क्या बायोडिग्रेडेबल मांझा दिल्ली सरकार की अधिसूचना के दायरे में आता है: दिल्ली उच्च न्यायालय

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Tuesday 23 August 2022
 

उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार से यह स्पष्ट करने के लिए कहा है कि क्या बायोडिग्रेडेबल मांझा 10 जनवरी, 2017 को जारी सरकारी अधिसूचना के दायरे में आते हैं। गौरतलब है कि इस अधिसूचना के तहत दिल्ली सरकार ने नायलॉन, प्लास्टिक या किसी अन्य सिंथेटिक सामग्री (चीनी) से बने मांझे की बिक्री, उत्पादन, भंडारण और आपूर्ति पर प्रतिबंध लगा दिया था।

इसके साथ ही मांझे की अधिकतम मजबूती कितनी निर्धारित की गई है,  इस बारे में भी दिल्ली सरकार को जानकारी देने के लिए कहा है। गौरतलब है कि इस मामले में हथकरगाह लघु पतंग उद्योग समिति ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।

याचिकाकर्ता का कहना है कि वो पतंग उड़ाने वाले सूती धागे के उत्पादन और बिक्री के व्यवसाय में लगा हुआ है जो चावल और अंडे जैसे प्राकृतिक पदार्थों से मजबूत किया जाता है साथ ही उसका उत्पाद पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल है।

याचिकाकर्ता का कहना है कि हालांकि उसके द्वारा उत्पादित और बेचा गया उत्पाद "आक्षेपित अधिसूचना की कठोरता" के दायरे में नहीं आता है, फिर भी इस बात की आशंका है कि दिल्ली सरकार के संबंधित अधिकारी उसके खिलाफ कठोर कदम उठाएंगे।

दुर्घटना में मारे गए लोगों की पहचान के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने यूआईडीएआई से मांगा जवाब

दिल्ली उच्च न्यायालय की जस्टिस मुक्ता गुप्ता और जस्टिस अनीश दयाल की पीठ ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) को दुर्घटना में मारे गए पीड़ितों की पहचान के मुद्दे पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है। मामला केंद्रीय पहचान डेटा भंडार (सीआईडीआर) के पास उपलब्ध विशिष्ट विशेषताओं के आधार पर दुर्घटनाग्रस्त लोगों की पहचान से जुड़ा है।

गौरतलब है कि यह आदेश मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) के पीठासीन अधिकारी से प्राप्त एक संदर्भ पर जारी किया गया है।

झारखंड की राजमहल पहाड़ियों पर होते अवैध खनन को रोकने के लिए नहीं की गई कोई खास कार्रवाई

22 अगस्त, 2022 को संयुक्त समिति द्वारा दायर रिपोर्ट में कहा है कि झारखंड की राजमहल पहाड़ियों पर होते अवैध खनन को रोकने के लिए कोई खास कार्रवाई नहीं की गई है। मामला झारखंड के साहेबगंज जिले में विंध्य पर्वत की राजमहल पहाड़ियों पर होते अवैध स्टोन क्रशिंग से जुड़ा है। रिपोर्ट का कहना है कि वहां इस अवैध खनन को रोकने के लिए केवल कन्वेयर बेल्ट तोड़ना ही काफी नहीं है। 

साथ ही यह भी जानकारी मिली है कि यूनिट संचालकों और मालिकों ने क्रशर के टूटे हुए हिस्से की मरम्मत कर वहां फिर से काम शुरू कर दिया है।

रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी है कि महादेवबारन, मिर्जाचौकी और तलबन्ना को छोड़कर, कहीं भी पीएम10 और पीएम2.5 के मानकों को पूरा नहीं किया है। इन तीन स्थानों पर भी केवल पीएम2.5 के मानदंडों को ही हासिल किया गया है। गौरतलब है कि इस संयुक्त समिति में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों के साथ साहबगंज के जिला कलेक्टर शामिल थे।  

गंगा नदी की जल गुणवत्ता और प्रवाह को बनाए रखने के लिए यूपीपीसीबी ने उठाए प्रभावी कदम: रिपोर्ट

चर्मशोधन इकाइयों और कानपुर जिला मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में विशेष प्रयोजन को ध्यान में रखते हुए जाजमऊ टेनरी एफ्लुएंट ट्रीटमेंट एसोसिएशन (जेटीईटीए) का गठन किया गया है। 

इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) द्वारा सबमिट अनुपालन रिपोर्ट के अनुसार जाजमऊ की मौजूदा चर्मशोधन इकाइयों की ट्रीटमेंट क्षमता में सुधार के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने 20 एमएलडी सीईटीपी परियोजना को भी मंजूरी दी है, जिसकी कुल लागत 554 करोड़ रूपए है।

रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी गई है कि यूपीपीसीबी नियमित रूप से जाजमऊ और कानपुर में नालियों की सफाई और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की स्थिति की निगरानी कर रहा है।

साथ ही यूपीपीसीबी ने उत्तर प्रदेश जल निगम के 4 अधिकारियों पर जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1974 के तहत मुकदमा चलाया है। इन पर आरोप है कि उन अधिकारियों ने कानपुर के 26 नालों को पूरी तरह साफ नहीं किया था। साथ ही उन्होंने जाजमऊ में 5 एमएलडी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और 130 एमएलडी एसटीपी से उपचारित सीवेज का निर्धारित मानकों के भीतर निर्वहन नहीं किया था।

रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी गई है कि यूपीपीसीबी ने जाजमऊ में 130 एमएलडी एसटीपी द्वारा निर्वहन मानकों को पूरा नहीं करने पर विशेष न्यायालय में जल अधिनियम 1974 के तहत मेसर्स कानपुर रिवर मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड और उसके निदेशकों पर मुकदमा चलाया है।

साथ ही बोर्ड पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए 259 डिफॉल्टर टेनर इकाइयों पर 2.90 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था, जिसमें से 215 इकाइयों ने जुर्माने के 1.01 करोड़ रुपए जमा कर दिए हैं। साथ ही जिला प्रशासन द्वारा 34 इकाईयों के खिलाफ पर्यावरण क्षतिपूर्ति की वसूली हेतु वसूली प्रमाण पत्र जारी किए हैं। साथ ही इस बात को भी सुनिश्चित किया गया है कि पर्यावरण क्षतिपूर्ति की इस राशि को जमा करने के बाद ही इन इकाइयों के सीटीओ का नवीनीकरण किया जाएगा।

यह रिपोर्ट 23 अगस्त, 2022 को एनजीटी की वेबसाइट पर अपलोड की गई है

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