ऋषिगंगा के बाद धौली में भी तबाही की तैयारी

सड़क को चौड़ी करने के लिए न केवल विस्फोट किए जा रहे हैं, बल्कि मलबा सीधे धौली गंगा में डाला जा रहा है

By Trilochan Bhatt

On: Wednesday 10 November 2021
 
उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में इस तरह अनियोजित तरीके से पहाड़ काटा जा रहा है और मलबा सीधे नदी में गिराया जा रहा है। फोटो साभार: धनसिंह घरिया

दीवाली की रात जब पूरे देश में जश्न का माहौल था, चमोली जिले की सुदूर नीति घाटी के भल्ल गांव के दर्जनों लोग भी त्योहार मनाने अपने गांव गये थे। गांव तक सड़क न होने के कारण लोगों ने अपनी कारें और मोटर साइकिल गांव से कुछ दूर सूकी नामक जगह पर खड़ी कर दी। लेकिन इसी रात अचानक पहाड़ी चटक गई। बड़े-बड़े बोल्डर गिर गये और दर्जनभर कारें व मोटर साइकिल दब गई।

जहां यह घटना हुई, वहां और उसके आसपास के इलाकों में न तो कोई नई सड़क बन रही है और न पुरानी सड़क चौड़ी करने के लिए पहाड़ काटे जा रहे हैं। कोई अन्य निर्माण भी क्षेत्र में नहीं हो रहा है। फिर भी अचानक पहाड़ी क्यों चटक गई, इस सवाल का उत्तर दरअसल नीति घाटी में मलारी से नीती तक सड़क चौड़ा करने के लिए इस्तेमाल किये जा रहे तौर-तरीकों में छिपा हुआ है। करीब 20 किमी लंबी इस सड़क को चौड़ा करने के लिए पिछले दो महीने से भारी विस्फोटकों का इस्तेमाल किया जा रहा है।

सूकी में पहाड़ी चटकने की घटना से करीब एक हफ्ते पहले पहाड़ों में पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे शिक्षक धनसिंह घरिया इस क्षेत्र में थे और यहां सड़क चौड़ा करने के लिए पहाड़ियों को काटने के तौर-तरीकों को लेकर वीडियो उतार रहे थे। डाउन टू अर्थ ने धनसिंह घरिया से इस संबंध में बात की तो उनका कहना था कि सूकी में अचानक पहाड़ी चटकने की घटना का बेशक कोई तत्कालिक कारण किसी की समझ में न आता हो, लेकिन वे दावे के साथ कह सकते हैं कि मलारी से नीती तक सड़क को चौड़ा करने के लिए लिए इस्तेमाल किये जाने वाले विस्फोटक ही इस घटना का मुख्य कारण हैं।

घरिया के अनुसार इस उच्च हिमालयी क्षेत्र में पहाड़ियों को काटने के लिए ड्रिल मशीनों और डायनामाइट जैसे विस्फोटकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। पहले ड्रिल मशीनों से पहाड़ों पर छेद किये जाते हैं, उसके बाद छेदों में बारूद भरकर विस्फोट किये जा रहे हैं। ये विस्फोट इतने जोरदार होते हैं कि आसपास की सारी पहाड़ियां हिल जाती हैं। 
उन्हें आशंका है कि आने वाले दिनों में सूकी जैसी अचानक पहाड़ चटकने की घटनाएं इस क्षेत्र में दूसरी जगहों पर भी हो सकती हैं।

मलारी गांव के ग्राम प्रधान मंगल सिंह कहते हैं कि इस जोन में पहाड़ियां बहुत ढीली-ढाली हैं। डायनामाइट के भारी-भरकम विस्फोट से पहाड़ियों से पत्थर छिटकने की छिटपुट घटनाएं लगातार हो रही हैं, लेकिन इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है।


मलबा सीधे धौली गंगा में
इस सड़क को चौड़ा करने के लिए एक तरफ जहां भारी-भरकम विस्फोट करके पहाड़ों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, वहीं पहाड़ों का मलबे के लिए कोई डंपिंग जोन भी नहीं बनाया गया है। विस्फोट से पहाड़ तोड़े जा रहे हैं और इससे निकला मलबा सीधे धौली गंगा के हवाले किया जा रहा है। 

नीती घाटी के सामाजिक कार्यकर्ता और नीती गांव के पूर्व ग्राम प्रधान प्रेमसिंह फोनिया के अनुसार इस क्षेत्र में लगातार हो रहे विस्फोट के कारण हालात बहुत खराब हो गये हैं। नीति गांव के ऊपर पहाड़ी लगातार दरक रही है। बड़े-बड़े बोल्डर और पत्थर गांव के बगल से गिर रहे हैं। गांव का एक गेस्ट हाउस भी इस मलबे के कारण क्षतिग्रस्त और असुरक्षित हो गया है। नीती से ग्याढुंग तक सीपीडब्ल्यूडी की सड़क जगह-जगह दरक गई है।

फोनिया कहते हैं कि पहाड़ से निकले मलबे और बोल्डरों को सीधे धौली नदी में डाले जाने से गमसाली और नीति के बीच पिछले दिनों झील बन गई थी। हालांकि अब पानी पत्थरों और बोल्डरों के नीचे से निकल रहा है।रोड चौड़ा करने के लिए देवदार, कैल और चीड़ के करीब 500 पेड़ भी काटे गये हैं। इसके अलावा गुरगुट्टी के पास एक क्रशर लगाया गया, वह भी नियमों की अनदेखी करके लगाया गया है।

जोशीमठ क्षेत्र पंचायत के पूर्व प्रमुख प्रकाश रावत रोड चौड़ी करने के लिए की जा रही पहाड़ों की बेतरतीब कटिंग और इसका मलबा सीधे धौली गंगा में गिराये जाने को लेकर चिन्तित हैं। वे कहते हैं कि जिस तरह से मलबा सीधे नदी में डंप किया जा रहा है, वह ऋषिगंगा जैसी एक और आपदा को बुलावा देना जैसा है।

प्रकाश रावत के अनुसार मलारी और नीति के बीच भारी मात्रा में मलबा डालने का नतीजा अगले बरसात में तबाही की स्थिति पैदा कर सकता है। बरसात में या ऋषिगंगा जैसी ग्लेशियर में होने वाली किसी हलचल के कारण धौली गंगा का पानी बढ़ेगा तो यह सारा मलबा निचले क्षेत्रों में तबाही मचाएगा। इससे नीती, फरक्या, गुरगुट्टी, कैलाशपुर और मलारी गांव तो प्रभावित होंगे ही। उससे भी नीचे रैणी, तपोवन को एक और बड़ी आपदा का सामना करना पड़ सकता है। विष्णुप्रयाग से लेकर चमोली और कर्णप्रयाग तक के क्षेत्र खतरे में आ सकते हैं।

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