदा वाटर डिस्पयूट ट्रिब्यूनल अवार्ड के तहत बांध के भरने की अवधि को 'जुलाई से अक्टूबर' कहा जाता है।

7 अगस्त को, सरदार सरोवर बांध के पीछे का जलस्तर 127.98 मीटर के निशान को छूने और राजघाट पुल के पानी के नीचे भरने के कारण, प्रभावित लोगों के होश उड़ गए कि वे इस बार जो जलभराव का सामना करेंगे, वह पिछले दो वर्षों के दौरान देखी गई तुलना में अधिक विनाशकारी हो सकता है। 2018 में, 7 अगस्त को बांध में जल स्तर 111.30 मीटर था। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने एक अनिश्चितकालीन आंदोलन शुरू किया जिसमें गुजरात सरकार से आग्रह किया गया कि वह बाढ़ के केंद्रों को खोलें और जलाशयों को आगे न भरें।

एक ओर जहां लोगों की जिंदगी बांध की दीवार के पीछे बढ़ते पानी की वजह से चिंतित थी, वहीं 28 अगस्त की सुबह, एक माननीय ने सरदार सरोवर बांध के ‘लुभावनी दृश्य’ की कुछ तस्वीरें पोस्ट करते हुए निम्नलिखित संदेश ट्वीट किया। “खबर जो आपको रोमांचित कर देगी, यह साझा करते हुए खुशी हुई कि सरदार सरोवर बांध का जल स्तर ऐतिहासिक 134.00 मीटर तक पहुंच गया है। लुभावने दृश्य की तस्वीरें साझा कर रहा हूं, इस उम्मीद के साथ कि आप इस प्रतिष्ठित स्थान पर जाएं और ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ देखेंगे। ”

यह संदेश नर्मदा जल विवाद ट्रिब्यूनल के नियमों का उल्लंघन है। इसी तरह का बर्ताव केंद्रीय जल आयोग के कुछ विशेषज्ञों ने भी किया था, जिन्होंने 20 से 22 अगस्त के बीच बांध स्थल का दौरा किया था।

बता दें कि 1979 में नर्मदा जल विवाद ट्रिब्यूनल ने अपना अंतिम आदेश में कहा था कि तब तक महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में कोई भी क्षेत्र सरदार सरोवर के नीचे नहीं डूबेगा, जब तक कि विस्थापितों को पूरे मुआवजे के साथ पुनर्वास की व्यवस्था नहीं की जाती।

नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण के इस कथन के विपरीत 1961 में तत्कालीन वित्त मंत्री द्वारा पोंग बांध के अवसर पर दिया गया बयान बेहद अजीब लगता है। उन्होंने कहा था कि हम आपसे अनुरोध करते हैं कि जैसे कि बांध पूरा भर जाए और पानी बाहर आने लगे तो आप लोग अपने घर छोड़ कर चले जाएं। यदि आप वहां से चले जाते हैं तो अच्छा है, अन्यथा हम पानी छोड़ देंगे और आप सबको बहा देंगे।

हर कोई ओवरफ्लो होते बांध से क्यों प्यार करता है? संभवतः, बांध के फाटकों से बहता पानी मंत्रमुग्ध करने वाला और लुभावना दृश्य किसी को भी यह अहसास दिलाता है कि बांध भरा हुआ है, जिससे प्यास बुझाई जा सकती है। एक ओवरफ्लो बांध इस बात की तस्दीक करता है कि वहां एक मानसून आया है और बारिश देवताओं की दया सभी को आशीर्वाद देगी।

गुजरात के अधिकारियों ने सरदार सरोवर बांध तक के वीडियो को शूट करने के लिए हेलीकॉप्टर भेज दिया है, उनसे पूछना चाहिए कि जलमग्न गांवों में क्या हो रहा है? पुनर्वास के बिना डूबे हुए लोगों के जीवन और आजीविका कैसे प्रभावित हो रही है?  ऐसा क्यों है कि एक बांध भरा हुआ है, लेकिन जलमग्न गांवों में लोगों के लिए वादे और उम्मीदें अधूरी रह गईं?

आइए उनसे पूछते हैं कि बड़े बांध की वजह से डूबे खेतों का क्या हाल है? क्योंकि 5 सितंबर को कच्छ के एक किसान, पंकज शाह ने अपने खेत में प्रवेश करते हुए कच्छ नहर के पानी का एक वीडियो ट्वीट किया था। जिसमें उसने कहा था कि झूठी योजना के कारण नर्मदा का पानी हमारे खेतों में भर गया है। कृपया हमारी सहायता करें और इस बारे में किससे शिकायत करें, क्योंकि 6 जुलाई 2019 से लेकर अब तक कच्छ के कलेक्टर ने कोई जवाब नहीं दिया है।

लेखक बैंगलोर के अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में संकाय सदस्य हैं

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